The Budget promises continuity of sorts, in the middle of drastic changes brought by demonetisation and GST.
Continuity, or Freshness?
A distinct change in the approach of the present government from those of the previous ones is quite visible. Governments should not shy away from bringing change, but should take decisions in the larger interest of the nation. Governments have been initiating reforms all these years. But the present government is trying to initiate changes in all aspects of the citizen’s lives. An initiative, howsoever small, should be aimed at bringing an attitudinal change in the mindset of the people. Some of the recent initiatives bear testimony to this. Initiatives like Swachh Bharat Abhiyan and the Give it Up scheme (surrendering the LPG subsidy) have sought to bring this big transformation. People have wholeheartedly started to realize the importance of cleanliness, and about 1.20 crore have surrendered their LPG subsidy. Read a comprehensive Bodhi on demonetisation here!
Transparency and welfare intent is the key to the reforms process. PM Rajiv Gandhi had admitted that out of one rupee that the government allots for the citizens, only fifteen paise actually reach them. This indicates the welfare intent but lack of transparency. Initiatives like abolition of the Planning Commission and constituting the NITI Ayog and accepting the recommendations of the 14th Finance Commission of higher devolution from the divisible pool to the states and local bodies signify the government’s intent of inclusiveness in the reform and transformation process. The One Nation One Market scheme (GST), and the National Agriculture Market (eNAM) could prove to be a game-changers in future. The mantra of the present government is Reform, Perform and Transform. The government seems to be taking reformative actions in all spheres of the economy, education, healthcare, rural and agricultural development etc.
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निरंतरता या नवीनता?
वर्तमान सरकार और पूर्ववर्ती सरकारों के दृष्टिकोण में एक स्पष्ट अंतर दिखाई देता है। किसी भी सरकार को परिवर्तन लाने की दृष्टि से घबराना नहीं चाहिए बल्कि उसे साहस के साथ व्यापक देश हित में परिवर्तन लाने को तत्पर रहना चाहिए।
देश की सभी सरकारें अपने स्तर पर देश में सुधार लाती रही हैं। परंतु वर्तमान में जो अंतर दिखाई देता है कि वर्तमान सरकार नागरिकों के जीवन के सभी पहलुओं में परिवर्तन करने का प्रयास कर रही है।
कोई पहल, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, उसे नागरिकों के दृष्टिकोण में व्यवहारगत परिवर्तन लाना चाहिए। पिछले वर्षों में उठाए गया कुछ कदम इसका उदाहरण हैं।
स्वच्छ भारत अभियान और रसोई गैस पर अनुवृत्ति छोड़ने के किये गए अनुरोध जैसी पहलों ने यह व्यवहारगत परिवर्तन लाने का प्रयास किया है। नागरिकों को स्वच्छता का महत्त्व समझ में आने लगा है, और इसी प्रकार 1.20 करोड़ लोगों ने रसोई गैस की अनुवृत्ति छोड़ी है। ये परिवर्तन छोटे प्रतीत हो सकते हैं, परंतु भविष्य में उनका अधिक प्रभाव होगा। विमुद्रीकरण पर एक बोधि पढ़ें यहाँ।
पारदर्शिता और नागरिक कल्याण की इच्छाशक्ति सुधार प्रक्रिया की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण बातें हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने यह स्वीकार किया था कि सरकार द्वारा नागरिकों के लिए खर्च किये गए प्रत्येक रुपये में से वास्तविक लाभार्थियों तक केवल पंद्रह पैसे ही पहुँच पाते थे। यहाँ नागरिक कल्याण की सरकार की इच्छाशक्ति तो थी परंतु पर्दार्स्शिता का अभाव था। योजना आयोग को समाप्त करके नीति आयोग के गठन और राज्यों और स्थानीय निकायों को अधिक हस्तांतरण की 14 वें वित्त आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करने जैसी पहलें सुधार और परिवर्तन में सरकार के समावेशन की इच्छा को प्रदर्शित करती हैं। एक राष्ट्र एक बाजार (जीएसटी) और राष्ट्रीय कृषि बाजार (एनएएम) भविष्व में अत्यधिक परिवर्तनकारी साबित हो सकते हैं। वर्तमान सरकार का मंत्र है सुधार, निष्पादन और परिवर्तन। सरकार अर्थव्यवस्था के सभी पहलुओं में परिवर्तन लाने की दृष्टि से प्रयासरत प्रतीत होती है जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, ग्रामीण और कृषि विकास इत्यादि।
पारदर्शिता और नागरिक कल्याण की इच्छाशक्ति सुधार प्रक्रिया की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण बातें हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने यह स्वीकार किया था कि सरकार द्वारा नागरिकों के लिए खर्च किये गए प्रत्येक रुपये में से वास्तविक लाभार्थियों तक केवल पंद्रह पैसे ही पहुँच पाते थे। यहाँ नागरिक कल्याण की सरकार की इच्छाशक्ति तो थी परंतु पर्दार्स्शिता का अभाव था। योजना आयोग को समाप्त करके नीति आयोग के गठन और राज्यों और स्थानीय निकायों को अधिक हस्तांतरण की 14 वें वित्त आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करने जैसी पहलें सुधार और परिवर्तन में सरकार के समावेशन की इच्छा को प्रदर्शित करती हैं। एक राष्ट्र एक बाजार (जीएसटी) और राष्ट्रीय कृषि बाजार (एनएएम) भविष्व में अत्यधिक परिवर्तनकारी साबित हो सकते हैं। वर्तमान सरकार का मंत्र है सुधार, निष्पादन और परिवर्तन। सरकार अर्थव्यवस्था के सभी पहलुओं में परिवर्तन लाने की दृष्टि से प्रयासरत प्रतीत होती है जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, ग्रामीण और कृषि विकास इत्यादि।
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