Instead of big bang reforms, the govt. chose to focus more on consolidation in the Union Budget.
Union Budget 2017-18 – Government stays conservative
The budget has done commendably on macroeconomic stability, but it falls short of expectations in measures to revive growth. The government really was hard-pressed! Considering the economic slowdown, the finance minister held on to fiscal discipline. Hence it is not likely to boost economic growth sentiment. Fiscal deficit is expected to be lowered to 3.2% of GDP in the next fiscal against the current 3.5% (though higher than 3.0% targeted). Similar to the UPA budgets, a lot of emphasis was laid on Rural Sector rejuvenation – rural employment guarantee programme, rural health mission and food subsidy – in the context of government’s expenditure priorities. This is Political Economy at its best. Read detailed Bodhi on Demonetisation here.
The budget also laid a lot of emphasis on high infrastructure spending like road construction and railways. The allocations for important infrastructure ministries have been substantially raised by about 17.6%. India needs infrastructure! However, the budget fails to provide a vision in the field of direct taxes and banking. Had it been done, it would have made a lot of difference to our economic growth path. The FM’s enhanced thrust on rural development could well be due to the upcoming assembly elections in five states. Moreover, it is also an admission of the adverse impact of demonetization on the informal sector (though no formal statement made). Direct tax incentives have been cleverly used for construction to boost activity in this sector. This sector has linkages with other sectors, which can mitigate a slowdown. However, not much seems to have been done to plug loopholes in the direct tax system. The budget also fails to provide a framework to deal with banks’ bad loans. Even the allocation for banks’ recapitalization has been lowered considerably. This will have an adverse impact on banks’ credit flow to manufacturing and other sectors. The suggestion for a “PARA” is interesting. Considering the economy’s immediate challenges of reviving economic growth and job creation, the budget leaves a lot to be desired. It is all about fiscal consolidation and a long-term perspective. Please download original files of Economic Survey and Union Budget from the Bodhi resources page.
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केंद्रीय बजट 2017-18 - सरकार अपरिवर्तनवादी बनी रही
बजट ने स्थूल आर्थिक स्थिरता की दिशा में प्रशंसनीय कार्य किया है, परंतु वृद्धि के पुनःजीवन की दृष्टि से बजट अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाया है। सरकार पर दबाव अत्याधिक रहा है!
आर्थिक मंदी की स्थिति को देखते हुए वित्तमंत्री ने राजकोषीय अनुशासन को बनाए रखकर स्वागतयोग्य कार्य किया है। उन्होंने इसकी अनदेखी नहीं की है। अतः बजट से आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिलने की उम्मीद नहीं की जा सकती। आगामी वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे में जीडीपी के 3.2 प्रतिषत तक कमी होने का अनुमान है, जो वर्तमान में जीडीपी का 3.5 प्रतिषत है (हालांकि यह लक्षित 3.0 प्रतिषत से अधिक होगा)।
सरकार की व्यय प्राथमिकताओं के संदर्भ में यूपीए सरकार के बजट के समान ही ग्रामीण क्षेत्र के पुनरूथान - ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, ग्रामीण स्वास्थ्य अभियान और खाद्य सुरक्षा पर काफी बल दिया गया है। यह राजनीतिक अर्थषास्त्र का बढ़िया नमूना है। विमुद्रीकरण पर विस्तृत बोधि पढ़ें, यहाँ
साथ ही, पिछले बजट की ही तरह प्रस्तुत बजट में भी सड़क निर्माण और रेलवे जैसे अधोसंरचना व्यय पर बहुत जोर दिया गया है। महत्वपूर्ण अधोसंरचना मंत्रालयों के बजट आवंटन में लगभग 17.6 प्रतिशत की महत्वपूर्ण वृद्धि की गई है। भारत को अधोसंरचना चाहिए! यह बजट प्रत्यक्ष कर व्यवस्था और बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में कोई दूरदर्शिता प्रदान करने में असफल रहा है। यदि यह किया जाता तो इसका हमारे आर्थिक विकास के मार्ग पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ता। वित्त मंत्री द्वारा ग्रामीण विकास को दिए गए महत्त्व को समझा जा सकता है, क्योंकि ऐसा पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर दृष्टि रखकर किया गया है। साथ ही, इसे विमुद्रीकरण के कारण अनौपचारिक क्षेत्र पर पड़े विपरीत प्रभाव की सरकार की स्वीकृति के रूप में भी देखा जा सकता है (हालांकि कोई औपचारिक व्यकत्वय नहीं दिया गया है)। प्रत्यक्ष कर की रियायतों का चतुराई से निर्माण क्षेत्र में उपयोग किया गया है ताकि इस क्षेत्र की गतिविधि को बढ़ावा मिल सके। इस क्षेत्र का संबंध अन्य क्षेत्रों से भी होता है जो कुछ हद तक मंदी का शमन कर सकता है। हालांकि, प्रत्यक्ष कर व्यवस्था में मौजूद कमियों को रोकने की दृष्टि से बजट में अधिक कुछ किया हुआ प्रतीत नहीं होता। बैंकों के अर्नजक ऋणों की समस्या से निपटने के लिए रूपरेखा प्रदान करने में भी बजट सफल नहीं हो पाया है। यहाँ तक कि बैंकों के पुनः पूंजीकरण के आवंटन में भी काफी कटौती की गई है। इसका विनिर्माण और अन्य क्षेत्रों पर होने वाले बैंकों के ऋण प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। सरकारी आस्ति सुधार एजेंसी (पी.ए.आर.ए.) का सुझाव काफी रोचक है। परंतु अर्थव्यवस्था के पुनःजीवन और रोजगार निर्माण की तत्काल चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में बजट अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाया है। यह बजट राजकोशीय समेकन और दीर्घावधी विचारो पर बना है। कृपया आर्थिक समीक्षा और केंद्रीय बजट के सभी दस्तावेज बोधि संसाधन पृष्ठ से डाउनलोड करें।
साथ ही, पिछले बजट की ही तरह प्रस्तुत बजट में भी सड़क निर्माण और रेलवे जैसे अधोसंरचना व्यय पर बहुत जोर दिया गया है। महत्वपूर्ण अधोसंरचना मंत्रालयों के बजट आवंटन में लगभग 17.6 प्रतिशत की महत्वपूर्ण वृद्धि की गई है। भारत को अधोसंरचना चाहिए! यह बजट प्रत्यक्ष कर व्यवस्था और बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में कोई दूरदर्शिता प्रदान करने में असफल रहा है। यदि यह किया जाता तो इसका हमारे आर्थिक विकास के मार्ग पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ता। वित्त मंत्री द्वारा ग्रामीण विकास को दिए गए महत्त्व को समझा जा सकता है, क्योंकि ऐसा पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर दृष्टि रखकर किया गया है। साथ ही, इसे विमुद्रीकरण के कारण अनौपचारिक क्षेत्र पर पड़े विपरीत प्रभाव की सरकार की स्वीकृति के रूप में भी देखा जा सकता है (हालांकि कोई औपचारिक व्यकत्वय नहीं दिया गया है)। प्रत्यक्ष कर की रियायतों का चतुराई से निर्माण क्षेत्र में उपयोग किया गया है ताकि इस क्षेत्र की गतिविधि को बढ़ावा मिल सके। इस क्षेत्र का संबंध अन्य क्षेत्रों से भी होता है जो कुछ हद तक मंदी का शमन कर सकता है। हालांकि, प्रत्यक्ष कर व्यवस्था में मौजूद कमियों को रोकने की दृष्टि से बजट में अधिक कुछ किया हुआ प्रतीत नहीं होता। बैंकों के अर्नजक ऋणों की समस्या से निपटने के लिए रूपरेखा प्रदान करने में भी बजट सफल नहीं हो पाया है। यहाँ तक कि बैंकों के पुनः पूंजीकरण के आवंटन में भी काफी कटौती की गई है। इसका विनिर्माण और अन्य क्षेत्रों पर होने वाले बैंकों के ऋण प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। सरकारी आस्ति सुधार एजेंसी (पी.ए.आर.ए.) का सुझाव काफी रोचक है। परंतु अर्थव्यवस्था के पुनःजीवन और रोजगार निर्माण की तत्काल चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में बजट अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाया है। यह बजट राजकोशीय समेकन और दीर्घावधी विचारो पर बना है। कृपया आर्थिक समीक्षा और केंद्रीय बजट के सभी दस्तावेज बोधि संसाधन पृष्ठ से डाउनलोड करें।
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