The GST Council is resolving tricky issues like Dual Control through consensus. A good signal.
GST and Dual Control – The road ahead
The biggest tax-reform in India – the Goods and Services Tax regime – is set to transform Indian economy in a big way. The topmost decision making body is the Goods and Services Tax Council (GST Council). Its working has been admirably federal in character, and logical in approach. Business and enterprises must be governed by only one authority (either Centre or State) to avoid any confusion. The GST Council agreed on this core principle, through the Services Sector will not be administered by the Centre except in complex interpretation-based cases. Formula for administrative control is → States will control audit and scrutiny of 90% of taxpayers with less than Rs.1.5 crore annual revenues. Rest will be with Centre. All cases to be selected randomly. For larger revenue cases, equal division to be done.
GST rollout date in India is 01 July, 2017. Industry in any country needs ample time to prepare itself internally. Service Tax rates in India are likely to be raised, though not very substantially. The laws governing Central GST (CGST) and Integrated GST (IGST) will be separate, and are pretty complex with lot of loose ends. The classification of goods and services that will fall in various rate slabs – 0%, 5%, 12%, 18%, 28% – will be crucial. In the long term, unless the rates are moderate and the tax base wide enough, it will be of little use to India. Radical (tax) reforms need a complete new thinking. Using benchmarks of the past may not be a good idea. A standard rate of 18% for most goods will be a great idea. (So higher consumption of these will mean higher production, and more tax collected). If large-scale consumer consumption is to be incentivized, thereby pushing manufacturing, then FMCG should never be in 28% slab.
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जीएसटी और दोहरा नियंत्रण – आगे का मार्ग
भारत का अब तक का सबसे बड़ा कर सुधार – वस्तु एवं सेवा कर शासन – भारत में भारी परिवर्तन करने की दृष्टि से कृतसंकल्प है। सबसे शीर्ष नीति निर्माण निकाय है वस्तु एवं सेवा कर परिषद (जीएसटी परिषद)। इसकी कार्यशैली की प्रकृति सराहनीय रूप से संघीय रही है और इसका दृष्टिकोण तार्किक रहा है। किसी भी भ्रम से बचने के लिए उद्योग और उपक्रम केवल एक प्राधिकारी द्वारा ही शासित होने चाहियें (या तो केंद्र या राज्य) । जीएसटी परिषद में इस केंद्रीय सिद्धांत पर सहमति बनी है, हालांकि अत्यधिक जटिल व्याख्या-आधारित मामलों को छोड़कर सेवा क्षेत्र का प्रशासन केंद्र द्वारा नहीं किया जाएगा। प्रशासनिक नियंत्रण के लिए सूत्र निम्नानुसार है → 1.5 करोड़ से कम वार्षिक राजस्व वाले 90 प्रतिशत करदाताओं के लेखा परीक्षण और जांच का नियंत्रण राज्य करेंगे। शेष करदाताओं का नियंत्रण केंद्र के पास होगा। सभी मामले बिना किसी निश्चित क्रम से चुने जाएँगे। अधिक बड़े राजस्व मामलों के लिए समान विभाजन किया जाएगा।
भारत में जीएसटी के प्रारंभ की तिथि 1 जुलाई 2017 निर्धारित है। किसी भी देश में उद्योगों को स्वयं को आतंरिक रूप से तैयार करने के लिए काफी अधिक समय की आवश्यकता होती है। भारत में सेवा कर की दरों में वृद्धि की जाने की संभावना है, हालांकि यह वृद्धि बहुत अधिक नहीं होगी। केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) और एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) को शासित करने वाले कानून पृथक होंगे, और ये अत्यधिक जटिल हैं जिनमें काफी खामियां हैं। विभिन्न कर स्लैब के अंतर्गत आने वाली वस्तुओं और सेवाओं का वर्गीकरण, जो निम्नानुसार है – 0 प्रतिशत, 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत, 28 प्रतिशत – अत्यंत महत्वपूर्ण होगा। दीर्घकाल में, जब तक कर की दरें मध्यम और और कर आधार पर्याप्त रूप से व्यापक नहीं होगा तब तक वह भारत के लिए अधिक उपयोगी नहीं होगा। मौलिक (कर) सुधारों के लिए एक पूर्णतः नए विचार की आवश्यकता होती है। पिछले मानदंडों का उपयोग एक सही और अच्छा विचार नहीं होगा। अधिकांश वस्तुओं के लिए 18 प्रतिशत की मानक दर एक अच्छा विचार होगा। (अतः इनके उच्च उपभोग का अर्थ होगा अधिक उत्पादन और अधिक कर संग्रहण)। यदि बड़े पैमाने पर उपभोक्ता उपभोग को प्रोत्साहित करना है, और इस प्रकार से विनिर्माण को बढ़ावा देना है तो तेज गति से खपत वाले उपभोक्ता उत्पादों (एफएमसीजी) को कभी भी 28 प्रतिशत की स्लैब में नहीं रखा जाना चाहिए।
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