To ensure successful PPP models for Indian airports, a few corrections need to be made.
PPP model in airport privatisation
The PPP model (Public Private Partnership) has been applied to Indian airports. India’s airports were created by the Government, as they needed huge investments and long gestation periods. Later, privatisation arrived in the form of PPP (2006 à GMR Group for Delhi, GVK Group for Mumbai etc.), while Airports Authority of India (AAI) modernized Chennai and Kolkata airports. Private companies love monopolising markets which they can then milk to the fullest. Hence, competition is the best check on it. Government regulation can only be a temporary check until genuine competition arrives. Monopoly can lead to drop in quality and affordability, operational efficiency and also creation of discriminatory practices. But there is a certain monopoly power given, so that viability can be ensured. Example – no other airport can come up within 150 kms of existing airport, or else the “right of first refusal” to be given. And then there’s regulation of prices etc. So, Indian regulators have given a method of annual tariff increase by a factor less than the annual retail inflation increase.
Increase = Inflation Rate – X, where X = Efficiency Gain. So, the private airport operator has to reduce operating costs by X percent annually (either increase efficiency or reduce costs), thereby giving consumers (the airlines and the travellers) the benefit of reducing prices. The problem arose when 6 yrs after 2006, the Civil Aviation Ministry in 2012 arrived at a negative X value of 334%, thereby minus and minus makes plus, thereby costs rise and not fall. Negative X value is found by wrongly calculating it – i.e. by equating prices to costs (of running the airport). This is an “endogenous” calculation rather than the originally thought “exogenous” calculation that would have come through efficient operations. So there will be little incentive for private operators to truly become efficient. This is not good for the whole system, as airports are economic enablers for the whole economy. Integrity and objectivity of the PPP model requires that the upcoming Ahmedabad and Jaipur airport privatisation follow the “exogenous” X-factor calculation.
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हवाईअड्डा निजीकरण में पीपीपी प्रारूप
सार्वजनिक निजी भागीदारी मॉडल (पीपीपी) भारतीय हवाई अड्डों पर अनुप्रयुक्त किया गया है। भारत के हवाई अड्डों का निर्माण सरकार द्वारा किया गया था क्योंकि इनके निर्माण के लिए भारी मात्रा में निवेश की आवश्यकता थी साथ ही इनकी पक्वनावधि भी लंबी होती है। बाद में (वर्ष 2006 में) पीपीपी के रूप में निजीकरण आया (दिल्ली के लिए जीएमआर समूह, मुंबई के लिए जीवीके समूह, इत्यादि) जबकि भारतीय वायुपत्तन प्राधिकरण ने चेन्नई और कोलकाता हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण किया।
निजी कंपनियां एकाधिकार वाले बाजार को पसंद करती हैं जिनका वे पूरी तरह से दोहन कर सकती हैं। अतः इसपर सर्वश्रेष्ठ नियंत्रण प्रतिस्पर्धा है। सरकारी विनियमन केवल उस समय तक के लिए अस्थाई नियंत्रण हो सकता है जब तक वास्तविक प्रतिस्पर्धक नहीं आते।
एकाधिकार का परिणाम गुणवत्ता और सामर्थ्, परिचालनात्मक कुशलता में कमी और भेदभावपूर्ण पद्धतियों के निर्माण में हो सकता है।
परंतु एक विशिष्ट एकाधिकार शक्ति प्रदत्त की गई है ताकि उनकी व्यवहार्यता सुनिश्चित की जा सके। उदाहरण - विद्यमान हवाईअड्डे के 150 किमी के दायरे में कोई अन्य हवाई अड्डा निर्मित नहीं हो सकता, अन्यथा ‘‘पहले इंकार का अधिकार‘‘ दिया जाएगा। और उसके बाद कीमतों का विनियमन इत्यादि भी है।
अतः भारतीय नियामकों ने वार्षिक प्रशुल्क वृद्धि की एक ऐसी पद्धति दी है जो वार्षिक मुद्रास्फीति वृद्धि से एक घात कम होगी।
वृद्धि = मुद्रास्फीति की दर - एक्स, जहाँ एक्स = कुशलता लाभ। अतः निजी हवाई अड्डा संचालक को परिचालन लागत में प्रति वर्ष एक्स प्रतिशत की कमी करनी होती है (या तो वह कुशलता में वृद्धि करे या लागत में कमी करे) और इस प्रकार ग्राहकों को (एयरलाइन्स और यात्रियों को) घटती कीमतों का लाभ प्रदान करे। समस्या तब उठी जब वर्ष 2006 के छह वर्ष बाद वर्ष 2012 में नागरिक विमानन मंत्रालय 334 प्रतिशत ऋणात्मक एक्स मूल्य पर पहुंचा और इस प्रकार ऋण और ऋण मिलकर धन बनते हैं अतः लागतें बढ़ती ही हैं, कम नहीं होती। ऋणात्मक एक्स मूल्य इसकी गलत गणना से निकाली गई है - अर्थात मूल्यों को लागत के साथ समान करके (हवाई अड्डों के परिचालन में)। यह प्रारंभ में परिकल्पित बहिर्जात गणना के बजाय एक अंतर्जात गणना है, जो कुशल परिचालन के माध्यम से प्राप्त होती। अतः निजी संचालकों को कुशल बनने के लिए कोई प्रोत्साहन ही नहीं होगा। यह संपूर्ण व्यवस्था की दृष्टि से अच्छा नहीं होगा क्योंकि हवाई अड्डे संपूर्ण अर्थव्यवस्था के आर्थिक समर्थक हैं। पीपीपी मॉडल की वस्तुनिष्ठता और निष्पक्षता के लिए आवश्यक है कि आगे आने वाले अहमदाबाद और जयपुर हवाई अड्डों के निजीकरण के लिए बहिर्जात एक्स घात गणना का अनुपालन किया जाना चाहिए।
वृद्धि = मुद्रास्फीति की दर - एक्स, जहाँ एक्स = कुशलता लाभ। अतः निजी हवाई अड्डा संचालक को परिचालन लागत में प्रति वर्ष एक्स प्रतिशत की कमी करनी होती है (या तो वह कुशलता में वृद्धि करे या लागत में कमी करे) और इस प्रकार ग्राहकों को (एयरलाइन्स और यात्रियों को) घटती कीमतों का लाभ प्रदान करे। समस्या तब उठी जब वर्ष 2006 के छह वर्ष बाद वर्ष 2012 में नागरिक विमानन मंत्रालय 334 प्रतिशत ऋणात्मक एक्स मूल्य पर पहुंचा और इस प्रकार ऋण और ऋण मिलकर धन बनते हैं अतः लागतें बढ़ती ही हैं, कम नहीं होती। ऋणात्मक एक्स मूल्य इसकी गलत गणना से निकाली गई है - अर्थात मूल्यों को लागत के साथ समान करके (हवाई अड्डों के परिचालन में)। यह प्रारंभ में परिकल्पित बहिर्जात गणना के बजाय एक अंतर्जात गणना है, जो कुशल परिचालन के माध्यम से प्राप्त होती। अतः निजी संचालकों को कुशल बनने के लिए कोई प्रोत्साहन ही नहीं होगा। यह संपूर्ण व्यवस्था की दृष्टि से अच्छा नहीं होगा क्योंकि हवाई अड्डे संपूर्ण अर्थव्यवस्था के आर्थिक समर्थक हैं। पीपीपी मॉडल की वस्तुनिष्ठता और निष्पक्षता के लिए आवश्यक है कि आगे आने वाले अहमदाबाद और जयपुर हवाई अड्डों के निजीकरण के लिए बहिर्जात एक्स घात गणना का अनुपालन किया जाना चाहिए।
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