The EVM and VVPAT debate is bound to get prolonged, given the huge political stakes involved | इवीएम और वीवीपैट का विवाद निश्चित तौर पर लंबा खिंचने वाला है, चूंकि राजनीतिक तौर पर बहुत कुछ दांव पर लगा है
Indian elections and EVMs controversy
Sadly it seems to be a common practice in India now, that after every election the losing parties start blaming the EVMs (Electronic Voting Machines) for some imagined fraud or malfunction. This despite the fact that the Election Commission of India (ECI) has time and again demonstrated the reliability of EVMs with transparent measures. Various Court judgments can also be cited, which upheld the reliability of the machines.
Why are Indian EVMs tamper-proof? (1) EVMs used in India, are standalone machines, not networked either by wire or by wireless to any other machine or system, and hence are not vulnerable to influence or manipulation from any other source, (2) The software in the machine is burnt into a one-time programmable chip and can never be altered or tampered with, (3) This source code is not handed over to any outsider.
The standard operating procedure (SOP) prescribed by the ECI is : (1) Political parties and candidates are provided an opportunity to participate in testing the reliability of the machines, (2) During the first level of testing, party representatives are invited. They can select randomly 5% machines in which up to 1000 votes are polled to demonstrate reliability of the machines, (3) A computer programme randomly allocates machines to constituencies, (4) in the second level of testing, the machines are randomly allocated from the constituency headquarters to the polling station, using a computer programme, (5) At the second level, the candidates are allowed to check the machines randomly. This information can be passed on to their representatives at the polling stations, (6) Finally, before the start of the polling process, each presiding officer conducts a mock poll to demonstrate the correctness of the machines. When some people alleged that the machines are programmed to record votes to the same candidate who gets the first 50 votes, the ECI mandated using 100 votes in the mock poll.
The other standard weapon employed by the losers is the reference of countries where EVMs have been given up! Netherlands and Germany are cited, but in Netherlands, the machines used were networkable PC-type running on OS (Operating System), and in case of Germany, their Supreme Court had disallowed EVMs because their law did not have the enabling provision. This situation arose in India also in 1984, as the law at that time had provision for use of ballot paper only. You can download many useful Election related resources from Bodhi Resources page. People also wrongly cite the example of the US, whereas there such a networkable DRS (Direct Recording System) machine is extensively used. In fact, the Bush-Gore election spat in 2000 was over the ‘misreading’ of votes recorded on ballot papers.
In the post-2009 general elections, an expert form the US conceded that standalone; non-networked Indian machines cannot be interfered with. Another security measure in the Indian machines against the Trojan horse or secret programme in the software to transfer votes to a particular party is that machines of a different vintage are used in an election. This negates the possibility of the machines being programmed even before the names of the candidates are announced by the parties. (The position of a candidate in the EVM is decided alphabetically). Read many Bodhi Saars on elections here. Read our full Bodhi on State of Indian economy and elections. here The introduction of VVPAT (Voter Verifiable Paper Audit Trail) is a step in the right direction, which will further strengthen transparency. However, full coverage with VVPAT is expected by 2019.
A controversy erupted in April 2017 when election officers in Madhya Pradesh were seen giving demonstration of EVMs and VVPATs, which actually malfunctioned, in a video gone viral. The state govt. promptly transferred the officials (DM and SP) but opposition parties latched onto the issue. This EVM debate won't settle anytime soon!
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भारतीय चुनाव और इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनें (ईवीएम) विवाद
दुर्भाग्य से संभवतः भारत में यह एक आम प्रक्रिया हो गई है कि प्रत्येक चुनाव के बाद पराजित दल ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) को किसी काल्पनिक धोखाधड़ी या खराबी के लिए दोष देना शुरू कर देती हैं। यह उस तथ्य के बावजूद होता है जबकि भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने बार-बार पारदर्शिता के उपायों के साथ ईवीएम की विश्वसनीयता को प्रदर्शित किया है। इस संबंध में कुछ न्यायालयीन निर्णयों का भी हवाला दिया जा सकता है जिन्होंने इन मशीनों की विश्वसनीयता को मान्य किया है।
भारत की ईवीएम छेड़छाड़-मुक्त क्यों हैं? (1) भारत में उपयोग की जाने वाली ईवीएम स्टैंडअलोन मशीनें हैं जिन्हें तार की सहायता से या बेतार की सहायता से किसी अन्य मशीन या प्रणाली के साथ जोड़ा (नेटवर्क) नहीं गया है। अतः वे किसी अन्य स्रोत से प्रभावित होने या उनमें किसी अन्य स्रोत के माध्यम से हेराफेरी करना संभव नहीं है, (2) मशीन में उपयोग किया गया सॉफ्टवेयर एक-बार प्रोग्राम करने योग्य चिप में जलाया जाता है और इसमें कभी भी संशोधन नहीं किया जा सकता और न ही उसमें हेराफेरी की जा सकती है, (3) यह स्रोत कूट किसी भी बाहरी व्यक्ति को नहीं दिया जाता।
भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित की गई मानक परिचालन प्रक्रिया (एसओपी) : (1) राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को मशीनों की विश्वसनीयता के परीक्षण का अवसर दिया जाता है, (2) परीक्षण के प्रथम चरण के दौरान राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जाता है। मशीनों की विश्वसनीयता के परीक्षण के लिए वे बिना किसी भी अनुक्रम के कोई भी पांच प्रतिशत मशीनें चुन सकते हैं, जिनमें 1000 तक मत दर्ज किये जाते हैं, (3) एक कंप्यूटर प्रोग्राम बिना किसी निर्धारित अनुक्रम के निर्वाचन क्षेत्रों को मशीनें आवंटित करता है, (4) परीक्षण के द्वितीय चरण में एक कंप्यूटर प्रोग्राम का उपयोग करते हुए ये मशीनें एक बार फिर से बेतरतीब तरीके से निर्वाचन क्षेत्र मुख्यालय से निर्वाचन केन्द्रों को आवंटित की जाती हैं, (5) दूसरे चरण में प्रत्याशी किसी भी अनुक्रम में मशीनों की जांच कर सकते हैं। यह जानकारी निर्वाचन केन्द्रों पर उनके प्रतिनिधियों को प्रेषित की जा सकती है, (6) अंत में मतदान प्रक्रिया शुरू होने से पहले प्रत्येक पीठासीन अधिकारी मशीनों की सत्यता को प्रदर्शित करने के लिए एक कृत्रिम मतदान आयोजित करता है। जब कुछ लोगों ने यह आरोप लगाया कि मशीनों को उस विशिष्ट प्रत्याशी के पक्ष में मत दर्ज करने के लिए प्रोग्राम किया गया है जिसे पहले 50 मत प्राप्त हुए हैं, तो निर्वाचन आयोग ने कृत्रिम मतदान में 100 मत दर्ज करना अनिवार्य कर दिया। बोधि संसाधन पृष्ठ से आप अनेक निर्वाचन संबंधी उपयोगी संसाधन डाउनलोड कर सकते हैं।
पराजित प्रत्याशियों और दलों द्वारा उन्प्योग किया जाने वाला एक अन्य मानक हथियार है ऐसे देशों का संदर्भ देना जहाँ ईवीएम के उपयोग को त्याग दिया गया है! इस संदर्भ में नीदरलैंड्स और जर्मनी का उदाहरण अवश्य रूप से दिया जाता है, परंतु नीदरलैंड्स में उपयोग की जाने वाली मशीनें नेटवर्क करने योग्य पीसी प्रकार की थीं जो ऑपरेटिंग सिस्टम (ओएस) पर चलती थीं, जबकि जर्मनी के मामले में वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने ईवीएम का उपयोग इसलिए अस्वीकृत कर दिया था क्योंकि उनके कानून में समर्थकारी प्रावधान नहीं थे। भारत में भी यह स्थिति वर्ष 1984 में उत्पन्न हुई थी जब तत्कालीन कानून में केवल मत-पत्र का ही प्रावधान था। लोग अमेरिका का उदाहरण भी गलत ढंग से देते हैं जबकि वहां नेटवर्क करने योग्य डीआरएस (प्रत्यक्ष दर्ज करने की व्यवस्था) मशीनों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। वास्तव में, वर्ष 2000 का बुश-गोरे चुनाव विवाद मत-पत्रों पर दर्ज किये गए मतों को गलत ढंग से पढ़े जाने के कारण हुआ था।
वर्ष 2009 के चुनाव के बाद अमेरिका के एक विशेषज्ञ ने यह स्वीकार किया था कि भारत में उपयोग की जाने वाली स्टैंडअलोन; गैर-नेटवर्क की गई मशीनों में छेड़छाड़ करना संभव नहीं हैस्टैंडअलोन भारतीय मशीनों में ट्रोजन हॉर्स या किसी विशिष्ट दल के पक्ष में मतदान के लिए मशीनों को प्रोग्राम करने के आरोपों से बचने के लिए किया गया एक अन्य सुरक्षा उपाय यह है कि चुनाव में किसी अन्य वर्ष में निर्मित मशीन का उपयोग किया जाता है। इससे राजनीतिक दलों द्वारा प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करने से पहले ही मशीनों को प्रोग्राम करने की संभावना समाप्त हो जाती है। (ईवीएम में प्रत्याशी की स्थिति उसके नाम के अक्षर द्वारा निर्धारित होती है)। चुनाव पर अनेक बोधि सार यहाँ पढ़ें और भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति और चुनावों पर हमारी बोधि यहाँ पढ़ें। वीवीपीएटी (मतदाता सत्यापनपत्र पेपर ऑडिट ट्रेल) सही दिशा में उठाया गया कदम है जो पारदर्शिता को और अधिक सशक्त बनाएगा। हालांकि वीवीपीएटी का पूर्ण उपयोग वर्ष 2019 से ही संभव हो पाएगा।
जब अप्रैल 2017 में मध्य प्रदेश में एवीएम और वीवीपैट का डेमो देते चुनाव अधिकारियों का विडियो वायरल हुआ, जिसमें मशीन गलत चल रही थी, तो विपक्षी दलों ने तुरंत इस मुद्दे को हवा दी। एवीएम का मुद्दा तुरंत ठंडा होने वाला नहीं है।
भारत की ईवीएम छेड़छाड़-मुक्त क्यों हैं? (1) भारत में उपयोग की जाने वाली ईवीएम स्टैंडअलोन मशीनें हैं जिन्हें तार की सहायता से या बेतार की सहायता से किसी अन्य मशीन या प्रणाली के साथ जोड़ा (नेटवर्क) नहीं गया है। अतः वे किसी अन्य स्रोत से प्रभावित होने या उनमें किसी अन्य स्रोत के माध्यम से हेराफेरी करना संभव नहीं है, (2) मशीन में उपयोग किया गया सॉफ्टवेयर एक-बार प्रोग्राम करने योग्य चिप में जलाया जाता है और इसमें कभी भी संशोधन नहीं किया जा सकता और न ही उसमें हेराफेरी की जा सकती है, (3) यह स्रोत कूट किसी भी बाहरी व्यक्ति को नहीं दिया जाता।
भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित की गई मानक परिचालन प्रक्रिया (एसओपी) : (1) राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को मशीनों की विश्वसनीयता के परीक्षण का अवसर दिया जाता है, (2) परीक्षण के प्रथम चरण के दौरान राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जाता है। मशीनों की विश्वसनीयता के परीक्षण के लिए वे बिना किसी भी अनुक्रम के कोई भी पांच प्रतिशत मशीनें चुन सकते हैं, जिनमें 1000 तक मत दर्ज किये जाते हैं, (3) एक कंप्यूटर प्रोग्राम बिना किसी निर्धारित अनुक्रम के निर्वाचन क्षेत्रों को मशीनें आवंटित करता है, (4) परीक्षण के द्वितीय चरण में एक कंप्यूटर प्रोग्राम का उपयोग करते हुए ये मशीनें एक बार फिर से बेतरतीब तरीके से निर्वाचन क्षेत्र मुख्यालय से निर्वाचन केन्द्रों को आवंटित की जाती हैं, (5) दूसरे चरण में प्रत्याशी किसी भी अनुक्रम में मशीनों की जांच कर सकते हैं। यह जानकारी निर्वाचन केन्द्रों पर उनके प्रतिनिधियों को प्रेषित की जा सकती है, (6) अंत में मतदान प्रक्रिया शुरू होने से पहले प्रत्येक पीठासीन अधिकारी मशीनों की सत्यता को प्रदर्शित करने के लिए एक कृत्रिम मतदान आयोजित करता है। जब कुछ लोगों ने यह आरोप लगाया कि मशीनों को उस विशिष्ट प्रत्याशी के पक्ष में मत दर्ज करने के लिए प्रोग्राम किया गया है जिसे पहले 50 मत प्राप्त हुए हैं, तो निर्वाचन आयोग ने कृत्रिम मतदान में 100 मत दर्ज करना अनिवार्य कर दिया। बोधि संसाधन पृष्ठ से आप अनेक निर्वाचन संबंधी उपयोगी संसाधन डाउनलोड कर सकते हैं।
पराजित प्रत्याशियों और दलों द्वारा उन्प्योग किया जाने वाला एक अन्य मानक हथियार है ऐसे देशों का संदर्भ देना जहाँ ईवीएम के उपयोग को त्याग दिया गया है! इस संदर्भ में नीदरलैंड्स और जर्मनी का उदाहरण अवश्य रूप से दिया जाता है, परंतु नीदरलैंड्स में उपयोग की जाने वाली मशीनें नेटवर्क करने योग्य पीसी प्रकार की थीं जो ऑपरेटिंग सिस्टम (ओएस) पर चलती थीं, जबकि जर्मनी के मामले में वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने ईवीएम का उपयोग इसलिए अस्वीकृत कर दिया था क्योंकि उनके कानून में समर्थकारी प्रावधान नहीं थे। भारत में भी यह स्थिति वर्ष 1984 में उत्पन्न हुई थी जब तत्कालीन कानून में केवल मत-पत्र का ही प्रावधान था। लोग अमेरिका का उदाहरण भी गलत ढंग से देते हैं जबकि वहां नेटवर्क करने योग्य डीआरएस (प्रत्यक्ष दर्ज करने की व्यवस्था) मशीनों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। वास्तव में, वर्ष 2000 का बुश-गोरे चुनाव विवाद मत-पत्रों पर दर्ज किये गए मतों को गलत ढंग से पढ़े जाने के कारण हुआ था।
वर्ष 2009 के चुनाव के बाद अमेरिका के एक विशेषज्ञ ने यह स्वीकार किया था कि भारत में उपयोग की जाने वाली स्टैंडअलोन; गैर-नेटवर्क की गई मशीनों में छेड़छाड़ करना संभव नहीं हैस्टैंडअलोन भारतीय मशीनों में ट्रोजन हॉर्स या किसी विशिष्ट दल के पक्ष में मतदान के लिए मशीनों को प्रोग्राम करने के आरोपों से बचने के लिए किया गया एक अन्य सुरक्षा उपाय यह है कि चुनाव में किसी अन्य वर्ष में निर्मित मशीन का उपयोग किया जाता है। इससे राजनीतिक दलों द्वारा प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करने से पहले ही मशीनों को प्रोग्राम करने की संभावना समाप्त हो जाती है। (ईवीएम में प्रत्याशी की स्थिति उसके नाम के अक्षर द्वारा निर्धारित होती है)। चुनाव पर अनेक बोधि सार यहाँ पढ़ें और भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति और चुनावों पर हमारी बोधि यहाँ पढ़ें। वीवीपीएटी (मतदाता सत्यापनपत्र पेपर ऑडिट ट्रेल) सही दिशा में उठाया गया कदम है जो पारदर्शिता को और अधिक सशक्त बनाएगा। हालांकि वीवीपीएटी का पूर्ण उपयोग वर्ष 2019 से ही संभव हो पाएगा।
जब अप्रैल 2017 में मध्य प्रदेश में एवीएम और वीवीपैट का डेमो देते चुनाव अधिकारियों का विडियो वायरल हुआ, जिसमें मशीन गलत चल रही थी, तो विपक्षी दलों ने तुरंत इस मुद्दे को हवा दी। एवीएम का मुद्दा तुरंत ठंडा होने वाला नहीं है।
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