Civil Services of India need a major systemic overhaul if public's faith is to be maintained.
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Making Civil Services more efficient
In Indian governance systems, the political executive is supreme. They are elected, and answerable to the Parliament. The next tier of unelected powerful officers form the administration, and come through the All India Services and the Central Services, and are directed (controlled) by the political executive. The topmost hierarchy of IAS and IPS (and Indian Forest Service) is considered almost inviolate. Governments refrain from rocking the boat on such issues. But rampant corruption and inefficiency can harm the govt’s image. The NDA government terminated (compulsorily retired) two IPS and one IAS officer from service in 2017, under the Service Rules mandating a review upon 25 years of service or the officer reaching 50 yrs of age.
Corruption in such services is an open secret, and the top political executive needs to exercise strong control over the civil services as that is where the common citizen interfaces with the govt. Services have it good – (a) Pay Commissions have improved the payscales a lot, (b) Promotions happen with time without heroic efforts, (c) Without major personal effort on knowledge upgradation, system still takes care of you. Key conditions for effective cleaning-up are – (a) No malice towards anyone, (b) Swift targeted action against corrupt and useless officers, (c) Reviews should be objective. Structural problems in civil services – (a) Bureaucracy has become too big for the nation, (b) Many posts are useless and only for namesake, (c) Lack of integrity across services (IAS, IPS, IFoS …), (d) Lack of proper mentoring by senior officers. A government can try and rectify the situation boldly. But problems may arise at the Administrative Tribunals stage, which often reverse government decisions. That can demotivate even honest political executives.
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लोक सेवाओं को अधिक कुशल बनाना
भारतीय शासन प्रणाली में राजनीतिक कार्यकारी सर्वोच्च होता है। वे निर्वाचित होते हैं और संसद के प्रति जवाबदेह होते हैं। गैर-निर्वाचित सशक्त अधिकारियों की दूसरी श्रेणी प्रशासन का निर्माण करती है, और ये अधिकारी अखिल भारतीय सेवाओं और केंद्रीय सेवाओं से आते हैं जिन्हें राजनीतिक कार्यकारी द्वारा निर्देशित (नियंत्रित) किया जाता है। भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा (और भारतीय वन सेवा) के शीर्षस्थ पदक्रम को लगभग अखंड माना जाता है। ऐसे मामलों में सरकार उनके कार्य में रूकावट पैदा करने से बचती है। परंतु अनियंत्रित भ्रष्टाचार और अकुशलता सरकार की छवि को धूमिल कर सकती है। एनडीए सरकार ने वर्ष 2017 में दो भारतीय पुलिस सेवा और एक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की सेवाएँ सेवा नियमों के तहत समाप्त कर दी हैं (अनिवार्य सेवा निवृत्ति) जिसके तहत 25 वर्ष की सेवा पूर्ण होने पर या अधिकारी द्वारा 50 वर्ष की आयु पूरी करने पर समीक्षा की अनिवार्यता है।
इस प्रकार की सेवाओं में भ्रष्टाचार एक प्रकट रहस्य है और शीर्ष राजनीतिक कार्यकारी के लिए लोक सेवाओं पर मजबूत नियंत्रण रखना आवश्यक है क्योंकि यही वह स्थान है जहाँ सामान्य नागरिक सरकार के साथ आमने-सामने का संवाद करता है। सेवाओं को सभी प्रकार की सुविधाएँ पर्याप्त रूप से प्रदान की गई हैं - (ए) वेतन आयोगों ने वेतन के स्तर में भारी सुधार किया है, (बी) बहुत अधिक प्रयास के बिना भी पदोन्नतियां समय पर प्रदान की जाती हैं, (सी) अधिक व्यक्तिगत प्रयास या ज्ञान के उन्नयन के बिना, व्यवस्था आपका ध्यान रखती है। प्रभावी शुद्धिकरण के लिए महत्वपूर्ण शर्तें निम्नानुसार हैं - (ए) किसी के विरुद्ध कोई द्वेष या दुर्भावना नहीं, (बी) भ्रष्ट और निरुपयोगी अधिकारियों के विरुद्ध त्वरित और लक्षित कार्यवाही, (सी) समीक्षाएं वस्तुनिष्ठ होनी चाहियें। लोक सेवाओं में संरचनात्मक समस्याएँ - (ए) नौकरशाही देश की दृष्टि से अत्यधिक बड़ी हो गई है, (बी) अनेक पद बेकार और केवल नाममात्र के हैं, (सी) समस्त लोक सेवाओं में (भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय वन सेवा ...) सत्यनिष्ठा का अभाव, (डी) वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उचित निगरानी का अभाव। सरकार प्रयास करके साहसपूर्वक स्थिति में परिवर्तन कर सकती है। परंतु प्रशासनिक न्यायाधिकरणों के स्तर पर समस्याएँ आ सकती हैं, जो आमतौर पर सरकार के निर्णयों को उलट देते हैं। इस प्रकार की कार्यवाही ईमानदार राजनीतिक कार्यकारियों को भी हतोत्साहित कर सकती है।
इस प्रकार की सेवाओं में भ्रष्टाचार एक प्रकट रहस्य है और शीर्ष राजनीतिक कार्यकारी के लिए लोक सेवाओं पर मजबूत नियंत्रण रखना आवश्यक है क्योंकि यही वह स्थान है जहाँ सामान्य नागरिक सरकार के साथ आमने-सामने का संवाद करता है। सेवाओं को सभी प्रकार की सुविधाएँ पर्याप्त रूप से प्रदान की गई हैं - (ए) वेतन आयोगों ने वेतन के स्तर में भारी सुधार किया है, (बी) बहुत अधिक प्रयास के बिना भी पदोन्नतियां समय पर प्रदान की जाती हैं, (सी) अधिक व्यक्तिगत प्रयास या ज्ञान के उन्नयन के बिना, व्यवस्था आपका ध्यान रखती है। प्रभावी शुद्धिकरण के लिए महत्वपूर्ण शर्तें निम्नानुसार हैं - (ए) किसी के विरुद्ध कोई द्वेष या दुर्भावना नहीं, (बी) भ्रष्ट और निरुपयोगी अधिकारियों के विरुद्ध त्वरित और लक्षित कार्यवाही, (सी) समीक्षाएं वस्तुनिष्ठ होनी चाहियें। लोक सेवाओं में संरचनात्मक समस्याएँ - (ए) नौकरशाही देश की दृष्टि से अत्यधिक बड़ी हो गई है, (बी) अनेक पद बेकार और केवल नाममात्र के हैं, (सी) समस्त लोक सेवाओं में (भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय वन सेवा ...) सत्यनिष्ठा का अभाव, (डी) वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उचित निगरानी का अभाव। सरकार प्रयास करके साहसपूर्वक स्थिति में परिवर्तन कर सकती है। परंतु प्रशासनिक न्यायाधिकरणों के स्तर पर समस्याएँ आ सकती हैं, जो आमतौर पर सरकार के निर्णयों को उलट देते हैं। इस प्रकार की कार्यवाही ईमानदार राजनीतिक कार्यकारियों को भी हतोत्साहित कर सकती है।
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