The Rohingyas are not only a stateless people, they represent a great human tragedy of today.
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A tragedy called the Rohingyas
The Rohingya Muslims number more than a million today in Myanmar (of a total of 15 lacs), belong to the Rakhine State of Myanmar (Burma), and are persecuted. Myanmar says that the Rohingyas migrated into Arakan following Burmese independence in 1948 or after the Bangladesh liberation war in 1971. And the Buddhists and Rohingyas have had a violent relationship. In 2016, 9 police officers were allegedly killed by Rohingya militants, and a fresh cycle of violence has seen grave human tragedies. Surprisingly, these allegations come when the leader of Myanmar is the Nobel peace prize winner Aung San Suu Kyi (courageous non-violent struggle for democracy). Unfortunately, she holds little real power. The US and EU etc. have not taken direct interest due to their own problems. EU has given financial aid, though. China maintains good relations with Burmese generals to access natural resources there. It also wants access to the Bay of Bengal. (Remember CPEC and Gwadar port?) In the past, India has always helped Rohingya immigrants. But as India needs Myanmar help in containing militancy in northeast it is not doing much now. So the Rohingyas are a stateless people, with no home, no savior and no voice in south Asia. Another example of how history can play itself out violently in the present.
You can download an EU and UNSC factsheets from the Bodhi Resources page for detailed reading on this crisis.
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रोहिंग्या नामक त्रासदी
म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों की संख्या आज दस लाख (कुल 15 लाख में से) से अधिक है, जो म्यांमार (बर्मा) के रकाइन राज्य से हैं और इन्हें सताया जा रहा है। म्यांमार का कहना है कि वर्ष 1948 में बर्मा की स्वतंत्रता के बाद या 1971 के बांग्लादेश के युद्ध के बाद रोहिंग्या अरकान में स्थानांतरित हुए। और बौद्धों और रोहिंग्या के बीच के संबंध काफी हिंसक रहे हैं। वर्ष 2016 में रोहिंग्या उग्रवादियों द्वारा कथित रूप से 9 पुलिस अधिकारियों की हत्या की गई, और हिंसा के एक ताजे घटनाक्रम में भयानक मानव त्रासदी देखी गई। आश्चर्यजनक रूप से ये आरोप ऐसे समय किये जा रहे हैं जब म्यांमार की नेता नोबेल पुरस्कार विजेता ऑंग सान सू की (लोकतंत्र के लिए साहसी अहिंसक संघर्ष करने वाली) हैं। दुर्भाग्य से उनके पास वास्तविक शक्ति काफी कम है। अमेरिका और यूरोपीय संघ इत्यादि ने अपनी स्वयं की समस्याओं के कारण इसमें कोई सीधी रूचि नहीं ली है। हालांकि यूरोपीय संघ ने वित्तीय सहायता प्रदान की है। म्यांमार के प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच बनाने के लिए चीन ने बर्मा के सेनापतियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे हैं। साथ ही वह बंगाल की खाड़ी में भी प्रवेश की इच्छा रखता है (सीपैक और ग्वादर बंदरगाह याद है?) पूर्व में, भारत ने हमेशा रोहिंग्या आप्रवासियों की सहायता की है। परंतु चूंकि भारत अपने उत्तर पूर्वी राज्यों में उग्रवाद के नियंत्रण में म्यांमार से अधिक सहायता चाहता है, अतः अब वह भी अधिक कुछ नहीं कर रहा है। अतः रोहिंग्या एक राज्य-विहीन लोग बन गए हैं जिनके पास अपना कोई घर नहीं है, जिनकी रक्षा करने वाला कोई नहीं है और जिनकी दक्षिण एशिया में कोई आवाज नहीं है। यह इस बात का एक और उदाहरण है कि किस प्रकार से इतिहास वर्तमान में भी हिंसक खेल खेल सकता है।
इस संकट पर अधिक विस्तृत सामग्री आप बोधि संसाधन पृष्ठ से डाउनलोड कर सकते हैं
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