Capitalism's equations may be reset in the coming years. The Davos WEF 2017 meet was an indicator.
Capitalism and Davos in Trump’s time
The World Economic Forum (WEF) is a Swiss Non-profit (NGO), established in 1971 by Klaus Schwab, with the motto “Committed to improving the state of the world”. Over the years, the Davos WEF meet has become the meeting point for richest elite and political leaders of the world, who control today’s economy and politics. WEF is the ultimate champion of “free trade” and “globalisation”. That is also the source of criticism. In 2017, the global economy started recovering on many fronts (1) Oil prices, (2) Stock prices, (3) China’s internal slowdown etc.
However, major realignments in world politics and economy are scaring the elite. President Donald Trump’s perspective is not status-quoist, and a lot can change. And then, Brexit! After 1945, the US worked hard to create a “World Order” that was liberal & democratic. Suddenly, worldwide, there are huge reactions to that world order. That is “populism”. The patterns of change are unknown. Huge or Catastrophic – only time will tell! China snapped the opportunity, and President Xi Jinping came for the first time. This is a clear signal China wants to protect the globalisation patterns that made it rich, and strong. Major challenge for the world elites – public has lost a lot of faith in institutions that were supposed to protect them from wealth inequalities. World never was more unequal. The global financial crisis (recession / US housing crisis) shocked the world in 2008/9. Europe’s migrant crisis in 2015/16 added fuel to the disbelief fire. One thing is clear – Globalisation as it was through 1980s-2016, will not be so in the future.
[ ##thumbs-o-up## Share Testimonial here - make our day!] [ ##certificate## Volunteer for Bodhi Booster portal]
Amazing Courses - Online and Classroom
ट्रम्प के काल में पूँजीवाद और दावोस
विश्व आर्थिक मंच (डब्लूईएफ) वर्ष 1971 में क्लाउस श्वाब द्वारा “विश्व की स्थिति में सुधार करने की प्रतिबद्धता” के आदर्श-वाक्य के साथ स्थापित किया गया एक गैर-लाभ गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) है। बीते वर्षों के दौरान विश्व आर्थिक मंच की दावोस बैठक विश्व के सर्वाधिक अमीर व्यक्तियों और राजनीतिक नेताओं के मिलने का स्थान बन गई है जो आज की अर्थव्यवस्था और राजनीति को नियंत्रित करते हैं। विश्व आर्थिक मंच “मुक्त-व्यापार” और “वैश्वीकरण” का अंतिम समर्थक और पैरोकार है। यह भी आलोचना का स्रोत है। वर्ष 2017 में वैश्विक अर्थव्यवस्था की अनेक मोर्चों पर पुनः बहाली की शुरुआत हुई (1) तेल की कीमतें, (2) शेयरों की कीमतें, (3) चीन की आतंरिक मंदी इत्यादि।
हालांकि विश्व राजनीति और अर्थव्यवस्था में होने वाले प्रमुख पुनर्निर्धारण कुलीनों (संभ्रांतों) को भयभीत कर रहे हैं। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प की अवधारणा यथास्थिति बनाए रखने वाली नहीं है, और इसके परिणामस्वरूप बहुत कुछ बदल सकता है। और उसके बाद ब्रेक्सिट! वर्ष 1945 के बाद अमेरिका ने एक ऐसी “विश्व व्यवस्था” निर्मित करने के लिए कड़ा परिश्रम किया जो उदार और लोकतांत्रिक थी। अचानक, विश्व स्तर पर उस विश्व व्यवस्था पर विशाल प्रतिक्रियाएं व्यक्त की जा रही हैं। वह है “लोकलुभावनवाद”। परिवर्तन की प्रवृत्तियां अज्ञात हैं। विशाल हैं या विनाशकारी हैं - यह समय ही बताएगा! चीन ने इस अवसर को लपक लिया, और राष्ट्रपति शी जिनपिंग पहली बार आये। यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि चीन वैश्वीकरण के स्वरुप का संरक्षण करना चाहता है, जिसने उसे संपन्न और शक्तिशाली बनाया है। विश्व के कुलीनों के लिए बड़ी चुनौती - लोगों का उन संस्थाओं पर विश्वास काफी कम हो गया है जिनके पास उन्हें सांपत्तिक असमानताओं से संरक्षित करने की जिम्मेदारी थी। विश्व इतना असमान इससे पूर्व पहले कभी नहीं था। वैश्विक वित्तीय संकट (मंदी / अमेरिका का आवास संकट) ने विश्व को वर्ष 2008-09 में गहरा धक्का पहुँचाया था। वर्ष 2015-16 के यूरोपीय आप्रवासी संकट ने इस अविश्वास की आग में और अधिक ईंधन डाला। एक बात स्पष्ट है - कि वैश्वीकरण 1980 के दशक से वर्ष 2016 तक जैसा था, वह भविष्य में वैसा नहीं होगा।
Useful resources for you
[Newsletter ##newspaper-o##] [Bodhi Shiksha channel ##play-circle-o##] [FB ##facebook##] [हिंदी बोधि ##leaf##] [Sameeksha live ##graduation-cap##] [Shrutis ##fa-headphones##] [Quizzes ##question-circle##] [Bodhi Revision ##book##]
COMMENTS