The Jallikattu issue raised broader questions regarding society's approach to animal rights too.
Of Society and Animals
Animals need as much, if not more, protection and security as human beings. There are quite a few laws that provide security and protection to animals. Many non-government organizations are also active in this area. Jallikattu, the bull-taming sport of Tamil Nadu, was banned by the Supreme Court through its 2014 judgment. However, the Tamil Nadu government has recently enacted another law which permits the festival. The present laws for the protection of animals are not only inadequate, but those present are too flexible to ensure any real protection and security to animals. Jawaharlal Nehru had said that one test of civilization is the growth of the feeling and practice of compassion. Rukmini Devi Arundale was the first to introduce a bill in the Parliament on prevention of cruelty to animals, way back in 1952 which was intended to replace the colonial law on this subject. However, when the Prevention of Cruelty to Animals Act was finally enacted, some of the major principles of the original Bill were not incorporated in it. The question basically is that of possessing moral rights. We as human animals have a higher claim on moral rights than the non-human animals. Watch our detailed lecture on Hinduism to learn more on the subject. If it is wrong to inflict pain on human beings, it is equally wrong to do so with animals. Rights and duties go hand and hand. If we impose duties on animals as their masters, why shouldn’t we recognize their rights? A Bodhi on education and literacy in India can help you dive deep into related issues.
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समाज और पशु
पशुओं के लिए भी संरक्षण उतना ही आवश्यक है जितना वह मनुष्यों के लिए आवश्यक है। देश में कई कानून हैं जो पशुओं को संरक्षण और सुरक्षा प्रदान करते हैं। अनेक गैर-सरकारी संगठन भी इस कार्य में संलग्न हैं। तमिलनाडु का बैलों को काबू में करने के खेल जल्लीकट्टू को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसके वर्ष 2014 के निर्णय के माध्यम से प्रतिबंधित किया गया था। हालांकि तमिलनाडु सरकार ने हाल ही में एक नया कानून अधिनियमित किया है जो जल्लीकट्टू की अनुमति देता है। पशु संरक्षण के विद्यमान कानून न केवल अपर्याप्त हैं बल्कि वे वास्तविक और उचित संरक्षण सुनिश्चित करने की दृष्टि से काफी लचीले भी हैं। जवाहरलाल नेहरु ने कहा था कि सभ्यता की एक परीक्षा है दया की भावना और उसका अनुपालन। रुक्मिणी देवी अरुंडेल वे पहली महिला थीं जिन्होंने वर्ष 1952 में पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम के लिए संसद में एक निजी विधेयक प्रस्तुत किया था, जिसका उद्देश्य इस विषय पर मौजूद उपनिवेशवादी कानून को प्रतिस्थापित करना था। हालांकि जब पशु क्रूरता निवारण अधिनियम अंततः पारित हुआ तो इसमें मूल विधेयक के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों को अंतर्निहित नहीं किया गया था। मूल प्रश्न नैतिक अधिकारों के धारण का है। मानव पशु के रूप में हम गैर-मानव पशुओं की तुलना में अधिक नैतिक अधिकारों का दावा करते हैं। इस विषय पर और समझने हेतु हिन्दू धर्म पर हमारा व्याख्यान देखें यदि मनुष्यों को चोट पहुँचाना गलत है तो पशुओं को पीड़ा और चोट पहुंचाना भी उतना ही गलत होना चाहिए। अधिकार और कर्तव्य साथ-साथ चलते हैं। यदि हम स्वामियों के रूप में पशुओं पर कर्तव्य अधिरोपित करते हैं तो क्या हमें उनके अधिकारों को मान्य नहीं करना चाहिए? हमें यह समझने की आवश्यकता है। भारत में शिक्षा और साक्षरता पर हमारी बोधि से आपको चिंतन हेतु और सामग्री मिलेगी।
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