What exactly is the role of a Judge in a democracy? We check in the US context.
Of Judiciary and Executive
In a democratic system of governance, the three primary and mutually independent organs of governance are (1) the Executive, (2) the Legislature, and (3) the Judiciary. Their functions, powers and jurisdictions are well defined. The legislature is entrusted with the function of making laws, the executive with the implementation of the laws made by the legislature, and the judiciary interprets these laws. And they are expected to perform their functions within their pre-defined jurisdictions and within their given powers. Maintaining independence and neutrality of all organs of governance is the key to the smooth and harmonious functioning of the democratic system. Any unnecessary encroachment by one organ on the jurisdiction or powers of any other organ may lead to conflicts and a disruption of harmony among the three. However, there are instance of encroachments by one organ on the powers and jurisdictions of any of the other two, which results in conflicts between them. Read our comprehensive Bodhi on Executive-Judiciary deadlock for more inputs.
Recently, the new US administration under Donald Trump nominated Neil Gorsuch to the US Supreme Court. His nomination is being looked at as strengthening the new administration’ hands against its political foes. Gorsuch, however, took exception to Trump’s remarks against a judge after the latter blocked the President’s travel ban imposed through an executive order against the citizens of seven Muslim-dominated countries. By doing so, he has exhibited a fine example of judicial independence. The US administration and the US Congress can make laws within the framework of the constitution, but it is the duty of the judiciary to uphold these laws with neutrality. (What is true for the US is equally true for India). He has further explained what is the job of the judges is. It is to apply the law as it is, focusing backward and not to decide cases based on their own moral convictions or their policy consequences. Download many useful resources from Bodhi Resources page. India at present seems to be in an era of judicial activism, which some say is due to severe problems with executive governance. These could be principles that the Indian judges also need to follow, to uphold the principles of neutrality, judicial independence and separation of powers.
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न्यायपालिका और कार्यकारी
शासन की लोकतांत्रिक व्यवस्था में शासन के तीन महत्वपूर्ण और परस्पर स्वतंत्र अंग हैं (1) कार्यपालिका, (2) विधायिका और (3) न्यायपालिका। उनके कार्य, अधिकार और शक्तियां और कार्यक्षेत्र व्यवस्थित रूप से परिभाषित हैं। विधायिका का कार्य कानून निर्माण का है, कार्यपालिका का कार्य इन कानूनों के क्रियान्वयन का है, जबकि न्यायपालिका का कार्य विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों की व्याख्या का है। और यह अपेक्षा की जाती है कि ये सभी अंग अपने कार्य अपने-अपने पूर्व-परिभाषित कार्यक्षेत्र की मर्यादाओं के भीतर रहकर अपने दिए गए अधिकारों के अंतर्गत ही करेंगे। लोकतांत्रिक व्यवस्था के सुचारू रूप से सचालन की दृष्टि से यह आवश्यक है कि इन सभी अंगों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखा जाए। किसी एक अंग द्वारा किसी अन्य के अधिकारों या शक्तियों पर अनचाहे अतिक्रमण का परिणाम टकराव और लोकतांत्रिक व्यवस्था के संचालन में बाधा के रूप में होगा। हालांकि समय-समय पर शासन के विभिन्न अंगों द्वारा एक-दूसरे के अधिकारों पर अतिक्रमण की घटनाएँ आम हैं, जिनके परिणामस्वरूप टकराव की स्थिति अक्सर निर्मित होती रहती है। कार्यकारी-न्यायपालिका के टकराव पर हमारी बोधि पढ़ें यहाँ
हाल ही में ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिकी प्रशासन द्वारा नील गोर्सच को सर्वोच्च न्यायालय के लिए नामांकित किया गया। उनके नामांकन को राजनीतिक विरोधियों के विरुद्ध ट्रम्प प्रशासन को सशक्त करने के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि गोर्सच ने राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा उनके द्वारा लगाए गए यात्रा प्रतिबंध को स्थगित करने के दिए गए निर्णय के बाद न्यायाधीशों पर की गई अभद्र टिप्पणियों पर ऐतराज जताया है। ऐसा करके उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है। अमेरिकी प्रशासन और अमेरिकी कांग्रेस संविधान के दायरे में रहकर कानून बना सकते हैं, परंतु इन कानूनों को निष्पक्षता के साथ बनाए रखने की जिम्मेदारी न्यायपालिका की है। (जो बात अमेरिका के लिए सही है वही भारत के लिए भी सही है) आगे उन्होंने न्यायाधीशों के कार्य को भी विस्तार से विषद किया है। उनका कार्य है कानून का उसके मूल स्वरुप में अनुप्रयोग करना। उन्हें पिछले उदाहरणों और निर्णयों के आधार पर किसी मामले पर निर्णय देना चाहिए न कि अपनी स्वयं की नैतिक अवधारणाओं या उनके नीतिगत परिणामों के आधार पर। बोधि संसाधन पृष्ठ से अनेक उपयोगी संसाधन डाउनलोड करें। भारत वर्तमान में न्यायिक सक्रियता के दौर से गुजर रहा है, जो कुछ लोगों के अनुसार कार्यकारी प्रशासन की गंभीर कमियों की वजह से है। ये वे सिद्धांत हैं जिनका भारतीय न्यायाधीश भी पालन कर सकते हैं, ताकि निष्पक्षता, न्यायिक स्वतंत्रता और शक्तियों के विभाजन के सिद्धांतों को संधारित किया जा सके।
हाल ही में ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिकी प्रशासन द्वारा नील गोर्सच को सर्वोच्च न्यायालय के लिए नामांकित किया गया। उनके नामांकन को राजनीतिक विरोधियों के विरुद्ध ट्रम्प प्रशासन को सशक्त करने के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि गोर्सच ने राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा उनके द्वारा लगाए गए यात्रा प्रतिबंध को स्थगित करने के दिए गए निर्णय के बाद न्यायाधीशों पर की गई अभद्र टिप्पणियों पर ऐतराज जताया है। ऐसा करके उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है। अमेरिकी प्रशासन और अमेरिकी कांग्रेस संविधान के दायरे में रहकर कानून बना सकते हैं, परंतु इन कानूनों को निष्पक्षता के साथ बनाए रखने की जिम्मेदारी न्यायपालिका की है। (जो बात अमेरिका के लिए सही है वही भारत के लिए भी सही है) आगे उन्होंने न्यायाधीशों के कार्य को भी विस्तार से विषद किया है। उनका कार्य है कानून का उसके मूल स्वरुप में अनुप्रयोग करना। उन्हें पिछले उदाहरणों और निर्णयों के आधार पर किसी मामले पर निर्णय देना चाहिए न कि अपनी स्वयं की नैतिक अवधारणाओं या उनके नीतिगत परिणामों के आधार पर। बोधि संसाधन पृष्ठ से अनेक उपयोगी संसाधन डाउनलोड करें। भारत वर्तमान में न्यायिक सक्रियता के दौर से गुजर रहा है, जो कुछ लोगों के अनुसार कार्यकारी प्रशासन की गंभीर कमियों की वजह से है। ये वे सिद्धांत हैं जिनका भारतीय न्यायाधीश भी पालन कर सकते हैं, ताकि निष्पक्षता, न्यायिक स्वतंत्रता और शक्तियों के विभाजन के सिद्धांतों को संधारित किया जा सके।
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