How relevant will the marquee brands like IIMs be in a deglobalising world?
Relevance of the IIMs in a deglobalised world
There is change in the air – the world is de-globalising rapidly. The IIMs are Indian torchbearers in a globalised world, suddenly facing a new reality. But there are many unanswered questions when it comes to the IIMs.
The government of India put up the IIM Bill in Lok Sabha in February 2017. Many criticized it as being a rehash of an earlier IIM A MoA (Memorandum of Association). Some say it is not, rather it is a thoroughly worked-out document. Autonomy has had a special place in IIM officials’ hearts. They have cried hoarse everytime they felt that autonomy has been compromised with. Media usually plays along. They have carried this idea of autonomy to their entrance tests also. Entrance Test papers are never released, questions are hidden behind a wall of legal threats issued at the start of the test, and private agencies run the whole show [a probably profitable public venture turned private and opaque! And everyone’s silent?]. Worthwhile to remember that IIMs teach transparency and governance in their classrooms! Read – Why India lacks a Harvard Business Reviews – this seems more true today!
IIMs have a management problem - In recent years, the government has opened many new IIMs. As is visible to anyone, most have been launched as a political decision, not from an administratively-feasible perspective. Poor physical infra, poor faculty strength, and poor image may impact brand IIM in the medium to long run! The new Bill gives accountability a broader definition (which is good), but elitism must end. There is no mention of that. Nowhere in the world have large educational brands expanded like this, and retained their brand value. Only in India is such an attempt being made. Time alone will tell if this succeeds. The weight of evidence is against it. Perhaps a second tier of a “N I M” could have been a better idea – National Institutes of Management. Just because many Indian students go abroad and pay hefty fees for MBA programmes does not mean India opens IIMs in unknown locations to meet demand. Has anyone heard of a Harvard at San Francisco? Or Washington? Or New Jersey? Or Bentonville? But in India, we are trying to do precisely that.
Blended learning – a mix of classroom and distance learning – is considered a great idea worldwide. Maybe it will work here also, given the demand for it. But the biggest issues remain unanswered – In a deglobalising world, will the typical IIM education remain relevant, as borders come up obstructing free flow of ideas, people and trade? No structured answers are forthcoming. For more video analyses on education, visit our Bodhi Shiksha channel
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उल्टे वैश्विकरण के दौर में आईआईएम की प्रासंगिकता
हवा में बदलाव हो रहा है - विश्व तेजी से वि-वैश्वीकृत हो रहा है। वैश्वीकृत विश्व में भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) पथप्रदर्शक हैं, वे अचानक एक नई वास्तविकता का सामना कर रहे हैं। परंतु इनके संबंध में अनेक अनुत्तरित प्रश्न हैं।
भारत सरकार ने आईआईएम विधेयक फरवरी 2017 में लोकसभा में प्रस्तुत किया। अनेक लोग इसे पूर्व के बहिर्नियम (मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन) का ही एक रूप बता रहे हैं। वहीं कुछ अन्य का कहना है कि ऐसा नहीं है बल्कि यह एक अत्यंत व्यवस्थित रूप से अध्ययन करके बनाया गया दस्तावेज है। आईआईएम अधिकारियों के दिलों में स्वायत्तता का एक विशेष स्थान रहा है। उन्हें जब भी लगता है कि स्वायत्तता के साथ समझौता किया जा रहा है तो वे अपनी आवाज उठाना शुरू कर देते हैं। उन्होंने स्वायत्तता के इस विचार को अपनी प्रवेश परीक्षा में भी चलाया है। प्रवेश परीक्षा के प्रश्न-पत्र कभी भी जारी नहीं किये जाते, प्रश्नों को प्रवेश परीक्षा के पहले जारी की गई कानूनी दीवार की धमकियों के पीछे छिपाया जाता है, और निजी अभिकरण इस संपूर्ण गतिविधि को संचालित करते हैं [ एक संभावित लाभदायक सार्वजनिक उद्यम जो निजी और अपारदर्शी में परिवर्तित हो गया! और फिर भी सभी लोग खामोश हैं?] यह जानना रोचक होगा कि आईआईएम अपनी कक्षाओं में पारदर्शिता और शासन के पाठ पढ़ाते हैं। पढ़ें - क्यों भारत में हारवर्ड बिजनेस रिव्यू जैसी पत्रिका नहीं है
आईआईएम जूझ रहे हैं एक प्रबंधन समस्या से - हाल के वर्षों में सरकार ने अनेक नए संस्थान शुरू किये हैं। जैसा सभी को स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, इनमें से अधिकांश की शुरुआत एक राजनीतिक निर्णय के रूप में की गई है न कि किसी प्रशासनिक रूप से व्यवहार्य परिप्रेक्ष्य से। कमजोर भौतिक अधोसंरचना, कमजोर शिक्षक संख्या और कमजोर छवि मध्य या दीर्घकाल में आईआईएम के ब्रांड को क्षति पहुंचाएंगे ! नया विधेयक जवाबदेही को एक अधिक व्यापक परिभाषा देता है (जो अच्छा है), परंतु कुलीनवाद समाप्त होनी चाहिए। विधेयक में इसका कहीं उल्लेख नहीं है। विश्व में कहीं भी बड़े शैक्षणिक ब्रांड इस तरह से विस्तारित नहीं हुए हैं और फिर भी उन्होंने अपने ब्रांड मूल्य बनाए रखे हैं। केवल भारत में ही इस प्रकार का प्रयास किया गया है। समय ही बताएगा कि यह सफल होगा या नहीं। साक्ष्य का वजन उसके विरुद्ध है। संभवतः “एन आई एम” का एक दूसरा स्तर अधिक अच्छा विचार होता - राष्ट्रीय प्रबंध संस्थान। केवल भारतीय विद्यार्थी विदेशों में जाते हैं और प्रबंधन में स्नातकोत्तर पदवी के लिए भारी शुल्क देते हैं इसका अर्थ यह नहीं है कि मांग की पूर्ति के लिए भारत किसी भी स्थान पर आईआईएम शुरू कर दिए जायें। क्या किसी ने सैन फ्रांसिस्को या वाशिंगटन या न्यू जर्सी या बेंटनविले में हार्वर्ड का नाम सुना है? परंतु भारत में हम ठीक यही करने का प्रयास कर रहे हैं।
मिश्रित शिक्षा - कक्षा में होने वाली शिक्षा और दूरस्थ शिक्षा के मिश्रण - को विश्व स्तर पर एक अच्छा विचार माना जाता है। इसकी मांग को देखते हुए संभवतः यह यहाँ भी कारगर होगी। परंतु सबसे बड़ा प्रश्न अनुत्तरित है - वि-वैश्वीकृत विश्व में क्या यह आईआईएम शिक्षा प्रासंगिक रहेगी जब विचारों, व्यक्तियों और व्यापार के मुक्त विचारों को अवरुद्ध करने वाली सीमाएं खडी होती जा रही हैं? इनपर कोई उत्तर नहीं मिल रहे हैं। शिक्षा पर अधिक विडियो विश्लेषणों के लिए हमारे बोधि शिक्षा चैनल को देखें।
भारत सरकार ने आईआईएम विधेयक फरवरी 2017 में लोकसभा में प्रस्तुत किया। अनेक लोग इसे पूर्व के बहिर्नियम (मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन) का ही एक रूप बता रहे हैं। वहीं कुछ अन्य का कहना है कि ऐसा नहीं है बल्कि यह एक अत्यंत व्यवस्थित रूप से अध्ययन करके बनाया गया दस्तावेज है। आईआईएम अधिकारियों के दिलों में स्वायत्तता का एक विशेष स्थान रहा है। उन्हें जब भी लगता है कि स्वायत्तता के साथ समझौता किया जा रहा है तो वे अपनी आवाज उठाना शुरू कर देते हैं। उन्होंने स्वायत्तता के इस विचार को अपनी प्रवेश परीक्षा में भी चलाया है। प्रवेश परीक्षा के प्रश्न-पत्र कभी भी जारी नहीं किये जाते, प्रश्नों को प्रवेश परीक्षा के पहले जारी की गई कानूनी दीवार की धमकियों के पीछे छिपाया जाता है, और निजी अभिकरण इस संपूर्ण गतिविधि को संचालित करते हैं [ एक संभावित लाभदायक सार्वजनिक उद्यम जो निजी और अपारदर्शी में परिवर्तित हो गया! और फिर भी सभी लोग खामोश हैं?] यह जानना रोचक होगा कि आईआईएम अपनी कक्षाओं में पारदर्शिता और शासन के पाठ पढ़ाते हैं। पढ़ें - क्यों भारत में हारवर्ड बिजनेस रिव्यू जैसी पत्रिका नहीं है
आईआईएम जूझ रहे हैं एक प्रबंधन समस्या से - हाल के वर्षों में सरकार ने अनेक नए संस्थान शुरू किये हैं। जैसा सभी को स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, इनमें से अधिकांश की शुरुआत एक राजनीतिक निर्णय के रूप में की गई है न कि किसी प्रशासनिक रूप से व्यवहार्य परिप्रेक्ष्य से। कमजोर भौतिक अधोसंरचना, कमजोर शिक्षक संख्या और कमजोर छवि मध्य या दीर्घकाल में आईआईएम के ब्रांड को क्षति पहुंचाएंगे ! नया विधेयक जवाबदेही को एक अधिक व्यापक परिभाषा देता है (जो अच्छा है), परंतु कुलीनवाद समाप्त होनी चाहिए। विधेयक में इसका कहीं उल्लेख नहीं है। विश्व में कहीं भी बड़े शैक्षणिक ब्रांड इस तरह से विस्तारित नहीं हुए हैं और फिर भी उन्होंने अपने ब्रांड मूल्य बनाए रखे हैं। केवल भारत में ही इस प्रकार का प्रयास किया गया है। समय ही बताएगा कि यह सफल होगा या नहीं। साक्ष्य का वजन उसके विरुद्ध है। संभवतः “एन आई एम” का एक दूसरा स्तर अधिक अच्छा विचार होता - राष्ट्रीय प्रबंध संस्थान। केवल भारतीय विद्यार्थी विदेशों में जाते हैं और प्रबंधन में स्नातकोत्तर पदवी के लिए भारी शुल्क देते हैं इसका अर्थ यह नहीं है कि मांग की पूर्ति के लिए भारत किसी भी स्थान पर आईआईएम शुरू कर दिए जायें। क्या किसी ने सैन फ्रांसिस्को या वाशिंगटन या न्यू जर्सी या बेंटनविले में हार्वर्ड का नाम सुना है? परंतु भारत में हम ठीक यही करने का प्रयास कर रहे हैं।
मिश्रित शिक्षा - कक्षा में होने वाली शिक्षा और दूरस्थ शिक्षा के मिश्रण - को विश्व स्तर पर एक अच्छा विचार माना जाता है। इसकी मांग को देखते हुए संभवतः यह यहाँ भी कारगर होगी। परंतु सबसे बड़ा प्रश्न अनुत्तरित है - वि-वैश्वीकृत विश्व में क्या यह आईआईएम शिक्षा प्रासंगिक रहेगी जब विचारों, व्यक्तियों और व्यापार के मुक्त विचारों को अवरुद्ध करने वाली सीमाएं खडी होती जा रही हैं? इनपर कोई उत्तर नहीं मिल रहे हैं। शिक्षा पर अधिक विडियो विश्लेषणों के लिए हमारे बोधि शिक्षा चैनल को देखें।
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