Ironically, India's federal polity and government is being run by political parties with unitary structures.
Undemocratically run Parties run our democracy!
There is a lasting paradox in Indian political system à though the country has a federal political system, the Indian political parties do not have that. In fact, all political parties have a unitary system. The unique word – “High Command” – reflects this disease. It is true not only for the national parties, but for the state or regional parties as well, and even the newly emerged AAP. For example : If we try to name a few leaders in a party like BSP, one just can’t think beyond Mayawati. Or in SP, till very recently, it was only Mulayam Singh Yadav. AAP has no face worth the mention apart from Kejriwal. So even if the party fares well in some states, where are the leaders? All political parties accept the system of elections every five years, both at the centre as well in the states. But how many parties in India do have internal elections to elect their office bearers and party chiefs? BSP is now a fairly old political party. But do we remember any leader other than Mayawati having been elected as the party chief? Some may argue that some parties do follow the internal election practice. But is that a meaningful exercise is the question. A federal system of governance is essentially based on the principle of devolution of power at various levels. But in India, we find that we want to run a democratic system through a feudal system. One hardly remembers a state chief minister having been elected by the elected representatives of the state assembly. They are, more often than not, imposed by the high command. Read our detailed Bodhi on Changing Trends in Indian Politics for more inputs
[##leaf## Our full Bodhi on Assembly Election Results 2017 - A must read!]
One must understand the fact that as a democracy matures, the electorate also mature. They also want power through their own local representatives. Political parties need to realise this soon. What Congress has made of itself during all these years is because there are no leaders in the party beyond a family. It is not a matter of pride for the Congress party that Sonia Gandhi has led the party for almost 20 years now, but it is an acceptance of the fact that the party has failed to produce any other equally strong contender. For the future, they have Rahul Gandhi (getting ready for how many years? Nobody knows). For many video analyses on Indian politics, welcome to Bodhi Shiksha channel! The recent assembly elections upto 2017 prove beyond doubt that parties have won elections where they had strong state and local leaders, like Rajasthan, MP, Chhattisgarh etc. It is high time political parties realise that they evolve a federal structure of governance internally as well if they want to retain their identity and political power.
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हमारे लोकतंत्र को चलातीं अलोकतांत्रिक पार्टियां!
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की विडंबना à हालांकि देश ने संघीय शासन व्यवस्था को अपनाया है, फिर भी यह व्यवस्था देश के अधिकांश राजनीतिक दलों में प्रतिबिंबित नहीं होती। इसके विपरीत, वास्तविकता यह है कि सभी राजनीतिक दल एकात्मक व्यवस्था के अनुसार कार्य करते हैं।
ऐसा नहीं है कि उपरोक्त स्थिति केवल राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की है, बल्कि क्षेत्रीय दलों, और यहाँ तक कि आम आदमी पार्टी जैसे नए दलों में भी स्थिति इसके उलट नहीं है। ‘हाई कमान’ संस्कृति भारत के राजनीतिक दलों की विशेषता बन गई है।
उदाहरणार्थ, यदि हम बसपा जैसे किसी दल में नेता ढूँढने जाएँ तो मायावती के अलावा किसी अन्य नेता का संभवतः हमें नाम भी पता नहीं होगा। उसी प्रकार अब से कुछ समय पहले तक समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के आलावा अन्य कोई महत्वपूर्ण नेता उभरकर नहीं आया। आम आदमी पार्टी में केजरीवाल के अतिरिक्त कोई अन्य नेता नहीं है, अतः यदि यह पार्टी कुछ अन्य राज्यों मे अच्छा प्रदर्शन करती भी है तो उसके पास स्थानीय नेता हैं कहाँ?
भारत के सभी राजनीतिक दल प्रत्येक पांच वर्ष में संसद और विधान सभा चुनावों की प्रक्रिया को तो स्वीकार करते हैं परंतु देश में कितने राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों और अध्यक्षों को चुनने के लिए अर्थपूर्ण आतंरिक चुनाव होते हैं? बसपा की स्थापना को अनेक वर्ष हो चुके हैं, स्वर्गीय कांशीराम के बाद मायावती के अलावा किसी अन्य नेता को पार्टी प्रमुख बनते हुए हमनें सुना है? कुछ दलों में दलीय संविधान की अनिवार्यताओं के चलते आतंरिक चुनाव होते अवश्य हैं, परंतु प्रश्न यह है किक्या यह वास्तव में एक अर्थपूर्ण प्रक्रिया है?
संघीय शासन व्यवस्था मूल रूप से विभिन्न स्तरों पर शक्ति के हस्तांतरण के सिद्धांत पर आधारित है। भारत में स्थिति यह है कि हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्रीय शासन व्यवस्था सामंती दलीय व्यवस्था के माध्यम से चलाना चाहते हैं।
हमें शायद ही याद होगा कि चुनाव के बाद किसी राज्य के मुख्यमंत्री का चुनाव राज्य के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया गया हो। अधिकांश मामलों में मुख्यमंत्री हाई कमान की ओर से थोपा जाता है।
भारतीय राजनीति की बदलती प्रवृत्तियां पर और पढ़ें, हमारी बोधि में!
[##leaf## ये रही चुनावी नतीजों 2017 पर हमारी पूर्ण बोधि - अवश्य पढ़ें]
हमें इस वास्तविकता को समझना होगा कि जैसे-जैसे लोकतंत्र परिपक्व होता जाता है वैसे-वैसे मतदाता भी परिपक्व होते हैं। वे भी अपने स्थानीय प्रतिनिधियों के माध्यम से सत्ता और शक्ति चाहते हैं। राजुनीतिक दलों को भी जल्द से जल्द इस वास्तविकता को समझना और स्वीकारना होगा। कांग्रेस पार्टी ने इतने वर्षों के दौरान आज अपनी जो स्थिति बना ली है उसका कारण यह है कि उस पार्टी में एक परिवार के बाहर अन्य कोई नेता हैं ही नहीं। कांग्रेस पार्टी के लिए यह गर्व का विषय नहीं है कि श्रीमती सोनिया गाँधी लगभग 20 वर्षों से पार्टी की अध्यक्ष हैं, बल्कि उनके लिए यह आत्ममंथन का विषय होना चाहिए कि पिछले 20 वर्षों के दौरान वे ऐसा एक भी नेता सृजित नहीं कर पाए हैं जो पार्टी का नेतृत्व कर सके। भविष्य के लिए उनके पास राहुल गाँधी हैं (जो पता नहीं पिछले कितने वर्षों से कमान संभालने के लिए तैयार हो रहे हैं)! भारतीय राजनीति के विभिन्न पहलुओं के विश्लेषण विडियो देखें हमारे बोधि शिक्षा चैनल पर! हाल के समय में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम यह साबित करते हैं कि राजनीतिक दलों ने उन्हीं राज्यों में चुनाव जीते हैं जहाँ मजबूत स्थानीय नेतृत्व और नेता मौजूद थे, उदाहरणार्थ राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ इत्यादि। समय आ गया है कि राजनीतिक दल इस बात को समझें और स्वीकार करें कि यदि उन्हें अपनी पहचान और राजनीतिक अस्तित्व शक्ति को बचाना है तो उन्हें दलों के भीरत भी संघीय व्यवस्था का विकास और अनुपालन करना होगा।
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हमें इस वास्तविकता को समझना होगा कि जैसे-जैसे लोकतंत्र परिपक्व होता जाता है वैसे-वैसे मतदाता भी परिपक्व होते हैं। वे भी अपने स्थानीय प्रतिनिधियों के माध्यम से सत्ता और शक्ति चाहते हैं। राजुनीतिक दलों को भी जल्द से जल्द इस वास्तविकता को समझना और स्वीकारना होगा। कांग्रेस पार्टी ने इतने वर्षों के दौरान आज अपनी जो स्थिति बना ली है उसका कारण यह है कि उस पार्टी में एक परिवार के बाहर अन्य कोई नेता हैं ही नहीं। कांग्रेस पार्टी के लिए यह गर्व का विषय नहीं है कि श्रीमती सोनिया गाँधी लगभग 20 वर्षों से पार्टी की अध्यक्ष हैं, बल्कि उनके लिए यह आत्ममंथन का विषय होना चाहिए कि पिछले 20 वर्षों के दौरान वे ऐसा एक भी नेता सृजित नहीं कर पाए हैं जो पार्टी का नेतृत्व कर सके। भविष्य के लिए उनके पास राहुल गाँधी हैं (जो पता नहीं पिछले कितने वर्षों से कमान संभालने के लिए तैयार हो रहे हैं)! भारतीय राजनीति के विभिन्न पहलुओं के विश्लेषण विडियो देखें हमारे बोधि शिक्षा चैनल पर! हाल के समय में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम यह साबित करते हैं कि राजनीतिक दलों ने उन्हीं राज्यों में चुनाव जीते हैं जहाँ मजबूत स्थानीय नेतृत्व और नेता मौजूद थे, उदाहरणार्थ राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ इत्यादि। समय आ गया है कि राजनीतिक दल इस बात को समझें और स्वीकार करें कि यदि उन्हें अपनी पहचान और राजनीतिक अस्तित्व शक्ति को बचाना है तो उन्हें दलों के भीरत भी संघीय व्यवस्था का विकास और अनुपालन करना होगा।
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