The impact of demonetisation on FMCG and informal seems pronounced. Turnaround is awaited.
Our speed stands demonetized!
There are opposite claims on the economic situation post DeMO, by the government and the economists, analysts and thinkers. Whereas the govt. claims that the situation has since normalised, the ground realities do not match these claims. There is no doubt about the fact that demonetisation has dealt a telling blow on the economy, atleast in the short run. Both the formal as well as the informal sectors are badly hit. And there are no concrete figures and facts to indicate when he economy would come back to the normal. The sales of most FMCG companies like Godrej, Hindustan Lever fell drastically between October and December 2016. Do read our comprehensive Bodhi on Demonetisation! The profit after tax (PAT) of twelve FMCG companies declined drastically during Q3 (the third quarter) of 2016-17 for the first time in 12 years. This is indication of the impact the govt. move has had on the economy.
If this is the situation of leading and established large scale companies, the plight of the informal sector is anybody’s guess. The above proves that there is a very close bond between corporate India and rural India, where about 70% of our population lives. It also proves that the govt. decision of demonetisation has equally hit corporates, rural as well as urban India. Although the govt. is trying to push cashless economy, there is no real distinction between a cash and a cashless economy. Though corporates would pay through cheques or electronic transfers to their suppliers and employees, they would also accept cash sales from their millions of distributors. For many video analyses on Demonetisation, welcome to Bodhi Shiksha channel! Rural India, where most villages do not have banking facilities, are totally dependent on cash transactions. The withdrawal of about 86% cash (in the form of high denomination notes of Rs. 500 and Rs. 1000) from the system has brought economic activities in rural areas to a near halt. During all this period, farmers either dumped their vegetable produce on the roads or fed them to their cattle as they could not afford to bring them to the markets. This has created a supply crunch in cities and an opportunity for middlemen to make more money. So who has been benefited by demonetisation?
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हमारी विमुद्रीकृत गति!
विमुद्रीकरण पश्चात की आर्थिक स्थिति के बारे में सरकार और अर्थशास्त्रियों, विश्लेषकों, और विचारकों द्वारा परस्पर विरोधी दावे किये जा रहे हैं। एक ओर जहाँ सरकार का दावा है कि अब स्थिति तेजी से सामान्य हो रही है, वहीं जमीनी हकीकत कुछ और ही है जो सरकारी दावों से मेल नहीं खाती।
इस तथ्य के बारे में तो दो राय नहीं है कि विमुद्रीकरण के कारण अर्थव्यवस्था को, कम से कम अल्पकाल में तो तगड़ी मार पड़ी है। औपचारिक और अनौपचारिक, दोनों क्षेत्र बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। और इस बारे में कोई ठोस आंकडे और तथ्य उपलब्ध नहीं हैं जो बता सकें कि अर्थव्यवस्था कब सामान्य हो पाएगी।
गोदरेज, हिंदुस्तान लीवर जैसी अधिकांश तेजी से चलने वाले उपभोक्ता उत्पाद (एफएमजीसी) कंपनियों की बिक्री में अक्टूबर-दिसंबर 2016 की तिमाही में भारी गिरावट दर्ज हुई है। विमुद्रीकरण पर और पढ़ें, हमारी बोधि में!
एक अग्रणी आढ़त कंपनी के विश्लेषकों ने बताया कि देश की बारह बड़ी एफ.एम.सी.जी. कंपनियों के वर्ष 2016 की तीसरी तिमाही के वर्षग-दर-वर्ष कर पश्चात लाभ में भारी गिरावट हुई है। ऐसा बारह वर्षों में पहली बार हुआ है। यह इस तथ्य को दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि विमुद्रीकरण का देश की अर्थव्यवस्था पर कितना गहरा प्रभाव पड़ा है।
यदि देश की प्रतिष्ठित, बड़ी और स्थापित कंपनियों की स्थिति यह है तो छोटी कंपनियों और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की स्थिति का अंदाज लगाना आसान है। उपरोक्त तथ्य इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि निगमित भारत और ग्रामीण भारत के बीच एक गहरा संबंध है, जहाँ देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है इससे यह बात भी साबित होती है कि विमुद्रीकरण के सरकार के निर्णय का प्रभाव निगमों, शहरी भारत और ग्रामीण भारत पर समान रूप से पड़ा है। हालांकि सरकार नकदविहीन अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है, परंतु एक नकद अर्थव्यवस्था और नकदविहीन अर्थव्यवस्था के बीच कोई वास्तविक अंतर नहीं है। हालांकि बड़े निगम अपने आपूर्तिकर्ताओं और कर्मचारियों को चेक या इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन के माध्यम से भुगतान करते हैं, वहीं वे अपने करोड़ों वितरकों से नकद बिक्री को भी खुशी से स्वीकार करते हैं। विमुद्रीकरण के विभिन्न पहलुओं के विश्लेषण विडियो देखें हमारे बोधि शिक्षा चैनल पर! ग्रामीण भारत, जहाँ अधिकांश गांवों में बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं, पूरी तरह से नकद अर्थव्यवस्था पर निर्भर है। अतः चूंकि लगभग 86 प्रतिशत मुद्रा को (500 और 100 रुपये के नोटों के रूप में) व्यवस्था से बाहर कर दिया है, तो ग्रामीण भारत में आर्थिक गतिविधियाँ लगभग पूरी तरह से रुक सी गई हैं। इस संपूर्ण अवधि के दौरान किसानों ने अपने सब्जी उत्पादों को या तो सडकों पर फेंक दिया या जानवरों को खिला दिया क्योंकि इन्हें बाजारों तक पहुंचाने के लिए उनके पास पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं था। इसके कारण शहरों में आपूर्ति कमी की समस्या निर्मित हो गई है, जिसका लाभ बिचौलियों ने उठाया है। तो आखिर नोटबंदी से लाभ हुआ किसे?
यदि देश की प्रतिष्ठित, बड़ी और स्थापित कंपनियों की स्थिति यह है तो छोटी कंपनियों और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की स्थिति का अंदाज लगाना आसान है। उपरोक्त तथ्य इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि निगमित भारत और ग्रामीण भारत के बीच एक गहरा संबंध है, जहाँ देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है इससे यह बात भी साबित होती है कि विमुद्रीकरण के सरकार के निर्णय का प्रभाव निगमों, शहरी भारत और ग्रामीण भारत पर समान रूप से पड़ा है। हालांकि सरकार नकदविहीन अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है, परंतु एक नकद अर्थव्यवस्था और नकदविहीन अर्थव्यवस्था के बीच कोई वास्तविक अंतर नहीं है। हालांकि बड़े निगम अपने आपूर्तिकर्ताओं और कर्मचारियों को चेक या इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन के माध्यम से भुगतान करते हैं, वहीं वे अपने करोड़ों वितरकों से नकद बिक्री को भी खुशी से स्वीकार करते हैं। विमुद्रीकरण के विभिन्न पहलुओं के विश्लेषण विडियो देखें हमारे बोधि शिक्षा चैनल पर! ग्रामीण भारत, जहाँ अधिकांश गांवों में बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं, पूरी तरह से नकद अर्थव्यवस्था पर निर्भर है। अतः चूंकि लगभग 86 प्रतिशत मुद्रा को (500 और 100 रुपये के नोटों के रूप में) व्यवस्था से बाहर कर दिया है, तो ग्रामीण भारत में आर्थिक गतिविधियाँ लगभग पूरी तरह से रुक सी गई हैं। इस संपूर्ण अवधि के दौरान किसानों ने अपने सब्जी उत्पादों को या तो सडकों पर फेंक दिया या जानवरों को खिला दिया क्योंकि इन्हें बाजारों तक पहुंचाने के लिए उनके पास पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं था। इसके कारण शहरों में आपूर्ति कमी की समस्या निर्मित हो गई है, जिसका लाभ बिचौलियों ने उठाया है। तो आखिर नोटबंदी से लाभ हुआ किसे?
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