Doubling farm incomes is a noble aim, but Budget allotments indicate something is amiss.
Not quite the logic
Union budget 2017-18 revolved around ten themes for farmers and the rural population. Budgets are of two types – development budget and dole budget. Analysts have tried to analyse in which category the present budget can be categorised. When the govt. talks about doubling farmers’ incomes, it should also clarify whether it is real income or nominal income, and the base year on which it is sought to be doubled. The average agri-GDP growth in the last three years has been 1.7% only. Will it be possible to achieve the objective of doubling farmers’ income with this kind of a low growth is a question that the govt. needs to answer. And if yes, then what is the roadmap? What is the govt’s investment plan for the agri sector? Does it have anything in mind for the massive investment required for this purpose? The budget allocations for agricultural and rural sectors are in the form of safety nets for farmers and poor and not for growth purposes. The allocations towards productivity enhancement schemes are very less. How does the govt. intend to spur growth with these kinds of allocations? For detailed study of Union Budget, enroll in our online program.
The budget has sought to boost investment in agriculture through NABARD borrowings for major and medium irrigation and minor-irrigation, and dairy processing infrastructure fund. But it may not be enough to ensure the intended growth. It can be said that the government has tried to move towards the development budget model, but only partially, and the dole budget model has largely overshadowed the budget. Implementation of programmes like MGNREGA is inefficient and corruption -ridden and the govt. has not initiated measures to remove that. Agricultural sector needs an investment oriented approach not pro-consumer oriented approach. Sadly, this budget falls more in the latter category. Subsidies need to be rationalised. Food and fertilizer subsidies should be routed through DBT. These measures would ensure savings which would be utilized for investment in agricultural sector to improve growth. You should read our comprehensive Bodhi on Agriculture for more information.
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तार्किकता का अभाव
वर्ष 2017-18 का बजट किसानों और ग्रामीण जनसंख्या के लिए दस विषयवस्तुओं के इर्द-गिर्द घूमता है। मूलतः बजट दो प्रकार के होते हैं - विकास बजट और खैरात बजट। विश्लेषकों ने यह विश्लेषण करने का प्रयास किया है कि वर्तमान बजट को किस वर्ग में वर्गीकृत किया जा सकता है।
जब सरकार किसानों की आय दुगना करने की बात करती है तो उसे स्पष्ट करना चाहिए कि वह वास्तविक आय की बात कर रही है या सांकेतिक आय की। साथ ही उसे उस आधार वर्ष को भी स्पष्ट करना चाहिए जिसपर यह आय दुगनी की जानी है।
पिछले तीन वर्षों के दौरान औसत कृषि वृद्धि दर मात्र 1.7 प्रतिशत रही है। क्या इस प्रकार की अल्प वृद्धि दर के साथ किसानों की आय को दुगना करने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है? और यदि हाँ तो इसके लिए सरकार के पास क्या रूपरेखा है। कृषि क्षेत्र के लिए सरकार की निवेश योजना क्या है। इस क्षेत्र के लिए आवश्यक विशाल निवेश किस प्रकार किया जाएगा? क्या सरकार के पास इसका कोई विचार है? केंद्रीय बजट को गहराई से पढ़ने हेतु पंजीयन करें हमारे ऑनलाइन प्रोग्राम में!
वर्तमान बजट में कृषि और ग्रामीण क्षेत्र के लिए किये गए आवंटन इन क्षेत्रों के लिए सुरक्षा के उद्देश्य से हैं न कि विकास के प्रयोजन से। उत्पादकता वृद्धि योजनाओं के लिए किये गए आवंटन अत्यल्प हैं। इस प्रकार के अवन्तनों के साथ सरकार कृषि वृद्धि को किस प्रकार से बढ़ावा देगी? बजट ने कृषि क्षेत्र में निवेश बढाने के लिए नाबार्ड उधार की बात कही है, जो प्रमुख और मध्यम सिंचाई योजनाओं, छोटी सिंचाई योजनाओं और डेरी प्रसंस्करण अधोसंरचना कोष के लिए है। परंतु इसके वांछित वृद्धि की दृष्टि से पर्याप्त होने की संभावना नहीं है। यह अवश्य कहा जा सकता है कि सरकार ने विकास बजट मॉडल की दिशा में जाने का प्रयास किया है, परंतु अत्यंत आंशिक रूप से, और खैरात बजट मॉडल ने बजट के अधिकांश हिस्से को आच्छादित कर दिया है। मनरेगा जैसी योजनाओं का क्रियान्वयन अकुशलता और भ्रष्टाचार से ग्रस्त है और इसे दूर करने के लिए सरकार द्वारा कोई महत्वपूर्ण पहल नहीं की गई है। कृषि क्षेत्र को विकास उन्मुख दृष्टिकोण की आवश्यकता है न कि उपभोक्ता-समर्थक उन्मुख दृष्टिकोण की। दुर्भाग्य से वर्तमान बजट अधिकतर दूसरी श्रेणी में ही आता हुआ दिखाई देता है। अनुवृत्तियों को सुसंगत बनाया जाना चाहिए। खाद्य और उर्वरक अनुवृत्तियां प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से वितरित की जानी चाहिए। ये उपाय बचत सुनिश्चित करेंगे जिसका उपयोग वृद्धि में सुधार करने के लिए कृषि क्षेत्र में निवेश के लिए किया जा सकता है। कृषि पर विस्तृत जानकारी पाएं हमारी बोधि में!
वर्तमान बजट में कृषि और ग्रामीण क्षेत्र के लिए किये गए आवंटन इन क्षेत्रों के लिए सुरक्षा के उद्देश्य से हैं न कि विकास के प्रयोजन से। उत्पादकता वृद्धि योजनाओं के लिए किये गए आवंटन अत्यल्प हैं। इस प्रकार के अवन्तनों के साथ सरकार कृषि वृद्धि को किस प्रकार से बढ़ावा देगी? बजट ने कृषि क्षेत्र में निवेश बढाने के लिए नाबार्ड उधार की बात कही है, जो प्रमुख और मध्यम सिंचाई योजनाओं, छोटी सिंचाई योजनाओं और डेरी प्रसंस्करण अधोसंरचना कोष के लिए है। परंतु इसके वांछित वृद्धि की दृष्टि से पर्याप्त होने की संभावना नहीं है। यह अवश्य कहा जा सकता है कि सरकार ने विकास बजट मॉडल की दिशा में जाने का प्रयास किया है, परंतु अत्यंत आंशिक रूप से, और खैरात बजट मॉडल ने बजट के अधिकांश हिस्से को आच्छादित कर दिया है। मनरेगा जैसी योजनाओं का क्रियान्वयन अकुशलता और भ्रष्टाचार से ग्रस्त है और इसे दूर करने के लिए सरकार द्वारा कोई महत्वपूर्ण पहल नहीं की गई है। कृषि क्षेत्र को विकास उन्मुख दृष्टिकोण की आवश्यकता है न कि उपभोक्ता-समर्थक उन्मुख दृष्टिकोण की। दुर्भाग्य से वर्तमान बजट अधिकतर दूसरी श्रेणी में ही आता हुआ दिखाई देता है। अनुवृत्तियों को सुसंगत बनाया जाना चाहिए। खाद्य और उर्वरक अनुवृत्तियां प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से वितरित की जानी चाहिए। ये उपाय बचत सुनिश्चित करेंगे जिसका उपयोग वृद्धि में सुधार करने के लिए कृषि क्षेत्र में निवेश के लिए किया जा सकता है। कृषि पर विस्तृत जानकारी पाएं हमारी बोधि में!
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