The massive mandate for PM Modi has redefined the contours of power in India. Time for some strong action now. | प्रधानमंत्री मोदी हेतु मिले विशाल जनादेश ने देश की सत्ता का रूप बदल का रख दिया है। अब समय है बड़े और कड़े निर्णयों का।
The Modi Wave – deconstructed
After the 2017 March assembly poll results, and the unexpected landslide wins for the BJP in major states (UP and also Uttarakhand), a lot of thought is going into why exit polls went wrong, how did BJP manage such wins, and how the Modi wave not only remained intact but grew in intensity and stature. Perhaps, the Indian voters have become far too matured for the political parties to understand. They may be poor, but are not silly. One analysis can be : the UP citizens wanted not to be deprived of Modi’s development agenda, hence the one way victory for BJP. (Logic : We have tried the SP and BSP, let’s give them a chance) The BJP projected itself as a potential winner (others did so too), and this helped it garner support from voters of all castes and religions. Maybe Indian voters have truly gone above caste / faith / ideological walls to become one with a development agenda. (this remains to be seen in some more elections in coming years).
[##leaf## Read our full analysis Bodhi on Assembly Elections 2017]
Many thought Amit Shah (the BJP President) scored a fluke victory in 2014. No more! He is a proven master strategist for the biggest state due to a massive score in both Lok Sabha and Assembly elections. Maybe – all parties may need to learn that caste and religion-based electoral politics is a thing of the past. Voters in UP faced a choice : (1) the family - owned Samajwadi Party of Akhilesh Yadav, (2) the one-person owned BSP, a messiah for the Dalits, and (3) the non-family owned BJP. Voters preferred the third option. (Was the family feud of (1) a poll gimmick?) There can be little denying the fact that UP voters have seen through how they’ve been used by both the SP and BSP as “vote banks” – that surely is not very dignifying. A blame on the BJP – they polarize. But with a cool head, one can see that BJP’s polarization was invisible, whereas that used by the BSP, and to an extent the SP, was flagrant and visible. The Hindu Agenda did exist, and make its presence felt at the end of the multiple phases, but it was neither too abrasive nor too blatant. (Ms Mayawati’s handing over tones of tickets only to Muslim candidates clearly was more flagrant). Political parties need to learn their lessons from these election results and adopt an agenda of “professional politics” rather than a caste-based and religion-based politics. Nothing is lost. Indian democracy is no one’s personal property. The massive victory of Modi and Shah holds the seeds of success for others. Only an open mind, devoid of poisoned subjectivity, and a development agenda needs to be brought to the forefront. The SP, or BSP, or the Congress can make it the next time. Buckle up! View relevant data on Assembly Elections 2017 March here, and download pdf resources here.
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मोदी लहर - विश्लेषण
मार्च 2017 के विधानसभा चुनाव परिणामों, और प्रमुख राज्यों (उ.प्र. और उत्तराखंड भी) में भाजपा की अप्रत्याशित भारी जीत के बाद इस बात पर काफी मंथन चल रहा है कि आखिर निर्गम मतानुमान (एग्जिट पोल) गलत क्यों साबित हुए, भाजपा ने इतनी भारी सफलता आखिर किस प्रकार प्राप्त की, और किस प्रकार मोदी लहर न केवल बरकरार रही बल्कि इसकी तीव्रता पहले से भी अधिक बढ़ी। इस विषय पर व्यापक बोधि पढ़ें।
संभवतः भारतीय मतदाता राजनीतिक दलों की समझ की तुलना में कहीं अधिक परिपक्व हुए हैं। वे गरीब हो सकते हैं, परंतु वे मूर्ख निश्चित नहीं हैं। इसका एक विश्लेषण इस प्रकार हो सकता है - संभवतः उप्र के मतदाता चाहते होंगे कि वे मोदी के विकास एजेंडा से वंचित न रहें, अतः उन्होंने भाजपा को एकतरफा जीत दिलाई : (तर्क यह है : हमने सपा और बसपा को आजमा लिया है, क्यों न भाजपा को भी एक अवसर दिया जाए)
भाजपा ने संपूर्ण चुनाव अभियान के दौरान स्वयं को संभावित विजेता के रूप में प्रस्तुत किया (हालांकि अन्य दलों ने भी ऐसा किया), अतः इससे उसे सभी जातियों और धर्मों से समर्थन जुटाने में सहायता मिली। हो सकता है कि भारतीय मतदाता सही मायनों में जाति / धर्म / विश्वास / विचारधारा इत्यादि की दीवारों से ऊपर उठ कर विकास के एजेंडा के साथ एकरूप हो रहे हैं (हालांकि आने वाले कुछ और चुनावों में यह देखना बाकी है कि वास्तव में ऐसा हुआ है या नहीं)।
[##leaf## विधानसभा के चुनावी परिणामों २०१७ पर हमारी बोधि पढ़ें यहाँ]
अनेकों को लगता था कि अमित शाह (भाजपा अध्यक्ष) ने वर्ष 2014 में संयोग से सफलता प्राप्त की थी। किन्तु अब और नहीं ! लोकसभा और विधानसभा, दोनों में देश के सबसे बड़े राज्य में इस प्रकार की सफलता दिलाकर उन्होंने साबित कर दिया है कि वे भाजपा के सर्वश्रेष्ठ और कुशल रणनीतिकार हैं। शायद अन्य दलों को भी यह वास्तविकता समझ लेनी चाहिए कि धर्म और जाति पर आधारित राजनीति अब भूतकाल का विषय हो गया है और आधुनिक राजनीति में उसका कोई स्थान नहीं है। उ.प्र. के मतदाताओं के समक्ष निम्न विकल्प थे : (1) अखिलेश यादव के परिवार के स्वामित्व वाली सपा, (2) एक-व्यक्ति के स्वामित्व वाली बसपा, जो स्वयं को दलितों की मसीहा के रूप में प्रस्तुत करती है, और (3) गैर-परिवारवाद वाली भाजपा। मतदाताओं ने तीसरा विकल्प चुना। (क्या (1) का पारिवारिक झगडा केवल एक चुनावी नाटक था?) इस बात में दो राय नहीं है कि उ.प्र. के मतदताओं ने लंबे समय से यह देखा है कि सपा और बसपा जैसे राजनीतिक दलों ने किस प्रकार से उनका “वोट-बैंक” के रूप में उपयोग किया है - यह निश्चित रूप से गरिमामय नहीं है। भाजपा पर एक आरोप यह लगता है कि वे धु्रवीकरण करते हैं। परंतु यदि हम शांत दिमाग से सोचें तो हम देख सकते हैं कि भाजपा का ध्रुवीकरण अदृश्य था, जबकि इसकी तुलना में बसपा, और कुछ हद तक सपा द्वारा किया गया ध्रुवीकरण स्पष्ट और दृश्य था। हालांकि हिंदू एजेंडा मौजूद था, और बहुविध चरणों के बाद उसने अपनी उपस्थिति दर्ज भी कराई, परंतु न तो वह अत्यधिक अपघर्षक था और न ही अत्यधिक निर्लज्ज और प्रबल था। (सुश्री मायावती द्वारा थोक में मुस्लिम प्रत्याधियों को टिकट देना अधिक ज्वलंत था) । इन चुनाव परिणामों से राजनीतिक दलों को अपने पाठ सीख लेने चाहिए और उन्हें भी जाति या धर्म आधारित राजनीति के बजाय “पेशेवर राजनीति” का एजेंडा अपनाना चाहिए। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। भारतीय लोकतंत्र किसी की जागीर नहीं है। मोदी और शाह की भारी जीत में ही अन्य दलों के लिए सफलता के बीज हैं। आवश्यकता है एक खुले दिमाग की, जो जहरीले आत्मवाद से हटकर हो, और केवल एक विकास के एजेंडा को ही सामने लाना होगा। सपा, बसपा, और कांग्रेस भी अगली बार सफलता प्राप्त कर सकते है। निराशा छोड़कर आगे बढ़ें! विधानसभा चुनाव 2017 से संबंधित डेटा यहां देखें, तथा पीडीएफ डाउनलोड करें। ।
[##leaf## विधानसभा के चुनावी परिणामों २०१७ पर हमारी बोधि पढ़ें यहाँ]
अनेकों को लगता था कि अमित शाह (भाजपा अध्यक्ष) ने वर्ष 2014 में संयोग से सफलता प्राप्त की थी। किन्तु अब और नहीं ! लोकसभा और विधानसभा, दोनों में देश के सबसे बड़े राज्य में इस प्रकार की सफलता दिलाकर उन्होंने साबित कर दिया है कि वे भाजपा के सर्वश्रेष्ठ और कुशल रणनीतिकार हैं। शायद अन्य दलों को भी यह वास्तविकता समझ लेनी चाहिए कि धर्म और जाति पर आधारित राजनीति अब भूतकाल का विषय हो गया है और आधुनिक राजनीति में उसका कोई स्थान नहीं है। उ.प्र. के मतदाताओं के समक्ष निम्न विकल्प थे : (1) अखिलेश यादव के परिवार के स्वामित्व वाली सपा, (2) एक-व्यक्ति के स्वामित्व वाली बसपा, जो स्वयं को दलितों की मसीहा के रूप में प्रस्तुत करती है, और (3) गैर-परिवारवाद वाली भाजपा। मतदाताओं ने तीसरा विकल्प चुना। (क्या (1) का पारिवारिक झगडा केवल एक चुनावी नाटक था?) इस बात में दो राय नहीं है कि उ.प्र. के मतदताओं ने लंबे समय से यह देखा है कि सपा और बसपा जैसे राजनीतिक दलों ने किस प्रकार से उनका “वोट-बैंक” के रूप में उपयोग किया है - यह निश्चित रूप से गरिमामय नहीं है। भाजपा पर एक आरोप यह लगता है कि वे धु्रवीकरण करते हैं। परंतु यदि हम शांत दिमाग से सोचें तो हम देख सकते हैं कि भाजपा का ध्रुवीकरण अदृश्य था, जबकि इसकी तुलना में बसपा, और कुछ हद तक सपा द्वारा किया गया ध्रुवीकरण स्पष्ट और दृश्य था। हालांकि हिंदू एजेंडा मौजूद था, और बहुविध चरणों के बाद उसने अपनी उपस्थिति दर्ज भी कराई, परंतु न तो वह अत्यधिक अपघर्षक था और न ही अत्यधिक निर्लज्ज और प्रबल था। (सुश्री मायावती द्वारा थोक में मुस्लिम प्रत्याधियों को टिकट देना अधिक ज्वलंत था) । इन चुनाव परिणामों से राजनीतिक दलों को अपने पाठ सीख लेने चाहिए और उन्हें भी जाति या धर्म आधारित राजनीति के बजाय “पेशेवर राजनीति” का एजेंडा अपनाना चाहिए। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। भारतीय लोकतंत्र किसी की जागीर नहीं है। मोदी और शाह की भारी जीत में ही अन्य दलों के लिए सफलता के बीज हैं। आवश्यकता है एक खुले दिमाग की, जो जहरीले आत्मवाद से हटकर हो, और केवल एक विकास के एजेंडा को ही सामने लाना होगा। सपा, बसपा, और कांग्रेस भी अगली बार सफलता प्राप्त कर सकते है। निराशा छोड़कर आगे बढ़ें! विधानसभा चुनाव 2017 से संबंधित डेटा यहां देखें, तथा पीडीएफ डाउनलोड करें। ।
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