The PM Jan Dhan Yojana seems to be actually making a dent in problems like poverty and inclusion at the root levels.
How far has Jan Dhan Yojana come?
What role do financial markets play in the lives of citizens? This question assumes different colours depending on whether we are talking about developed markets, or developing markets. In rich world, there are concerns that the financial sector (that offers products etc. to households) has become too big, and too complex. But in India, we are still in the initial stages and the government itself is pushing financial products usage to “complete” the market. The largest outreach programme in the world in this field has been – the Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana (JDY). Launched on 28-08-2014, Objective : provide banking services to unbanked population of India (25.5 crore individuals benefitted by November 2016). Financial inclusion is critical to ensuring a harmonious society. They directly benefit lower income households in India, as they promote savings, spending and reduction in transaction costs. Of the JDY bank accounts, 77% have maintained a positive balance. That is good. Over time, both savings and transactions have gone up. As people become more familiar with formal banking, they increase usage.
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There are two clear benefits that can be seen : (1) New capital comes into banking system (= fresh JDY deposits), allowing more lending, and (2) Many lower income households wanted credit, but never knew how to approach Banks. Now, this unmet demand can be met (at least for some households). If this credit grows big, then a massive impact on consumption – investment – employment at the bottom of the pyramid is possible. Studies are showing that regions in India with greater JDY exposure are showing greater increase in number and amounts of new loans granted. So the claim that unbanked households are now getting banking benefits may be true. It seems that in the long run (at least 2 to 3 years from now), the impact on GDP itself will be seen. There seems to be little impact on investments and inflation (though it is still too early to tell). Overall, PMJDY seems to be making its mark. That will be a big achievement given the history of Indian banking.
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जन-धन योजना कहां तक पहुंची है?
नागरिकों के जीवन में वित्तीय बाजार क्या भूमिका निभाते हैं? इस प्रश्न के अनेक रंग हैं, जो इस बात पर निर्भर करते हैं कि हम विकसित बाजारों की बात कर रहे हैं या विकासशील बाजारों की।
संपन्न विश्व में इस बात की चिंता है कि वित्तीय क्षेत्र (जो परिवारों के उत्पाद इत्यादि प्रदान करता है) बहुत बड़ा और बहुत जटिल हो गया है। परंतु भारत में हम अभी भी प्रारंभिक अवस्था में हैं, और बाजार को “पूर्ण” बनाने के लिए सरकार स्वयं ही वित्तीय उत्पादों के उपयोग को आगे बढ़ा रही है।
इस क्षेत्र में विश्व का सबसे बड़ा पहुँच बनाने वाला कार्यक्रम रहा है - प्रधानमंत्री जन-धन योजना। इसकी शुरुआत 28/08/2014 को हुई, उद्देश्य है : भारत की ऐसी जनसंख्या को बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करना जहाँ अभी तक बैंकें नहीं पहुंची हैं (नवंबर 2016 तक इससे 25.5 करोड़ लोग लाभान्वित हुए हैं) ।
एक सामंजस्यपूर्ण समाज सुनिश्चित करने की दृष्टि से वित्तीय समावेशन अत्यंत महत्वपूर्ण है। वह भारत के निम्न आय परिवारों को सीधे लाभ पहुंचाते हैं, क्योंकि वे बचत, व्यय का संवर्धन करते हैं और लेनदेन की लागतों में कमी करते हैं।
जन-धन योजना के खातों में से 77 प्रतिशत खातों ने धनात्मक अधिशेष बनाए रखा है। यह अच्छी बात है। समय के साथ बचत और लेनदेन, दोनों में वृद्धि हुई है। जैसे-जैसे लोग औपचारिक बैंकिंग से परिचित होते जाते हैं, वैसे-वैसे उनका उपयोग बढ़ता जाता है।
[##leaf## ये रही चुनावी नतीजों 2017 पर हमारी पूर्ण बोधि - अवश्य पढ़ें]
ऐसे दो स्पष्ट लाभ देखे जा सकते हैं : (1) बैंकिंग व्यवस्था में नई पूँजी आती है (= नई जन-धन जमाराशियां), जिसके कारण अधिक ऋण दिए जा सकते हैं, और (2) अनेक निम्न आय वर्ग के लोगों को ऋण की आवश्यकता थी परंतु वे जानते ही नहीं थे कि इसके लिए बैंक के पास कैसे जाया जाए। अब इस अप्राप्य माग को पूरा किया जा सकता है (कम से कम कुछ परिवारों के लिए ही सही)। यदि यह ऋण बड़ा हो जाता है तो इसका पिरामिड के तल के उपभोग - निवेश - रोजगार पर भारी प्रभाव संभव हो सकता है। अध्ययन दर्शा रहे हैं कि भारत के अधिक जन-धन खातों के प्रकटन वाले वाले क्षेत्र प्रदान किये गए नए ऋणों की दृष्टि से अधिक संख्याओं और मात्राओं का प्रदर्शन कर रहे हैं। अतः यह दावा कि बैंकिंग सेवाओं से मरहूम रहे परिवारों को अब बैंकिंग का लाभ मिल रहा है, सही हो सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि दीर्घकाल में (अब से कम से कम 2 से 3 वर्षों बाद) जीडीपी पर इसका असर दिखेगा। हालांकि निवेश और मुद्रास्फीति पर अभी इसका कम असर दिखाई दे रहा है (हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी होगा) । समग्र दृष्टि से, प्रधानमंत्री जन-धन योजना अपनी पहचान स्थापित करती दिखाई देती है। यदि भारतीय बैंकिंग के इतिहास की दृष्टि से विचार करें तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।
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ऐसे दो स्पष्ट लाभ देखे जा सकते हैं : (1) बैंकिंग व्यवस्था में नई पूँजी आती है (= नई जन-धन जमाराशियां), जिसके कारण अधिक ऋण दिए जा सकते हैं, और (2) अनेक निम्न आय वर्ग के लोगों को ऋण की आवश्यकता थी परंतु वे जानते ही नहीं थे कि इसके लिए बैंक के पास कैसे जाया जाए। अब इस अप्राप्य माग को पूरा किया जा सकता है (कम से कम कुछ परिवारों के लिए ही सही)। यदि यह ऋण बड़ा हो जाता है तो इसका पिरामिड के तल के उपभोग - निवेश - रोजगार पर भारी प्रभाव संभव हो सकता है। अध्ययन दर्शा रहे हैं कि भारत के अधिक जन-धन खातों के प्रकटन वाले वाले क्षेत्र प्रदान किये गए नए ऋणों की दृष्टि से अधिक संख्याओं और मात्राओं का प्रदर्शन कर रहे हैं। अतः यह दावा कि बैंकिंग सेवाओं से मरहूम रहे परिवारों को अब बैंकिंग का लाभ मिल रहा है, सही हो सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि दीर्घकाल में (अब से कम से कम 2 से 3 वर्षों बाद) जीडीपी पर इसका असर दिखेगा। हालांकि निवेश और मुद्रास्फीति पर अभी इसका कम असर दिखाई दे रहा है (हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी होगा) । समग्र दृष्टि से, प्रधानमंत्री जन-धन योजना अपनी पहचान स्थापित करती दिखाई देती है। यदि भारतीय बैंकिंग के इतिहास की दृष्टि से विचार करें तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।
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