The multiple allegations against BJP and Modi, including demonetisation, had the exact opposite effect. | भाजपा और मोदी के खिलाफ लगाए गए तमाम आरोप, जिनमें नोटबंदी भी था, का ठीक उल्टा असर हुआ है।
A wave that swept some shibboleths away
The 2017 assembly poll results have re-affirmed that the phenomenon called Narendra Modi will remain the country’s predominant political leader till 2019, and perhaps even beyond. This is a boon for the BJP, a nightmare for others. He is the most extraordinary and charismatic political leader after Mrs. Indira Gandhi of Congress (I). The entire state and national politics would revolve round this pivot and shape the country’s destiny in the time to come. It is incorrect to say that the UP election victory was a result of communal polarization by the BJP. It was more a result of Modi’s political skills, convincing power, mass mobilization by Amit Shah and team etc. Modi seems to have mastered the art of disruptive innovation, a phenomenon of creating new markets and value networks by disrupting the existing ones, to capture the imagination of the fast changing polity. This is tricky. Most opposition parties and liberal analysts are still trapped in old political models, which have become irreverent for today’s voters, while Modi has enlarged his support base and attracted new supporters.
[##leaf## Read our full analysis Bodhi on Assembly Elections 2017]
His boldest move – currency demonetization – was criticized by practically everyone including politicians and economist. Modi made it his weapon in the elections. Read our comprehensive Bodhi on DeMo here. With his oratorical skills he could convince the UP voters with his narrative that the move was to snatch the poor people’s wealth from the rich and redistribute it to its rightful owners, the poor. This is the ultimate pro-poor image. The suit boot ki sarkar barb has backfired very badly. The UP victory also rejects the belief that the BJP’s growth is at the cost of a declining Congress. They convincingly defeated two strong regional opponents (SP and BSP) in UP. BJP has made things more difficult for the Congress by pulling away its two major planks –pro-poor and secular party. Their biggest electoral punchline is denuded now. Opposition parties will need to re-think their strategies and come together, like they did in 1977 against Indira Gandhi, if they want to have any chance of countering the unstoppable Modi in the 2019 general elections. View relevant data on Assembly Elections 2017 March here, and download pdf resources here.
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एक ऐसी लहर जिसने कुछ चिन्हों को बहा दिया
वर्ष 2017 के चुनाव परिणामों ने इस तथ्य की प्रतिपुष्टि कर दी है कि नरेंद्र मोदी नाम की शख्सियत वर्ष 2019 के चुनावों तक, और संभवतः उसके बाद भी देश का सबसे प्रबल राजनीतिक नेता बना रहेगा। यह भाजपा के लिए एक वरदान है और अन्य दलों के लिए दुःस्वप्न है।
वे कांग्रेस (आई) की श्रीमती इंदिरा गाँधी के बाद देश के सबसे असाधारण और करिश्माई नेता हैं। संपूर्ण राष्ट्रीय और राज्यों की राजनीति इस धुरी के इर्द-गिर्द ही घूमेगी और आने वाले समय में देश के भाग्य को आकार देगी।
यह कहना सरासर गलत होगा कि उ.प्र. की चुनावी विजय भाजपा द्वारा किये गए जातीय ध्रुवीकरण का परिणाम है। बल्कि यह कहना उचित होगा कि यह प्रधानमंत्री मोदी के राजनीतिक कौशल, प्रतीतिकारक क्षमता, अमित शाह और उनकी टीम द्वारा किये गए जन-संग्रह का परिणाम है।
ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी ने विघटनकारी नवाचार की कला में प्रभुत्व प्राप्त कर लिया है, जो तेजी से बदलती राजनीति के मिजाज को पकड़ने के लिए विद्यमान बाजारों और मूल्य संजालों को नष्ट करके उनके स्थान पर नए बाजारों और मूल्य संजालों के निर्माण की अवधारणा है। यह एक जटिल और कठिन कार्य है।
अधिकांश विरोधी दल और उदारवादी विश्लेषक अभी भी ऐसे पुराने राजनीतिक मॉडल्स में अटके हुए हैं जो आज के मतदाता के लिए अप्रासंगिक हो गए हैं। उसी समय मोदी ने अपने समर्थकों के आधार में वृद्धि की है और साथ ही नए समर्थकों को भी आकर्षित किया है।
[##leaf## विधानसभा के चुनावी परिणामों २०१७ पर हमारी बोधि पढ़ें यहाँ]
उनके सबसे साहसिक कदम - मुद्रा का विमुद्रीकरण - की राजनीतिज्ञों और अर्थशास्त्रियों सहित लगभग सभी ने आलोचना की थी। मोदी ने इसे ही चुनाव में अपना हथियार बनाया। इस विषय पर हमारी समग्र बोधि यहाँ पढ़ें। उनके वक्तृत्व कौशल के बल पर वे उ.प्र. के मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने में सफल रहे कि उनका यह कदम अमीरों से गरीबों की संपत्ति को छीनकर उसे वापस उसके सही स्वामियों, गरीबों तक पहुँचाने के लिए उठाया गया था। यह उनकी अंतिम-स्तर की गरीब समर्थक छवि है। सूट-बूट की सरकार के जुमले का बुरी तरह से विपरीत प्रभाव पड़ा। उ.प्र. की विजय इस मान्यता को भी खारिज करती है कि भाजपा की वृद्धि कांग्रेस के पतन की कीमत पर हुई है। यह इस बात से गलत साबित होता है कि उन्होंने उ.प्र. में दो मजबूत क्षेत्रीय दलों (सपा और बसपा) को बुरी तरह से पराजित किया है। भाजपा ने कांग्रेस के दो प्रमुख मुद्दों - गरीब-समर्थक और धर्मनिरपेक्ष पार्टी - को उनसे हथियाकर कांग्रेस के लिए स्थिति और भी अधिक कठिन बना दी है। विरोधी दलों को उनकी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा, यदि 2019 के आम चुनावों में उन्हें तेजी से आगे बढती भाजपा से मुकाबला करने की कोई संभावना बनानी है तो उन्हें सभी को एकसाथ आना होगा जैसा कि उन्होंने वर्ष 1977 में इंदिरा गाँधी के विरुद्ध किया था। 11. मार्च 2017 के विधानसभा चुनावों पर प्रासंगिक जानकारी यहाँ पढ़ें और पीडीएफ संसाधन यहाँ डाउनलोड करें।
[##leaf## विधानसभा के चुनावी परिणामों २०१७ पर हमारी बोधि पढ़ें यहाँ]
उनके सबसे साहसिक कदम - मुद्रा का विमुद्रीकरण - की राजनीतिज्ञों और अर्थशास्त्रियों सहित लगभग सभी ने आलोचना की थी। मोदी ने इसे ही चुनाव में अपना हथियार बनाया। इस विषय पर हमारी समग्र बोधि यहाँ पढ़ें। उनके वक्तृत्व कौशल के बल पर वे उ.प्र. के मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने में सफल रहे कि उनका यह कदम अमीरों से गरीबों की संपत्ति को छीनकर उसे वापस उसके सही स्वामियों, गरीबों तक पहुँचाने के लिए उठाया गया था। यह उनकी अंतिम-स्तर की गरीब समर्थक छवि है। सूट-बूट की सरकार के जुमले का बुरी तरह से विपरीत प्रभाव पड़ा। उ.प्र. की विजय इस मान्यता को भी खारिज करती है कि भाजपा की वृद्धि कांग्रेस के पतन की कीमत पर हुई है। यह इस बात से गलत साबित होता है कि उन्होंने उ.प्र. में दो मजबूत क्षेत्रीय दलों (सपा और बसपा) को बुरी तरह से पराजित किया है। भाजपा ने कांग्रेस के दो प्रमुख मुद्दों - गरीब-समर्थक और धर्मनिरपेक्ष पार्टी - को उनसे हथियाकर कांग्रेस के लिए स्थिति और भी अधिक कठिन बना दी है। विरोधी दलों को उनकी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा, यदि 2019 के आम चुनावों में उन्हें तेजी से आगे बढती भाजपा से मुकाबला करने की कोई संभावना बनानी है तो उन्हें सभी को एकसाथ आना होगा जैसा कि उन्होंने वर्ष 1977 में इंदिरा गाँधी के विरुद्ध किया था। 11. मार्च 2017 के विधानसभा चुनावों पर प्रासंगिक जानकारी यहाँ पढ़ें और पीडीएफ संसाधन यहाँ डाउनलोड करें।
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