Why are Indian minds not able to bring to life a Startup that can excite the whole world?
Time for an Indian Google
The top startup “ecosystems” of world are US, UK, India and Israel. So congratulations all fellow Indians! The simple fact remains – Despite all the hype and hoopla, Indian “startups” are neither global in scope and scale, nor global in ambition, and definitely not global in capturing user imagination. [Like Google was] Read a detailed analysis on “A call for digital independence”, here.
From 2015 onwards till date, in the middle of a deglobalisation wave, Indian state governments have tried attracting startups through all possible incentives. But after all this, no single entrepreneur has stood up to say “We will create a Google from India”. The IITs, IIMs and everyone talk a lot – but on this, total silence! If only the IIT coaching industry could be called a Google – we could put the real Google to shame 😉
What is a “Global Startup”? Definition – One that can fire people’s imagination across the world (many countries) and can earn from everywhere, rather than just through Indian customers. Hence, infinite scaling is possible. The global startup starts with a totally fresh idea. They have a great unique value proposition. It creates a first-mover advantage in markets worldwide. Everyone tries to follow. Indian startups are designed to cater to Indian markets. The opportunity here is huge, but the market is very different from the rest of the world. We design to suit our needs, not the world’s. (nothing wrong in it) Our overall institutional support mechanism (how society + government + industry help startups) has a big role to play. Germany can offer many insights, though it’s a far more evolved system that ours is. Indian entrepreneurs need to know much more about government support, through programs like “Startup India”. Governments must offer quick support. It does so, but slowly. Indian problems are Indian opportunities. A true entrepreneur is one who solves a true problem. Many such Indian “true problems” can have global footprints also. Watch our video analyses on Internet Commerce, on Bodhi Shiksha channel. Indian startups need to be agile and different. When we copy foreign models, we will die when the originals enter India with huge capital infusions. To become the next Google, our design has to be competitive globally, funding should be a distant secondary issue only. A huge threat – Near zero protection to IPR in India, making it cheaper to steal and prosper, than create and prosper. The system offers no effective solution, and this deters original thinkers. Unless we change this, we are condemned to remain a nation of copy-paste-Robinhoods.
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एक भारतीय गूगल का समय
विश्व के शीर्ष स्टार्टअप “पारिस्थितिकी तंत्र” हैं अमेरिका, यूके, भारत और इजराइल। अतः सभी भारतीय साथियों को बधाई!
हालांकि सामान्य तथ्य अभी भी बना हुआ है - भारी प्रचार-प्रसार के बावजूद भारत के स्टार्टअप न तो व्याप्ति में वैश्विक हैं और न ही महत्वाकांक्षा में वैश्विक हैं, और उपयोगकर्ताओं की कल्पनाओं को पकड़ पाने में तो वे निश्चित रूप से विश्वकी नहीं हैं जैसा कि गूगल था,।
“डिजिटल स्वतंत्रता की मांग” पर विस्तृत विश्लेषण पढ़ें।
वर्ष 2015 से आज तक वि-वैश्वीकरण की लहर के मध्य भारत की राज्य सरकारों ने सभी संभावित प्रोत्साहनों के माध्यम से स्टार्टअप को आकर्षित करने का प्रयास किया है। परंतु इस सब के बाद कोई भी उद्यमी यह नहीं कह पाया है कि “हम भारत से एक गूगल का निर्माण करेंगे” । आइआइटी, आइआइएम और सभी लोग काफी बातें करते हैं - परंतु इस विषय पर पूर्णतः खामोशी है! यदि केवल आइआइटी कोचिंग उद्योग को गूगल कहा जा सकता है - तो हम वास्तविक गूगल को भी लजा सकते हैं
एक वैश्विक स्टार्टअप क्या है? परिभाषा - वह जो लोगों की कल्पना को विश्व स्तर (अनेक देशों) पर जगा सकता है और सभी स्थानों से अर्जन कर सकता है केवल भारतीय ग्राहकों से ही नहीं। अतः बड़े पैमाने पर विस्तार संभव है। वैश्विक स्टार्टअप एक पूर्णतः नए विचार के साथ शुरुआत करता है। उनका एक विशिष्ट मूल्य प्रस्ताव हो सकता है। वे विश्व स्तर पर पहले प्रयास का लाभ निर्माण करते हैं। सभी लोग उनका अनुसरण करने का प्रयास करते हैं। भारतीय स्टार्टअप की रचना भारतीय बाजारों की दृष्टि से की जाती हैं। यहाँ अवसर विशाल हैं परंतु यहाँ का बाजार विश्व के अन्य बाजारों से काफी अलग है। हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति की दृष्टि से रचना करते हैं विश्व की आवश्यकताओं की दृष्टि से नहीं। (इसमें कुछ भी गलत नहीं है) हमारा समग्र संस्थागत समर्थन तंत्र (समाज, सरकार और उद्योग किस प्रकार स्टार्टअप की सहायता करते हैं) की बड़ी भूमिका है। जर्मनी इसमें अनेक दृष्टि से अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है हालांकि यह हमारी व्यवस्था की तुलना में एक अधिक विकसित व्यवस्था है। भारतीय उद्यमियों को स्टार्टअप जैसी योजनाओं के माध्यम से सरकार की सहायता के बारे में अधिक जानने की आवश्यकता है। सरकार को शीघ्र सहायता करनी चाहिए। वह सहायता अवश्य करती है परंतु अत्यंत धीमे करती है। भारतीय समस्याएँ भारतीय अवसर हैं। एक सच्चा उद्यमी वह है जो सच्ची समस्या का हल करता है। ऐसी अनेक भारतीय “सच्ची समस्याओं” के वैश्विक पदचिन्ह हो सकते हैं। बोधि शिक्षा चैनल पर इन्टरनेट वाणिज्य पर हमारे विडियो विश्लेषण देखें भारतीय स्टार्टअप को चुस्त और भिन्न होने की आवश्यकता है। जब हम विदेशी मॉडल्स की नकल करते हैं तो हम तब समाप्त हो जायेंगे जब वे भारी पूँजी के साथ भारत में प्रवेश करेंगे। अगला गूगल बनने के लिए हमारी रचना वैश्विक स्तर पर प्रतियोगी होनी चाहिए, निधीयन तो बाद की बात है। एक खतरा - भारत में आईपीआर को लगभग शून्य संरक्षण, जिसके कारण यहाँ निर्माण करके संपन्न होने की तुलना में चोरी करके संपन्न होना सस्ता है। व्यवस्था कोई प्रभावी समाधान नहीं प्रदान करते, और यह मूल विचारकों को रोक देता है। जब तक हम इसे नहीं बदलते तब तक हम कॉपी-पेस्ट रॉबिनहुड देश बने रहेंगे।
वर्ष 2015 से आज तक वि-वैश्वीकरण की लहर के मध्य भारत की राज्य सरकारों ने सभी संभावित प्रोत्साहनों के माध्यम से स्टार्टअप को आकर्षित करने का प्रयास किया है। परंतु इस सब के बाद कोई भी उद्यमी यह नहीं कह पाया है कि “हम भारत से एक गूगल का निर्माण करेंगे” । आइआइटी, आइआइएम और सभी लोग काफी बातें करते हैं - परंतु इस विषय पर पूर्णतः खामोशी है! यदि केवल आइआइटी कोचिंग उद्योग को गूगल कहा जा सकता है - तो हम वास्तविक गूगल को भी लजा सकते हैं
एक वैश्विक स्टार्टअप क्या है? परिभाषा - वह जो लोगों की कल्पना को विश्व स्तर (अनेक देशों) पर जगा सकता है और सभी स्थानों से अर्जन कर सकता है केवल भारतीय ग्राहकों से ही नहीं। अतः बड़े पैमाने पर विस्तार संभव है। वैश्विक स्टार्टअप एक पूर्णतः नए विचार के साथ शुरुआत करता है। उनका एक विशिष्ट मूल्य प्रस्ताव हो सकता है। वे विश्व स्तर पर पहले प्रयास का लाभ निर्माण करते हैं। सभी लोग उनका अनुसरण करने का प्रयास करते हैं। भारतीय स्टार्टअप की रचना भारतीय बाजारों की दृष्टि से की जाती हैं। यहाँ अवसर विशाल हैं परंतु यहाँ का बाजार विश्व के अन्य बाजारों से काफी अलग है। हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति की दृष्टि से रचना करते हैं विश्व की आवश्यकताओं की दृष्टि से नहीं। (इसमें कुछ भी गलत नहीं है) हमारा समग्र संस्थागत समर्थन तंत्र (समाज, सरकार और उद्योग किस प्रकार स्टार्टअप की सहायता करते हैं) की बड़ी भूमिका है। जर्मनी इसमें अनेक दृष्टि से अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है हालांकि यह हमारी व्यवस्था की तुलना में एक अधिक विकसित व्यवस्था है। भारतीय उद्यमियों को स्टार्टअप जैसी योजनाओं के माध्यम से सरकार की सहायता के बारे में अधिक जानने की आवश्यकता है। सरकार को शीघ्र सहायता करनी चाहिए। वह सहायता अवश्य करती है परंतु अत्यंत धीमे करती है। भारतीय समस्याएँ भारतीय अवसर हैं। एक सच्चा उद्यमी वह है जो सच्ची समस्या का हल करता है। ऐसी अनेक भारतीय “सच्ची समस्याओं” के वैश्विक पदचिन्ह हो सकते हैं। बोधि शिक्षा चैनल पर इन्टरनेट वाणिज्य पर हमारे विडियो विश्लेषण देखें भारतीय स्टार्टअप को चुस्त और भिन्न होने की आवश्यकता है। जब हम विदेशी मॉडल्स की नकल करते हैं तो हम तब समाप्त हो जायेंगे जब वे भारी पूँजी के साथ भारत में प्रवेश करेंगे। अगला गूगल बनने के लिए हमारी रचना वैश्विक स्तर पर प्रतियोगी होनी चाहिए, निधीयन तो बाद की बात है। एक खतरा - भारत में आईपीआर को लगभग शून्य संरक्षण, जिसके कारण यहाँ निर्माण करके संपन्न होने की तुलना में चोरी करके संपन्न होना सस्ता है। व्यवस्था कोई प्रभावी समाधान नहीं प्रदान करते, और यह मूल विचारकों को रोक देता है। जब तक हम इसे नहीं बदलते तब तक हम कॉपी-पेस्ट रॉबिनहुड देश बने रहेंगे।
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