The dangers of regional inequalities not getting rapidly bridged in India are all too apparent.
Diversity – thy name surely is India!
India is a union of states. Prosperity of India demands prosperity of States. If some do too well, and others consistently do badly, then we have an unsustainable situation for India as a whole. At a time when we are talking about Competitive Federalism, economic disparities among Indian states have been widening over time instead of narrowing. Read our Bodhi on Cooperative Federalism The Economic Survey 2016-17 indicated that in the 2000s, when per capita standards of living increased in all states, the disparities among them also increased – called Divergence. The Least Developed State (Tripura) increased its per capita GSDP from Rs. 11,537 in 1984 to Rs. 64,712 in 2014. You can do a full course in Economic Survey and Union Budget online with us. In contrast to India, internationally, disparities across countries are declining – called Convergence.
Internationally, poorer countries are catching up with the richer ones, and within these countries also, the poorer states are catching up with the richer ones. But in India the less developed states are not catching up with the more developed one at a good pace. In the 1990s convergence patterns were similar across the world, China and India. Whereas things changed for the world and China in the 2000s, they did not change for India. This was despite the fact that less developed states like Bihar and Madhya Pradesh had started improving. However, this improvement was neither adequately strong nor sufficiently durable to change the picture of divergence. In poorer regions the returns to capital must be high to attract capital and labour, thereby increasing productivity. India is an exception to this. Although borders within India are porous, convergence has not happened, whereas across countries where borders are thicker, convergence has been successful. Trade within India is quite high and mobility of people has also been on the rise.
In China, the mobility of labour from farms in the interior to the factories on the coasts has increased the productivity and wages in the poorer regions. This has not happened in India, and hence the disparities. Two more reasons can be – (1) India has relied on growth of skill-intensive sectors rather than low-skill ones, which could be a reason for divergence. (2) Poor governance or institutional traps could be the other reason. Continued divergence among states is against competitive federalism. You can view relevant data and numbers here, here and here.
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विविधता का दूसरा नाम ही भारत है
भारत राज्यों का एक संघ है। भारत की समृद्धि का अर्थ है राज्यों की समृद्धि। यदि कुछ अच्छा आर्थिक प्रदर्शन करेंगे, और कुछ लगातार ख़राब करेंगे, तो पूर्ण भारत हेतु स्थिति अच्छी नहीं कहलाएगी।
एक ओर जहाँ हम प्रतिस्पर्धात्मक संघीयवा की बात करते हैं वहीँ दूसरी ओर भारतीय राज्यों के बीच की असमानताएँ समय के साथ कम होने की बजाय बढती जा रही हैं। सहकारी संघवाद पर पढ़ें हमारी बोधि यहाँ इस वर्ष की आर्थिक समीक्षा दर्शाती है कि 2000 के दशक में जहाँ सभी राज्यों के प्रति व्यक्ति जीवन-स्तरों में सुधार हुआ वहीँ दूसरी ओर उनके बीच की आर्थिक असमानताओं में वृद्धि हुई - अपसरण। न्यूनतम विकसित राज्य (त्रिपुरा) का प्रति व्यक्ति सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) वर्ष 1984 के 11,537 रुपये से वर्ष 2014 में बढ़कर 64, 712 रुपये हुआ। आर्थिक समीक्षा और केंद्रीय बजट पर आप हमारा कोर्स कर सकते हैं । भारत के विपरीत, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच आर्थिक असमानताएँ कम होती जा रही हैं - अभिसरण।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गरीब देश अमीर देशों के निकट आते जा रहे हैं, और इन देशों के भीतर भी गरीब राज्य अमीर राज्यों के निकट आते दिखाई देते हैं। परंतु भारत में गरीब राज्य उतनी तेजी से अमीर राज्यों के निकट नहीं आ पा रहे हैं। 1990 के दशक में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, चीन में और भारत में भी अभिसरण की प्रवृत्ति में अधिक असमानता नहीं थी। परंतु जहाँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और चीन में 2000 के दशक में स्थिति परिवर्तित हुई, भारत में वे उसी प्रकार परिवर्तित नहीं हुईं। यह इस तथ्य के बावजूद हुआ कि बिहार और मध्यप्रदेश जैसे गरीब राज्यों में सुधार शुरू हो चुका था। हालांकि यह सुधार न तो इतना पर्याप्त रूप से मजबूत था, और न ही पर्याप्त रूप से इतना टिकाऊ था जो विचलन के परिदृश्य को परिवर्तित करने में सक्षम होता। गरीब क्षेत्रों में पूँजी पर प्रतिफल पूँजी और श्रम को आकर्षित करने की दृष्टि से पर्याप्त रूप से उच्च होना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि हो सके। इस दृष्टि से भारत एक अपवाद है। हालांकि भारतीय राज्यों के बीच की सीमाएं अधिक छिद्रयुक्त हैं परंतु फिर भी अभिसरण नहीं हो पाया है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच की सीमाएं (व्यापार निर्बंधों के कारण) अधिक छिद्रयुक्त न होते हुए भी अभिसरण सफल हुआ है। भारत के भीतर का व्यापार काफी उच्च है, साथ ही श्रम की गतिशीलता में भी काफी वृद्धि हुई है।
चीन में अंदरूनी कृषि क्षेत्र से तटीय क्षेत्रों के कारखानों में श्रम की गतिशीलता के कारण गरीब क्षेत्रों की उत्पादकता और मजदूरी में सुधार हुआ है। परंतु भारत में ऐसा नहीं हो पाया है, इसी कारण से असमानताओं में वृद्धि हुई है। दो अन्य कारण हो सकते हैं - (1) विकास के लिए भारत अल्प-कौशल क्षेत्रों के बजाय कौशल-सघन क्षेत्रों पर अधिक निर्भर रहा है जो विचलन का एक कारण हो सकता है। (2) साथ ही कमजोर शासन या संस्थागत पाश विचलन का दूसरा कारण हो सकता है। राज्यों के बीच निरंतर रूप से जारी विचलन प्रतिस्पर्धात्मक संघीयवाद के विरुद्ध है। आप इससे संबंधित आंकड़े देख सकते हैं यहाँ, यहाँ और यहाँ
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गरीब देश अमीर देशों के निकट आते जा रहे हैं, और इन देशों के भीतर भी गरीब राज्य अमीर राज्यों के निकट आते दिखाई देते हैं। परंतु भारत में गरीब राज्य उतनी तेजी से अमीर राज्यों के निकट नहीं आ पा रहे हैं। 1990 के दशक में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, चीन में और भारत में भी अभिसरण की प्रवृत्ति में अधिक असमानता नहीं थी। परंतु जहाँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और चीन में 2000 के दशक में स्थिति परिवर्तित हुई, भारत में वे उसी प्रकार परिवर्तित नहीं हुईं। यह इस तथ्य के बावजूद हुआ कि बिहार और मध्यप्रदेश जैसे गरीब राज्यों में सुधार शुरू हो चुका था। हालांकि यह सुधार न तो इतना पर्याप्त रूप से मजबूत था, और न ही पर्याप्त रूप से इतना टिकाऊ था जो विचलन के परिदृश्य को परिवर्तित करने में सक्षम होता। गरीब क्षेत्रों में पूँजी पर प्रतिफल पूँजी और श्रम को आकर्षित करने की दृष्टि से पर्याप्त रूप से उच्च होना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि हो सके। इस दृष्टि से भारत एक अपवाद है। हालांकि भारतीय राज्यों के बीच की सीमाएं अधिक छिद्रयुक्त हैं परंतु फिर भी अभिसरण नहीं हो पाया है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच की सीमाएं (व्यापार निर्बंधों के कारण) अधिक छिद्रयुक्त न होते हुए भी अभिसरण सफल हुआ है। भारत के भीतर का व्यापार काफी उच्च है, साथ ही श्रम की गतिशीलता में भी काफी वृद्धि हुई है।
चीन में अंदरूनी कृषि क्षेत्र से तटीय क्षेत्रों के कारखानों में श्रम की गतिशीलता के कारण गरीब क्षेत्रों की उत्पादकता और मजदूरी में सुधार हुआ है। परंतु भारत में ऐसा नहीं हो पाया है, इसी कारण से असमानताओं में वृद्धि हुई है। दो अन्य कारण हो सकते हैं - (1) विकास के लिए भारत अल्प-कौशल क्षेत्रों के बजाय कौशल-सघन क्षेत्रों पर अधिक निर्भर रहा है जो विचलन का एक कारण हो सकता है। (2) साथ ही कमजोर शासन या संस्थागत पाश विचलन का दूसरा कारण हो सकता है। राज्यों के बीच निरंतर रूप से जारी विचलन प्रतिस्पर्धात्मक संघीयवाद के विरुद्ध है। आप इससे संबंधित आंकड़े देख सकते हैं यहाँ, यहाँ और यहाँ
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