The patriarchal society of Nagaland is violently resisting any devolution of political power to the women.
The turbulent North East
The north-east region is important for India’s Act East policy. Infrastructural development of the region is crucial as it has close linkages with Southeast Asia. Nagaland witnessed large scale violence recently. The peculiarity of any north east agitation is that the state infrastructure is at the target of the agitators. What they do not understand is that it hampers the development process of the region, which serves nobody’s purpose. The recent violence in Nagaland was against the 33% reservation for women in urban local body elections. The Naga Hoho (Tribal Chiefs council) cited Article 371(A) to not accept the Supreme Court verdict on Naga Mothers’ Association plea for 33% women’s reservation as per Article 243 (D). Refer Bodhi Resources for the full list of Constitutional Provisions for NorthEast. The tribal leaders of the north-east want development, but do not want to give up their culture, traditions and cultural identity. This may not be possible, because for any development to happen, the locals should be prepared to make some sacrifices. So, the northeastern tribal leaders should carry out peaceful agitations rather than violent ones, and seek legal remedies. Violent protests not only cause a lot of loss to public property but also hold the livelihood of ordinary people to ransom. Such types of violent agitations subvert law and order in the region and prevent the region’s development, as law and order is the basic enabler of development.
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अशांत उत्तर-पूर्व
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र भारत की एक्ट ईस्ट नीति की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इस क्षेत्र का अधोसंरचनात्मक विकास महत्वपूर्ण है क्योंकि इस क्षेत्र के दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ निकटस्थ जुड़ाव हैं।
हाल ही में नागालैंड में बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन हुए। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के किसी भी आंदोलन की विशेषता यह है कि आन्दोलनकारियों के निशाने पर राज्य की अधोसंरचना होती है।
आन्दोलनकारियों और उनके नेताओं को यह बात समझनी होगी कि ऐसी गतिविधियों के कारण क्षेत्र का विकास बाधित होता है, जिससे किसीका भी भला नहीं होता।
नागालैंड में हाल ही में हुआ आंदोलन शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण के विरुद्ध था। नगा होहो (कबीलाई प्रमुखों का परिषद) ने अनुच्छेद 371 (क) का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय द्वारा नगा मदर्स एसोसिएशन की याचिका पर अनुच्छेद 243 (घ) के तहत 33 प्रतिषत महिला आरक्षण के निर्णय को मानने से इंकार कर दिया। उत्तर-पूर्व से जुड़े संवैधानिक प्रावधानों पर जानकारी पाएं बोधि संसाधन पृष्ठ पर।
उत्तर-पूर्व के जनजातीय नेताओं को भी विकास चाहिए, परंतु इसके लिए वे अपनी संस्कृति, परंपराओं और सांस्कृतिक पहचान का त्याग करने को तैयार नहीं हैं। परंतु यह संभव नहीं है क्योकि किसी भी विकास प्रक्रिया के लिए स्थानीय लोगों को भी कुछ हद तक त्याग के लिए तैयार होना ही पड़ेगा।
अतः उत्तर-पूर्वी जनजातीय नेताओं को हिंसक आंदोलनों के बजाय शांतिपूर्ण आंदोलन का सहारा लेना चाहिए और कानूनी मार्ग अपनाना चाहिए। हिंसक आंदोलनों का परिणाम न केवल व्यापक सार्वजनिक संपत्ति की हानि में होता है बल्कि इसके कारण सामान्य जनता की जीवनयापन गतिविधियों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
इस प्रकार के हिंसक आंदोलन क्षेत्र की कानून व्यवस्था को ध्वस्त कर देते हैं और क्षेत्र के विकास को बाधित करते हैं क्योंकि कानून व्यवस्था विकास का सबसे महत्वपूर्ण संबल है।
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