Aadhar, the voluntary scheme, is more than mandatory for Indian citizens now. Security and privacy concerns loom large | आधार, एक स्वैच्छिक कार्यक्रम, अब अनिवार्य से भी कुछ अधिक हो चुका है। सुरक्षा और निजता की चिंताएं बड़ी हैं
Aadhar omnipresence and Privacy-Security concerns
The government is making Aadhar mandatory for increasing number of functions such as mid-day meals at schools, access to primary and secondary education, filing of IT returns, etc. The Supreme Court has specified that Aadhar cannot be made mandatory for any government scheme, but can be used as a voluntary identification for 5 specific government programmes viz. public distribution scheme, National Rural Employment Guarantee Act, National Social Assistance Programme, Jan Dhan Yojana and for LPG subsidies. A public interest litigation is pending in the SC for more than 4 years awaiting final orders. Before making Aadhar mandatory, the government should put in place strong privacy laws to protect citizen’s privacy. Present provisions to prevent misuse are inadequate. Authentication of a person’s identity using Aadhar should be only after getting his/her consent. You can download various Aadhar related docs here, here, here and here.
The linking of Aadhar to numerous activities would mean that the government can keep a watch on the person’s activities, which may result in infringement of his individual liberty. Private companies can also have access to the consumers’ behavior, health, financial status, payments history and tastes, which could easily be misused. Aadhar also involves online privacy issues. EU has assured its citizens that they have “the right to be forgotten online”. India also needs such a right with adequate legal protection. Not only making laws would be enough, but their effective implementation and enforcement is also necessary. India has a very long way to go. One only hopes no major breach happens in the meantime. Here are Various questions raised in Parliament over the Aadhar issue
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आधार की सर्वविद्यमानता और निजता-सुरक्षा संबंधी चिंताऐं
सरकार लगातार अधिकाधिक सरकारी कामों के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य करती जा रही है, जैसे विद्यालयों में मध्याह्न भोजन, प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा का प्रवेश आयकर विवरण प्रस्तुत करना इत्यादि।
सर्वोच्च न्यायालय ने निर्दिष्ट किया है कि आधार को किसी भी सरकारी योजना के लिए अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता परंतु इसका उपयोग पांच विशिष्ट सरकारी कार्यक्रमों, अर्थात सार्वजनिक वितरण योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, जन-धन योजना और एलपीजी अनुवृत्ति, के लिए स्वैच्छिक पहचान के रूप में किया जा सकता है।
इस संबंध में उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका अंतिम आदेश के लिए पिछले 4 वर्षों से लंबित है।
आधार को अनिवार्य बनाने से पहले नागरिकों की निजता की सुरक्षा को संरक्षित करने के लिए सरकार को मजबूत निजता कानून बनाने होंगे। इसके दुरूपयोग को रोकने की दृष्टि से विद्यमान कानून अपर्याप्त हैं।
आधार का उपयोग करके किसी व्यक्ति की पहचान का सत्यापन केवल उससे सहमति प्राप्त करने के बाद ही किया जाना चाहिए। आप आधार संबंधित दस्तावेज यहाँ, यहाँ, यहाँ और यहाँ डाउनलोड कर सकते हैं
असंख्य गतिविधियों से आधार को जोड़ने का अर्थ होगा कि सरकार व्यक्ति की विभिन्न गतिविधियों पर नजर रख पाएगी, जिसका परिणाम उसकी व्यक्तिगत स्वंत्रता के उल्लंघन के रूप में भी हो सकता है। निजी कंपनियां भी उपभोक्ताओं के व्यवहार, स्वास्थ्य, वित्तीय स्थिति, भुगतान के इतिहास और उसकी रुचियों तक पहुँच प्राप्त कर सकती हैं जिसका आसानी से दुरूपयोग किया जा सकता है। आधार में ऑनलाइन निजता के मुद्दे भी शामिल हैं। यूरोपीय संघ ने उसके नागरिकों को भरोसा दिलाया है कि उन्हें “ऑनलाइन खो जाने का अधिकार” है। भारत को भी पर्याप्त न्यायिक संरक्षण के साथ ऐसे अधिकार की आवश्यकता है। केवल कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं होगा बल्कि उनका प्रभावी क्रियान्वयन और प्रवर्तन भी आवश्यक है। इस दृष्टि से भारत को अभी काफी लंबा रास्ता तय करना है। इस दौरान कोई बड़ा उल्लंघन न हो ऐसी हम केवल आशा ही कर सकते हैं। यहाँ आधार के मुद्दे पर संसद में उठाए गए विभिन्न प्रश्न दिए गए हैं।
असंख्य गतिविधियों से आधार को जोड़ने का अर्थ होगा कि सरकार व्यक्ति की विभिन्न गतिविधियों पर नजर रख पाएगी, जिसका परिणाम उसकी व्यक्तिगत स्वंत्रता के उल्लंघन के रूप में भी हो सकता है। निजी कंपनियां भी उपभोक्ताओं के व्यवहार, स्वास्थ्य, वित्तीय स्थिति, भुगतान के इतिहास और उसकी रुचियों तक पहुँच प्राप्त कर सकती हैं जिसका आसानी से दुरूपयोग किया जा सकता है। आधार में ऑनलाइन निजता के मुद्दे भी शामिल हैं। यूरोपीय संघ ने उसके नागरिकों को भरोसा दिलाया है कि उन्हें “ऑनलाइन खो जाने का अधिकार” है। भारत को भी पर्याप्त न्यायिक संरक्षण के साथ ऐसे अधिकार की आवश्यकता है। केवल कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं होगा बल्कि उनका प्रभावी क्रियान्वयन और प्रवर्तन भी आवश्यक है। इस दृष्टि से भारत को अभी काफी लंबा रास्ता तय करना है। इस दौरान कोई बड़ा उल्लंघन न हो ऐसी हम केवल आशा ही कर सकते हैं। यहाँ आधार के मुद्दे पर संसद में उठाए गए विभिन्न प्रश्न दिए गए हैं।
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