As agriculture becomes less rewarding, landed communities get jittery. Traditionally powerful Jats and Patels are now demanding reservations. Systemic solution required | जैसे-जैसे कृषि कम लाभदायक होता जाता है, वैसे वैसे भूमिधारक समुदाय कमज़ोर पड़ते हैं। पारंपरिक रूप से शक्तिशाली जाट और पटेल अब आरक्षण मांग रहे हैं। व्यवस्थागत समाधान चाहिए।
A Pandora’s Box called Reservations
The issue of reservations in government jobs and higher education has been a boiling one since 1950 in India. Political parties have often used this as a tool for creating their own vote-banks. Similarly, strong community leaders have used the issue to strengthen themselves. The Jat reservation agitation was postponed by two weeks after the assurance by the Haryana Chief Minister to take up the process of extending reservation to the community soon. Similar to the Jats in Haryana, the Patel community in Gujarat has also been agitating for reservations. Both are dominant, landed communities in their regions. Reservation agitations are a result of both developmental failure as well as political failure. As the share of services and industry increases in the economy and the share of agriculture declines, the communities whose prosperity and social dominance derived from landholdings declines.
Failure to generate enough jobs to accommodate aspirations of the rural youth to move to urban jobs creates frustration. This happens especially as the policy of affirmative action secures jobs for smaller sections of the lower classes of the society. Jobs can be created by investing in (a) infrastructure, (b) promoting entrepreneurship and (c) efficient financial mediation, while at the same time maintaining macroeconomic stability in a globalizing world Our political system has failed by presenting reservations as a panacea and by patronizing corruption, absenteeism and rampant inefficiency and fraud in the educational system. It is essential to address these two failures which could be the long-term solution to communities seeking reservations in jobs and higher education. Otherwise there is no other solution visible. This is a time consuming effort and for the present, agitations need to be dealt with firmness, fairness and flexibility. View many video analyses on Education and Jobs, here.
[ ##thumbs-o-up## Share Testimonial here - make our day!] [ ##certificate## Volunteer for Bodhi Booster portal]
Amazing Courses - Online and Classroom
आरक्षण नामक बड़ा मुद्दा
सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में आरक्षण का मुद्दा भारत में 1950 से जारी मुद्दा रहा है। राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे का उपयोग अब तक अपने-अपने वोट बैंक निर्मित करने के लिए किया है।
जाट समुदाय द्वारा आरक्षण आंदोलन को फिलहाल तब स्थगित कर दिया गया जब हरियाणा के मुख्यमंत्री ने समुदाय के नेताओं को यह आश्वासन दिया कि वे शीघ्र ही जाट समुदाय को आरक्षण प्रदान करने संबंधी प्रक्रिया शुरू करेंगे।
हरियाणा में जाट समुदाय की ही तरह गुजरात का पटेल समुदाय भी आरक्षण के मुद्दे पर आंदोलन करता रहा है।
आरक्षण संबंधी आंदोलन विकासात्मक असफलताओं के साथ ही राजनीतिक विफलताओं का भी परिणाम रहे हैं। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था में सेवाओं और उद्योगों की हिस्सेदारी में वृद्धि होती जाती है वैसे-वैसे अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी में गिरावट होती जाती है और इसी के साथ जो समुदाय कृषि से जुड़े हैं उनकी कृषि और भूमि स्वामित्व से प्राप्त संपन्नता और सामाजिक प्रभावशीलता में भी गिरावट होती जाती है।
कृषि क्षेत्र से शहरों में नौकरियों की आकाँक्षाओं वाले युवाओं की आकाँक्षाओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त संख्या में नौकरियों का सृजन नहीं होता है तो उनमें निराशा निर्मित होती है। यह विशेष रूप से तब अधिक होता है जब समाज के निचले वर्गों के लिए नौकरियों और उच्च शिक्षा में सरकार द्वारा सकारात्मक कार्यवाही की नीति अपनाई जाती है और उनके लिए नौकरियां और शिक्षण संस्थाओं में स्थान सुरक्षित किये जाते हैं। नौकरियों का निर्माण (ए) अधोसंरचना क्षेत्र में निवेश द्वारा, (बी) उद्यमिता के संवर्धन और (सी) कुशल वित्तीय मध्यस्थता द्वारा किया जा सकता है, और इसी के साथ वैश्वीकृत होते विश्व में स्थूल आर्थिक स्थिरता बनाए रखी जाती है। भारत इस दिशा की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहा है। हमारी राजनीतिक व्यवस्था भ्रष्टाचार, अनुपस्थिति और शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त व्यापक अकुशलता और धोखाधड़ी को प्रश्रय प्रदान करके आरक्षण को एक रामबाण उपाय के रूप में प्रस्तुत कर विफल रही है। इन दोनों ही विफलताओं को संबोधित करना आवश्यक है, जो नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थाओं में स्थान के लिए आरक्षण की मांग और उसके लिए आंदोलन (अधिकतर हिंसक और विध्वंसकारी) करने वाले समुदायों की दृष्टि से दीर्घकालीन समाधान होगा। यह लंबा समय लेने वाला प्रयास है और वर्तमान में आंदोलनों से कठोरता, निष्पक्षता और तन्यता के साथ निपटना होगा। शिक्षा और रोजगार पर अनेकों विडियो विश्लेषण देखें, यहां।
कृषि क्षेत्र से शहरों में नौकरियों की आकाँक्षाओं वाले युवाओं की आकाँक्षाओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त संख्या में नौकरियों का सृजन नहीं होता है तो उनमें निराशा निर्मित होती है। यह विशेष रूप से तब अधिक होता है जब समाज के निचले वर्गों के लिए नौकरियों और उच्च शिक्षा में सरकार द्वारा सकारात्मक कार्यवाही की नीति अपनाई जाती है और उनके लिए नौकरियां और शिक्षण संस्थाओं में स्थान सुरक्षित किये जाते हैं। नौकरियों का निर्माण (ए) अधोसंरचना क्षेत्र में निवेश द्वारा, (बी) उद्यमिता के संवर्धन और (सी) कुशल वित्तीय मध्यस्थता द्वारा किया जा सकता है, और इसी के साथ वैश्वीकृत होते विश्व में स्थूल आर्थिक स्थिरता बनाए रखी जाती है। भारत इस दिशा की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहा है। हमारी राजनीतिक व्यवस्था भ्रष्टाचार, अनुपस्थिति और शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त व्यापक अकुशलता और धोखाधड़ी को प्रश्रय प्रदान करके आरक्षण को एक रामबाण उपाय के रूप में प्रस्तुत कर विफल रही है। इन दोनों ही विफलताओं को संबोधित करना आवश्यक है, जो नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थाओं में स्थान के लिए आरक्षण की मांग और उसके लिए आंदोलन (अधिकतर हिंसक और विध्वंसकारी) करने वाले समुदायों की दृष्टि से दीर्घकालीन समाधान होगा। यह लंबा समय लेने वाला प्रयास है और वर्तमान में आंदोलनों से कठोरता, निष्पक्षता और तन्यता के साथ निपटना होगा। शिक्षा और रोजगार पर अनेकों विडियो विश्लेषण देखें, यहां।
[Newsletter ##newspaper-o##] [Bodhi Shiksha channel ##play-circle-o##] [FB ##facebook##] [हिंदी बोधि ##leaf##] [Sameeksha live ##graduation-cap##] [Shrutis ##fa-headphones##] [Quizzes ##question-circle##] [Bodhi Revision ##book##]
COMMENTS