Now that elections frenzy is over, it is time for big structural and economic reforms. India cannot wait for ever. | अब जहाँ चुनावों कि हलचल समाप्त हो चुकी है, तो समय है बड़े ढांचागत और आर्थिक सुधारों का। भारत सदा के लिए इंतज़ार नहीं कर सकता।
Elections over; Big reforms awaited!
The elections in some key states have placed the BJP in a comfortable position. The party’s victories are the result of the Central Government’s efforts to address the woes of the common man – That is the key perception The government has implemented various fiscal and non-fiscal reforms, ever since it has come to power at the Centre – reforms in foreign investment policy, indirect taxes, labour laws and the Insurance Act, dispute resolution, black money, and so on. Demonetization move was widely criticized . Recent election mandate - considered he first formal exhibit of public opinion - proved to be the game-changer for the Indian political dynamics. Statistics show that now, 54% of the Indian population – and about 64% of the Indian territory – is now being governed by the BJP. This creates enough room for synchronized policy making and implementation. With growing prospects of protectionism in various parts of the world, India seems poised for another liberalization of foreign investment policy. That is a very positive sign. Its extent would depend on external factors like (1) performance of other major economies of the world, (2) the impact of Brexit and (3) the future of EU. The govt. would also keenly monitor US visa and border tax issues, and President Trump’s stance on trade ties with India. [ PM Modi is expected to visit the US in May and meet President Trump ]
India’s evolving tax regime (GST) and India’s performance on “ease of doing business” are in sharp focus. The law should prescribe adequate checks and balances to ensure that such legislations do not hamper India’s investment. Read our full Bodhi on GST, here. Reforms on tax dispute resolution are also needed so that India’s place as a ‘preferred investment destination’ improves further. A key challenge for the Govt. is the pathetic state of the Indian banking sector. The NPA problem needs a quick resolution. Both the Govt. and the RBI have tried / suggested various measures including bank consolidation, creation of a ‘bad bank’ and asset management company and a public sector asset rehabilitation agency to address the issue. Revival of the banking sector is crucial for the revival of industries. The Govt has not undertaken major reforms in labour laws. The election mandate should encourage the government to now undertake these reforms. This would help India’s huge labour force. The government has been bold and very active in undertaking reforms. But the Big Bang is awaited. Read many Saars on Indian economy, here and view many video analysis on Bodhi Shiksha, here.
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चुनाव समाप्त; बड़े सुधार चाहिए
कुछ प्रमुख राज्यों में हुए चुनावों ने भाजपा को काफी अच्छी स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। पार्टी की यह सफलता केंद्र सरकार द्वारा आम जनता के कष्ट कम करने के लिए किये गए ठोस कामों का परिणाम है - यह महत्वपूर्ण धारणा है।
जब से यह सरकार बनी है तभी से उसने कुछ राजकोषीय और कुछ गैर-राजकोषीय सुधार किये हैं - इनमें विदेशी निवेश संबंधी नीति, अप्रत्यक्ष करों, श्रम कानूनों और बीमा अधिनियम, विवाद निराकरण, काले धन इत्यादि क्षेत्रों में किये गए सुधार शामिल हैं।
सरकार के विमुद्रीकरण के कदम की विरोधी दलों और अन्य आलोचकों द्वारा व्यापक आलोचना की गई, और हाल के चुनाव जनादेश को इस मुद्दे पर प्रदर्शित की गई जनता की पहली राय माना गया। यह मुद्दा भारतीय राजनीतिक गतिकी के लिए परिवर्तक के रूप में साबित हुआ है।
आंकडे दर्शाते हैं कि देश की 54 प्रतिशत जनसंख्या - और भारत के लगभग 64 प्रतिशत प्रदेश पर अब भाजपा का शासन है। यह उन्हें समक्रमिक नीति निर्माण और उसके क्रियान्वयन के लिए पर्याप्त स्थान प्रदान करेगा।
विश्व के विभिन्न भागों में संरक्षणवाद की बढती संभावना के बीच भारत विदेशी निवेश नीति में एक अन्य उदारीकरण करने की दृष्टि से तैयार प्रतीत होता है।
हालांकि उसकी व्याप्ति अनेक बाह्य कारकों पर निर्भर होगी, जैसे (1) विश्व की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन, (2) ब्रेक्सिट का प्रभाव और (3) यूरोपीय संघ का भविष्य। सरकार अमेरिकी वीजा और सीमा कर मुद्दों की भी बारीकी से समीक्षा करेगी, साथ ही भारत के साथ आर्थिक संबंधों पर राष्ट्रपति ट्रम्प के रुख पर भी नजर बनाए रखेगी। संभावना है कि प्रधानमंत्री मोदी मई में अमेरिका की यात्रा करेंगे और राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ मुलाकात करेंगे।
निवेश की दृष्टि से एक अन्य महत्वपूर्ण कारक है भारत का विकसित होता अप्रत्यक्ष कर शासन (जीएसटी)। भारत के सामान्य वर्जन-विरोधी नियम के क्रियान्वयन की भी संभावना है, “व्यापार की सुगमता” के विभिन्न मानदंडों पर भारत का प्रदर्शन उत्साहजनक नहीं रहा है, यह कानून पर्याप्त नियंत्रण और संतुलन प्रस्तावित करेगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसे कानून भारत के निवेश को बाधित न करें। जीएसटी पर हमारी पूर्ण बोधि पढ़ें, यहां।
कर विवादों के निवारण के लिए सुधार भी आवश्यक हैं ताकि ‘निवेश के लिए पसंदीदा देश’ के रूप में भारत की स्थिति में सुधार हो।
सरकार के लिए एक मुख्य चुनौती है भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की दयनीय अवस्था। अनर्जक परिसंपत्तियों ने उनकी ऋण प्रदाय की क्षम्राओं को बाधित किया है। इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए हाल ही में सरकार और आरबीआई ने बैंकों के समायोजन, एक बैड बैंक और परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी का निर्माण, और सार्वजनिक क्षेत्र का परिसंपत्ति पुनर्वास अभिकरण के निर्माण जैसे अनेक उपाय किये हैं।
श्रम कानूनों के सुधार की दिशा में सरकार ने कोई प्रमुख सुधार नहीं किये हैं। हाल का चुनाव जनादेश अब सरकार को ऐसे सुधार करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। इससे भारत के विशाल श्रम बल को काफी सहायता प्राप्त होगी।
वर्तमान सरकार सुधार करने की दृष्टि से काफी कठोर और सक्रिय है। अब वह अधिक उत्साह के साथ सुधार जारी रखने के लिए प्रोत्साहित होगी।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर अनेकों सार पढ़ें, यहां और बोधि शिक्षा पर देखें अनेकों विश्लेषण, यहां।
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