Despite being a victim of cross-border terrorism from Pakistan, India has been most gracious in respecting the Indus Water Treaty. The World Bank is behaving strangely, lately. | लगातार सीमापार आतंक का शिकार रहा भारत अब तक सिंधु जल समझौते का सम्मान करता आया है। अब विश्व बैंक का व्यवहार थोड़ा अजीब हो चला है।
Indus Water Treaty : India should call the shots
The Indus Water Treaty (IWT) is a water-distribution treaty between India and Pakistan, brokered by the World Bank (WB) [then the International Bank of Reconstruction and Development (IBRD)], and signed in Karachi on September 19, 1960. A full Bodhi on it is available on Bodhi Booster, here.
PM Pandit Nehru of India signed the Treaty in the hope that it would bring peace, and gave Pakistan the system’s largest rivers (Jhelum, Chenab and Indus, the western rivers) and retained exclusive use of the eastern rivers of Ravi Beas and Sutlej. Nehru was always motivated by a feeling of international brotherhood. The IWT is the most generous treaty of its king globally, in terms of what the lower riparian gets. Although, the two countries have been engaged in hostilities on the Kashmir issue on several occasions, the Indus Treaty has never been mentioned as a weapon by India till the September 2016 Uri attack when India suspended the Permanent Indus Commission (PIC) with Pakistan.
According to the terms of the treaty, either party is permitted to seek a neutral expert’s appointment, but the treaty does not specify unilateral right for a court of arbitration. The World Bank has also not remained fair to India all these years. This has complicated matters further. In November 2016, the Bank proceeded to appoint both a court of arbitration (as demanded by Pakistan) and a neutral expert (as suggested by India), thereby breaching the terms of IWT. An arbitral tribunal was appointed in 2010 with the consent of both parties. However, the neutral expert is empowered to refer the parties’ disagreement, if required, to a court of arbitration. Bank’s dual processes was protested against, and it has paused. It is now pleading with India to bail out Pakistan over the two moderate sized Indian hydro-power projects. Indian government has not even initiated any new project to correct India’s failure to tap its meager share of 19.48% of the Indus water. Pakistan, on the other hand, wants design changes of the type it enforced in the Salal project which resulted in the plant silting up, and is threatening to target other Indian projects as well.
The PIC suspension has now been lifted. The truth being that the suspension was just eyewash, with the PIC missing no meeting. The government has appointed a committee to examine India’s own right under IWT. India’s under-utilization of its share has resulted in Pakistan getting more than 10 billion cubic metres (BCM) yearly over and above its 167.3 BCM allocation. Pakistan’s interest lies in sustaining the world’s most beneficial treaty. But it is still not desisting from carrying out proxy war against India. It is time India twists Pakistan’s arm. Enough is truly enough.
View a comprehensive resource on “Rivers of India” on Bodhi Resources page.
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सिंधु जल संधि : कड़ा रूख अपनाने का समय
सिंधु जल संधि (आईडब्लूटी) भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक - तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (आईबीआरडी) - की मध्यस्थता में की एक जल वितरण संधि है, जिसपर 19 सितंबर 1960 को कराची में हस्ताक्षर किये गए थे। हिंदी बोधि बूस्टर पर पूर्ण बोधि उपलब्ध है, यहां।
भारत ने इस आशा से यह संधि की थी कि इससे क्षेत्र में शांति स्थापित होगी, और इसके माध्यम से उसने पाकिस्तान को इस व्यवस्था की तीन सबसे बड़ी नदियों (झेलम, चिनाब, सिंधु, पश्चिमी नदियाँ) पर अधिकार दिया, और स्वयं के लिए पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलुज) के उपयोग के अनन्य उपयोग के अधिकार सुरक्षित रखे। चाचा नेहरू सदैव ही अंतरराष्ट्रीय बंधुत्व की भावना से प्रेरित रहते थे। सिंधु जल समझौता विश्व भर में निचले तटों को मिलने वाले हितों के हिसाब से सबसे उदार समझौता है। हालांकि दोनों देशों के बीच कश्मीर के मुद्दे पर समय-समय पर संघर्ष होते रहे हैं परंतु सितंबर 2016 के उडी हमले तक भारत ने कभी भी सिंधु जल समझौते का उपयोग पाकिस्तान के विरुद्ध एक हथियार के रूप में नहीं किया है। उडी हमले के बाद भारत ने पहली बार पाकिस्तान के साथ स्थाई सिंधु आयोग (पीआईसी) को निलंबित किया।
संधि की शर्तों के अनुसार दोनों पक्षों को एक निष्पक्ष विशेषज्ञ की नियुक्ति की अनुमति दी गई है परंतु संधि में कहीं भी विवाचन न्यायालय के एकतरफा अधिकार का उल्लेख नहीं किया गया है। इतने वर्षों के दौरान विश्व बैंक भी भारत के प्रति निष्पक्ष नहीं रहा है। इसने मामलों को और अधिक जटिल बना दिया है। नवंबर 2016 में बैंक ने पाकिस्तान की मांग के अनुसार एक विवाचन न्यायालय की नियुक्ति की प्रक्रिया भी शुरू की, वहीँ दूसरी ओर भारत के सुझाव के अनुसार एक निष्पक्ष विशेषज्ञ की नियुक्ति की प्रक्रिया भी शुरू की, और इस प्रकार सिंधु जल संधि की शर्तों का उल्लंघन किया। वर्ष 2010 में दोनों पक्षों की सहमती से एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण की नियुक्ति की गई थी। हालांकि निष्पक्ष विशेषज्ञ को आवश्यकता पड़ने पर दोनों पक्षों की असहमति को एक विवाचन न्यायालय को प्रेषित करने का अधिकार है। बैंक की इस दोहरी प्रक्रिया पर उठे शोर ने बैंक को इसे स्थगित करने पर मजबूर किया परंतु उसने अपने इस कानूनी रूप से अस्वीकार्य निर्णय को रद्द नहीं किया। अब वह भारत से अनुरोध कर रहा है कि वह पाकिस्तान को अपनी दो मध्यम आकार की पनबिजली परियोजनाओं में छूट प्रदान करे। भारत ने अभी तक सिंधु नदी के अपने केवल 19.48 प्रतिशत हिस्से के उपयोग की विफलता को ठीक करने के लिए कोई नई परियोजना शुरू नहीं की है। दूसरी ओर पाकिस्तान उस प्रकार के संरचनात्मक परिवर्तन चाहता है जो उसने सलाल परियोजना के संबंध में अधिरोपित किये थे, जिसका परिणाम संयंत्र के स्थगित होने में हुआ, और वह भारत की अन्य परियोजनाओं को भी निशाना बनाने की धमकी दे रहा है।
स्थाई सिंधु आयोग के निलंबन को अब हटा लिया गया है। हालांकि वास्तविकता यह है कि यह स्थगिती मात्र एक दिखावा थी, और आयोग की कोई भी बैठक बाधित नहीं हुई है। सिंधु जल संधि के तहत भारत के स्वयं के अधिकारों की समीक्षा के लिए सरकार द्वारा एक समिति गठित की गई है। भारत द्वारा अपने हिस्से के पानी के कम उपयोग का परिणाम पाकिस्तान को उसके हिस्से 167.3 अरब घन मीटर पानी के अतिरिक्त प्रति वर्ष 10 अरब घन मीटर अतिरिक्त पानी प्राप्त होने में हुआ है। पाकिस्तान का हित विश्व की इस सबसे लाभदायक संधि को बनाए रखने में है। परंतु फिर भी वह भारत के विरुद्ध खुले और छद्म युद्ध से बाज नहीं आ रहा है। भारत के लिए अवसर है कि वह पाकिस्तान की बांह मरोड़े।
नदियों पर एक विस्तृत पृष्ठ बोधि संसाधन पर पाएं।
भारत ने इस आशा से यह संधि की थी कि इससे क्षेत्र में शांति स्थापित होगी, और इसके माध्यम से उसने पाकिस्तान को इस व्यवस्था की तीन सबसे बड़ी नदियों (झेलम, चिनाब, सिंधु, पश्चिमी नदियाँ) पर अधिकार दिया, और स्वयं के लिए पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलुज) के उपयोग के अनन्य उपयोग के अधिकार सुरक्षित रखे। चाचा नेहरू सदैव ही अंतरराष्ट्रीय बंधुत्व की भावना से प्रेरित रहते थे। सिंधु जल समझौता विश्व भर में निचले तटों को मिलने वाले हितों के हिसाब से सबसे उदार समझौता है। हालांकि दोनों देशों के बीच कश्मीर के मुद्दे पर समय-समय पर संघर्ष होते रहे हैं परंतु सितंबर 2016 के उडी हमले तक भारत ने कभी भी सिंधु जल समझौते का उपयोग पाकिस्तान के विरुद्ध एक हथियार के रूप में नहीं किया है। उडी हमले के बाद भारत ने पहली बार पाकिस्तान के साथ स्थाई सिंधु आयोग (पीआईसी) को निलंबित किया।
संधि की शर्तों के अनुसार दोनों पक्षों को एक निष्पक्ष विशेषज्ञ की नियुक्ति की अनुमति दी गई है परंतु संधि में कहीं भी विवाचन न्यायालय के एकतरफा अधिकार का उल्लेख नहीं किया गया है। इतने वर्षों के दौरान विश्व बैंक भी भारत के प्रति निष्पक्ष नहीं रहा है। इसने मामलों को और अधिक जटिल बना दिया है। नवंबर 2016 में बैंक ने पाकिस्तान की मांग के अनुसार एक विवाचन न्यायालय की नियुक्ति की प्रक्रिया भी शुरू की, वहीँ दूसरी ओर भारत के सुझाव के अनुसार एक निष्पक्ष विशेषज्ञ की नियुक्ति की प्रक्रिया भी शुरू की, और इस प्रकार सिंधु जल संधि की शर्तों का उल्लंघन किया। वर्ष 2010 में दोनों पक्षों की सहमती से एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण की नियुक्ति की गई थी। हालांकि निष्पक्ष विशेषज्ञ को आवश्यकता पड़ने पर दोनों पक्षों की असहमति को एक विवाचन न्यायालय को प्रेषित करने का अधिकार है। बैंक की इस दोहरी प्रक्रिया पर उठे शोर ने बैंक को इसे स्थगित करने पर मजबूर किया परंतु उसने अपने इस कानूनी रूप से अस्वीकार्य निर्णय को रद्द नहीं किया। अब वह भारत से अनुरोध कर रहा है कि वह पाकिस्तान को अपनी दो मध्यम आकार की पनबिजली परियोजनाओं में छूट प्रदान करे। भारत ने अभी तक सिंधु नदी के अपने केवल 19.48 प्रतिशत हिस्से के उपयोग की विफलता को ठीक करने के लिए कोई नई परियोजना शुरू नहीं की है। दूसरी ओर पाकिस्तान उस प्रकार के संरचनात्मक परिवर्तन चाहता है जो उसने सलाल परियोजना के संबंध में अधिरोपित किये थे, जिसका परिणाम संयंत्र के स्थगित होने में हुआ, और वह भारत की अन्य परियोजनाओं को भी निशाना बनाने की धमकी दे रहा है।
स्थाई सिंधु आयोग के निलंबन को अब हटा लिया गया है। हालांकि वास्तविकता यह है कि यह स्थगिती मात्र एक दिखावा थी, और आयोग की कोई भी बैठक बाधित नहीं हुई है। सिंधु जल संधि के तहत भारत के स्वयं के अधिकारों की समीक्षा के लिए सरकार द्वारा एक समिति गठित की गई है। भारत द्वारा अपने हिस्से के पानी के कम उपयोग का परिणाम पाकिस्तान को उसके हिस्से 167.3 अरब घन मीटर पानी के अतिरिक्त प्रति वर्ष 10 अरब घन मीटर अतिरिक्त पानी प्राप्त होने में हुआ है। पाकिस्तान का हित विश्व की इस सबसे लाभदायक संधि को बनाए रखने में है। परंतु फिर भी वह भारत के विरुद्ध खुले और छद्म युद्ध से बाज नहीं आ रहा है। भारत के लिए अवसर है कि वह पाकिस्तान की बांह मरोड़े।
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