Turks in Europe are being canvassed by Turkey's ministers for a constitutional referendum. Europe doesn't approve. Crisis follows. | यूरोप में रह रहे तुर्कों के बीच तुर्की के नेता संवैधानिक जनमत संग्रह हेतु राजनीतिक रैलियां कर रहे हैं। यूरोप इससे खफा है। संकट प्रारम्भ।
Turkey and the EU : a complex relationship
Turkey and EU countries are witnessing tension due to the Constitutional Referendum coming up. Till the time the Turkish President started a strong campaign for April 2017’s referendum on constitutional reforms, which will allow him more terms, the relations between Turkey and the EU were relatively stable. Trouble started when the Turkish President’s allies prepared plans to organise rallies in European cities to garner support among the large number of Turks living in Europe who are eligible to vote in next month’s referendum. Some European countries like Austria, Switzerland and the Netherlands banned these rallies citing security concerns and domestic political consequences. Read many Bodhi Saars on Protectionism and Nationalism here
However, the Turkish President turned it into a Turkey versus West dispute. He even went on to label those German towns which had banned such rallies as “Nazi practices”. He termed the Netherlands as “facist” when it refused landing permission to the plane carrying Turkish foreign minister on his way to address rallies in that country. Thereafter, relations between the two countries deteriorated rapidly, and culminated in the removal of the Dutch Ambassador from Turkey. Turkey has also threatened to scrap an agreement signed last year with Europe to curb passage of migrants through Turkey in return for financial assistance from EU. The referendum is crucial for the Turkish President to overhaul Turkish political system, as Turkey will convert to a Presidential form of government if the referendum is through. This would enable him to remain for two more terms without contest.
The diplomatic crisis has been changed into a political battle. But the crisis could have serious consequences. European leadres fear that it could result into help to the anti-Muslim far-right parties in the continent. View Bodhi Shiksha videos on World Politics here The Dutch far-right candidate who contested in the recently held elections, has already questioned the loyalty of the Dutch Muslims and demanded tough response to Turkey. The Turkish President could earn short-term gains from this move, but could seriously damage ties between Turkey and Europe, and endanger the prospects of Turkish people living in Europe. Read a full Bodhi on Tectonic Shifts in World Politics The crisis could have been avoided by a direct dialogue between the EU countries and Turkey instead of extreme steps by them.
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तुर्की एवं यूरोपीय संघ : एक जटिल संबंध
तुर्की और यूरोपीय देश आ रहे जनमत संग्रह से पैदा होते तनाव का अनुभव कर रहे हैं। तुर्की और यूरोपीय संघ देशों के बीच संबंध तब तक अपेक्षाकृत स्थिर थे जब तक तुर्की राष्ट्रपति ने अगले महीने होने वाले जनमत संग्रह के लिए एक तेज अभियान शुरू नहीं किया था। संवैधानिक सुधारों पर यह जनमतसंग्रह उन्हें फिर से चुनाव में खड़े होने की अधिकार देगा।
समस्या तब शरु हुई जब तुर्की के राष्ट्रपति के सहयोगियों ने यूरोप के शहरों में रैलियां आयोजित करने की योजना बनाई ताकि यूरोप में बड़ी संख्या में रहने वाले तुर्की के नागरिकों का समर्थन प्राप्त किया जा सके जिन्हें इस जनमत संग्रह में मतदान करने का अधिकार है।
ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड्स, और स्विट्जरलैंड जैसे देशों ने इन रैलियों को प्रतिबंधित कर दिया, जिनके लिए उन्होंने सुरक्षा संबंधी कारणों और घरेलू राजनीतिक परिणामों का हवाला दिया।
हालांकि तुर्की के राष्ट्रपति ने इस संकट को तुर्की बनाम पश्चिम के संघर्ष का रंग दे दिया। उन्होंने तो जर्मनी के उन शहरों को “नाजीवादी” भी कह दिया जिन्होंने इन रैलियों को प्रतिबंधित किया था। संरक्षणवाद और राष्ट्रवाद पर पढ़ें अनेकों बोधियाँ, यहाँ
जब नीदरलैंड्स ने रैलियों को संबोधित करने आ रहे तुर्की के विदेशमंत्री के विमान को उतरने की अनुमति नहीं दी तो उन्होंने नीदरलैंड्स को “फासीवादी” करार दे दिया। इसके बाद दोनों देशों के संबंध तेजी से बिगड़े, और इसका अंत तुर्की द्वारा उस देश के राजदूत के निष्कासन में हुआ। तुर्की ने एक वर्ष पूर्व किये गए उस समझौते को भी समाप्त करने की धमकी दी, जिसके तहत यूरोपीय संघ द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता के बदले तुर्की से होकर गुजरने वाले प्रविसियों पर तुर्की द्वारा रोक लगाईं जानी है। तुर्की के राष्ट्रपति के लिए तुर्की की राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन करने के लिए इस जनमत संग्रह का परिणाम महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके सफल होने पर तुर्की में राष्ट्रपति शासन की पद्धति की शुरुआत होगी। साथ ही यह उन्हें बिना चुनाव कराए अगले दो कार्यकालों के लिए सत्ता में बने रहने की सुविधा भी प्रदान करेगा।
यह कूटनीतिक संकट अब राजनीतिक संघर्ष में परिवर्तित हो गया है। परंतु इस संकट के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यूरोपीय नेताओं को भय है कि इससे उस महाद्वीप में अति दक्षिणपंथी पार्टियों को सहायता मिल सकती है। विश्व राजनीति पर बोधि शिक्षा विडियो देखें, यहाँ हाल का चुनाव लड़ने वाले नीदरलैंड्स के अति-दक्षिणपंथी नेता ने पहले ही डच मुस्लिमों की वफादारी पर प्रश्न उठाने शुरू कर दिए हैं और तुर्की को कठोर प्रतिक्रिया देने की मांग की है। इस कदम से तुर्की के राष्ट्रपति को अल्पकालिक लाभ मिल सकते हैं परंतु इसके कारण तुर्की और यूरोपीय देशों के बीच के संबंधों को भारी क्षति पहुँच सकती है, साथ ही इससे यूरोप में रहने वाले तुर्की के नागरिकों की संभावनाओं को भी खतरा पैदा हो जाएगा। विश्व राजनीति के विवर्तनिक परिवर्तन पर बोधि पढ़ें, यहाँ दोनों ही पक्षों द्वारा उठाए गए चरम कदमों के बजाय तुर्की और यूरोपीय देशों के बीच सीधी बातचीत के द्वारा इस संकट को टाला जा सकता था।
जब नीदरलैंड्स ने रैलियों को संबोधित करने आ रहे तुर्की के विदेशमंत्री के विमान को उतरने की अनुमति नहीं दी तो उन्होंने नीदरलैंड्स को “फासीवादी” करार दे दिया। इसके बाद दोनों देशों के संबंध तेजी से बिगड़े, और इसका अंत तुर्की द्वारा उस देश के राजदूत के निष्कासन में हुआ। तुर्की ने एक वर्ष पूर्व किये गए उस समझौते को भी समाप्त करने की धमकी दी, जिसके तहत यूरोपीय संघ द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता के बदले तुर्की से होकर गुजरने वाले प्रविसियों पर तुर्की द्वारा रोक लगाईं जानी है। तुर्की के राष्ट्रपति के लिए तुर्की की राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन करने के लिए इस जनमत संग्रह का परिणाम महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके सफल होने पर तुर्की में राष्ट्रपति शासन की पद्धति की शुरुआत होगी। साथ ही यह उन्हें बिना चुनाव कराए अगले दो कार्यकालों के लिए सत्ता में बने रहने की सुविधा भी प्रदान करेगा।
यह कूटनीतिक संकट अब राजनीतिक संघर्ष में परिवर्तित हो गया है। परंतु इस संकट के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यूरोपीय नेताओं को भय है कि इससे उस महाद्वीप में अति दक्षिणपंथी पार्टियों को सहायता मिल सकती है। विश्व राजनीति पर बोधि शिक्षा विडियो देखें, यहाँ हाल का चुनाव लड़ने वाले नीदरलैंड्स के अति-दक्षिणपंथी नेता ने पहले ही डच मुस्लिमों की वफादारी पर प्रश्न उठाने शुरू कर दिए हैं और तुर्की को कठोर प्रतिक्रिया देने की मांग की है। इस कदम से तुर्की के राष्ट्रपति को अल्पकालिक लाभ मिल सकते हैं परंतु इसके कारण तुर्की और यूरोपीय देशों के बीच के संबंधों को भारी क्षति पहुँच सकती है, साथ ही इससे यूरोप में रहने वाले तुर्की के नागरिकों की संभावनाओं को भी खतरा पैदा हो जाएगा। विश्व राजनीति के विवर्तनिक परिवर्तन पर बोधि पढ़ें, यहाँ दोनों ही पक्षों द्वारा उठाए गए चरम कदमों के बजाय तुर्की और यूरोपीय देशों के बीच सीधी बातचीत के द्वारा इस संकट को टाला जा सकता था।
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