Quality of response in the aftermath of the Ennore coastal oil spill disaster have proven to be a bigger disaster.
Environmental disasters unremedied
Indian environment management agencies are falling short of their duties. Even disasters are not able to teach them (us) much of value. The Ennore coastal area (Chennai) has witnessed a massive oil spill on 28-January, 2017 and the quality of response itself is a disaster! Agencies are busy protecting their reputations, and not the environment. The NOS-DCP (National Oil Spill-Disaster Contingency Plan) is in place and updated since two decades, but not put into action here.
Agencies involved : 1. Ministry of Shipping (investigation into the collision of ships), 2. Kamarajar Port Limited (KPL – issuing statements!), 3. State Coastal Zone Management Authority (did not submit state plan to Coast Guard as part of NOS-DCP), 4. National Green Tribunal (seized with the matter – checking culpability and compensation), 5. State and Central governments (overall in-charge). Watch many video analyses on environment on Bodhi Shiksha channel.
No advisories issued properly in time by anyone. The citizenry has no answers about their day-to-day routines (e.g. can fishermen go out to sea now?) Two dangerous aspects – (1) Proofs have emerged about sludge being “buried” in nearby hamlets! So the shipowner has tried to bury the sludge in the same community that he has impacted the most, and (2) Slick has spread to other coastal regions far away (Pulicat mangroves etc.) It seems that the entire bureaucracy of the state had also come to a complete halt during the political crisis. Here is an image showing the extent of the damage. The containment and damage control work should continue till the damage is contained. But it does not look like happening in this case as the containment work completion announcement has been made. Download the Ennore assessment report by ICMAMPD on Bodhi Resources page, in the head Environment, Ecology, Climate Change. The CM E.K. Palaniswami announced a total interim relief of Rs 15 crore to the 30,000 families affected in Chennai, Kanchipuram and Thiruvallur districts (Rs 5,000 each). Are we bent upon destroying our environment, ecosystem and the normal lives of the local citizens? When would we realize the seriousness of such disasters and their future consequences? When would we wake up? India’s big questions remain unanswered.
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पर्यावरणीय आपदाओं का ईलाज नहीं
भारतीय पर्यावरणीय एजेंसियां अपने कर्त्तव्य नहीं निभा पा रही हैं। आपदाएं भी उन्हें (हमें) ज़्यादा कुछ सिखा नहीं पा रहीं।
एन्नोर तटीय क्षेत्र (चेन्नई) ने एक बड़ी तेल रिसाव घटना (आपदा) २८-जनवरी २०१७ को झेली, और सरकारी प्रतिक्रिया अपने आप में एक आपदा रही है! एजेंसियों को अपनी प्रतिष्ठा बचाने में ज़्यादा रूचि है, न कि पर्यावरण को। राष्ट्रीय तेल रिसाव - आपदा प्रबंधन योजना (एनओएस-डीसीपी) दो दशकों से बनी हुई है और अद्यतन भी हो चुकी है, किन्तु उसपर कार्यवाही नहीं हो रही है।
इसमें शामिल एजेंसियां हैं : १. जहाजरानी मंत्रालय (जहाज टकराने की जांच), २. कामराजर बंदरगाह लिमिटेड (केपीएल - व्यक्तव्य जारी कर रहे हैं!), ३. राज्य तटीय प्रबंधन प्राधिकारी (तटरक्षक (कोस्ट गार्ड) को आपदा प्रबंधन योजना (एनओएस-डीसीपी) के तहत प्लान नहीं दिए), ४. राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) (दोष निर्धारण और मुआवजे का परीक्षण कर रहे हैं), ५. राज्य और केंद्र सरकारें (कुल मिला कर ज़िम्मेदार)। पर्यावरण पर अनेक विडियो विश्लेषण बोधि शिक्षा चैनल पर देखें
कोई परामर्शी (एडवाइज़री) भी समय पर जारी नहीं की गयी। नागरिकों को अपने रोज़मर्रा के कामों पर भी गियो दिशा-निर्देश नहीं दिए गए हैं (उदाहरण : क्या मछुआरे अब समुद्र में जा सकते हैं?) दो खतरनाक पहलू - (१) सबूत मिले हैं कि गाद को आसपास के इलाकों में गाड़ा गया है! तो जहाजमालिक ने गाद को उन्हें लोगों के रिहायशी क्षेत्रों में निपटने का प्रयास किया है जिनपर उसने सबसे बुरा प्रभाव डाला है, और (२) तेल रिसकर अब अन्यत्र तटीय इलाकों में जा पहुंचा है। ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के राजनीतिक संकट के दौरान राजनीतिक शासन के साथ साथ नौकरशाही शासन भी पूरी तरह से थमा हुआ था। इस चित्र में आप नुकसान देख सकते हैं। रिसाव को रोकने और नियंत्रित करने का काम तब तक जारी रहना चाहिए जब तक कि संपूर्ण क्षति रुक नहीं जाती, परंतु यहाँ पर्याप्त समय बीतने के बाद भी ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं देता क्योंकि रिसाव रोकने के कार्य की पूर्णता की घोषणा की जा चुकी है। इस रिसाव पर एक रिपोर्ट आप बोधि संसाधन पृष्ठ पर डाउनलोड करें मुख्यमंत्री पलानिस्वामी ने कुल अंतरिम आपदा राहत राशि रु.१५ करोड़ चेन्नई, कांचीपुरम और तिरुवल्लुर जिलों के ऊन ३०,००० परिवारों को देने की घोषणा की जिनपर सीधा प्रभाव पड़ा है (रु. ५००० प्रत्येक)। क्या हम अपने पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र और स्थानीय नागरिकों के सामान्य जीवन को नष्ट ही करना चाहते हैं? हम इस प्रकार की आपदाओं और भविष्य में होने वाले परिणामों की गंभीरता को कब समझेंगे? हम कब जागेंगे? भारत के ये बड़े प्रश्न अभी अनुत्तरित ही हैं।
इसमें शामिल एजेंसियां हैं : १. जहाजरानी मंत्रालय (जहाज टकराने की जांच), २. कामराजर बंदरगाह लिमिटेड (केपीएल - व्यक्तव्य जारी कर रहे हैं!), ३. राज्य तटीय प्रबंधन प्राधिकारी (तटरक्षक (कोस्ट गार्ड) को आपदा प्रबंधन योजना (एनओएस-डीसीपी) के तहत प्लान नहीं दिए), ४. राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) (दोष निर्धारण और मुआवजे का परीक्षण कर रहे हैं), ५. राज्य और केंद्र सरकारें (कुल मिला कर ज़िम्मेदार)। पर्यावरण पर अनेक विडियो विश्लेषण बोधि शिक्षा चैनल पर देखें
कोई परामर्शी (एडवाइज़री) भी समय पर जारी नहीं की गयी। नागरिकों को अपने रोज़मर्रा के कामों पर भी गियो दिशा-निर्देश नहीं दिए गए हैं (उदाहरण : क्या मछुआरे अब समुद्र में जा सकते हैं?) दो खतरनाक पहलू - (१) सबूत मिले हैं कि गाद को आसपास के इलाकों में गाड़ा गया है! तो जहाजमालिक ने गाद को उन्हें लोगों के रिहायशी क्षेत्रों में निपटने का प्रयास किया है जिनपर उसने सबसे बुरा प्रभाव डाला है, और (२) तेल रिसकर अब अन्यत्र तटीय इलाकों में जा पहुंचा है। ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के राजनीतिक संकट के दौरान राजनीतिक शासन के साथ साथ नौकरशाही शासन भी पूरी तरह से थमा हुआ था। इस चित्र में आप नुकसान देख सकते हैं। रिसाव को रोकने और नियंत्रित करने का काम तब तक जारी रहना चाहिए जब तक कि संपूर्ण क्षति रुक नहीं जाती, परंतु यहाँ पर्याप्त समय बीतने के बाद भी ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं देता क्योंकि रिसाव रोकने के कार्य की पूर्णता की घोषणा की जा चुकी है। इस रिसाव पर एक रिपोर्ट आप बोधि संसाधन पृष्ठ पर डाउनलोड करें मुख्यमंत्री पलानिस्वामी ने कुल अंतरिम आपदा राहत राशि रु.१५ करोड़ चेन्नई, कांचीपुरम और तिरुवल्लुर जिलों के ऊन ३०,००० परिवारों को देने की घोषणा की जिनपर सीधा प्रभाव पड़ा है (रु. ५००० प्रत्येक)। क्या हम अपने पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र और स्थानीय नागरिकों के सामान्य जीवन को नष्ट ही करना चाहते हैं? हम इस प्रकार की आपदाओं और भविष्य में होने वाले परिणामों की गंभीरता को कब समझेंगे? हम कब जागेंगे? भारत के ये बड़े प्रश्न अभी अनुत्तरित ही हैं।
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