The dangerously high levels of NPAs in public sector banks demand an immediate and effective resolution.
Banking upon a Solution
The problem of non-performing assets (NPAs) of Indian banks has already become unmanageable and is a threat to the whole economy now. In December 2016, NPAs were 12.5% of the total lending of the banking system. China has been growing at a very high speed for the last 40 years, and has now slowed down. So, it has its share of bad loans as well. How big? In May 2016, the figure of bad loans had grown to 1.75% of the total lending! Chinese authorities are worried about this “high” growth and are making efforts to contain them to below 2%. So what of India’s 12.5%? There is no visible alarm at all. Demonetization has already dealt a harsh blow to the entire economy. Bankers were busy managing its fallout than focusing on the economy. Post demonetization, investigating agencies (IT and CBI etc.) are harassing bank officials for loans sanctioned in the past which have turned bad (One example - the ex-MD of IDBI bank, arrested over the KF scandal). This has not only shocked bankers, but also made them reluctant to lend to projects that look good on paper. It can kill the cycle of investments in India. View the latest NPA data, here
Loan defaults are of two types – (1) Arising out of circumstances beyond one’s control, and (2) Willful defaulters. Strangely, the PSU stocks jumped 76% in the last 12 months, which is the second fastest growing stock after metals (98%). While the interest spread (difference between interest paid and interest received) of PSB shrunk from 2.8% in 2011 to 2.6% now – a sharp fall in the cut-throat competition. So, the rise in the stocks of PSB seems to be a bubble which may burst anytime causing enormous harm to investors as well as the economy. Lending has become paralysed. It was a meager 5% growth till December 2016 (lowest in 10 years). PSBs are the country’s largest lenders, and paralyzing them is killing our economy. Liquidity must soon return to the system if the economy is to revive from the shock of demonetization. Watch many video analyses on Demonetisation here, on Indian economy here, and on GST here.
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समाधान की तलाश में बैंकें
भारतीय बैंकिंग में बढती अनर्जक परिसंपत्तियों की समस्या नियंत्रण से बाहर हो चुकी है, और ये संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन गयी है। दिसंबर २०१६ में, बैंकिंग व्यवस्था की कुल लेनदारियों का १२.५ % अनर्जक आस्तियां बन चुका था।
पिछले 40 वर्षों से चीन तेजी से वृद्धि और विकास करता रहा है और उसकी वृद्धि अब धीमी हुई है। इन 40 वर्षों के दौरान वहां भी अनर्जक परिसंपत्तियां बढ़ी हैं। कितनी? मई 2016 तक चीन की अनर्जक परिसंपत्तियां बढ़कर कुल ऋण के 1.75 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गई थीं!
चीन के अधिकारी अनर्जक परिसंपत्तियों की इस “उच्च” वृद्धि की स्थिति से भी काफी चिंतित हैं और इसे 2 प्रतिशत के अंदर नियंत्रित करने के लिए प्रयासरत हैं। तो भारत के 12.5 का क्या? कोई चिंता प्रत्यक्ष रूप से नजर तो नहीं आ रही है।
विमुद्रीकरण ने पहले ही संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर कठोर आघात किया है। इस दौरान बैंकर उसका प्रबंधन करते दिखे बजाय अर्थव्यवस्था के। विमुद्रीकरण के पश्चात अन्वेषण अभिकरण (आयकर विभाग, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो इत्यादि) बैंक अधिकारियों को उनके द्वारा पूर्व में दिए गए ऐसे ऋणों को लेकर प्रताड़ित कर रहे हैं जो अब खराब ऋण बन गए हैं (एक उदाहरण - आईडीबीआई बैंक के पूर्व-प्रबंध निदेशक को किंगफ़िशर एयरलाइन्स के संबंध में गिरफ्तार किया गया)।
इसके कारण न केवल बैंकर सदमे में हैं बल्कि इसने उन्हें ऐसी परियोजनाओं को ऋण प्रदान करने के मामले में उदासीन बना दिया है जो कागज पर अच्छी दिखाई देती हैं। इससे भारत में निवेश चक्र पूरी तरह टूट सकता है। एनपीए के आंकडें यहाँ देखें
अनर्जक देनदारियां दो प्रकार के होते हैं – (1) वे जिनके ऋण ऐसी परिस्थितियों के कारण अनर्जक हो जाते हैं जो नियंत्रण से बाहर हैं, और (2) वे जो बैंकों को धोखा देने के लिए ही ऋण प्राप्त करते हैं। अजीब बात रही कि सार्वजनिक क्षेत्र बैंकों के शेयरों में पिछले 12 महीनों के दौरा 76 प्रतिशत का उछाल आया, जो 98 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करने वाली धातुओं के बाद सबसे तेज गति से बढ़ने वाले शेयर रहे। सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों का ब्याज प्रसार (भुगतान किये गए ब्याज और प्राप्त ब्याज के बीच का अंतर) वर्ष 2011 के 2.8 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2016 में 2.6 प्रतिशत रह गया - खुदरा बैंकिंग में जारी प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से यह एक तीव्र गिरावट कही जा सकती है। अतः, सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों के शेयरों में आया उछाल एक बुलबुला प्रतीत होता है जो किसी भी समय फूट सकता है, जिससे निवेशकों के साथ ही संपूर्ण अर्थव्यवस्था को अपरिमित हानि हो सकती है। बैंकों से होने वाला ऋण प्रदाय लगभग पूरी तरह से थमा हुआ है। दिसंबर 2016 तक इसमें केवल 5 % वार्षिक वृद्धि हुई (जो दस वर्षों की सबसे कम रही)। सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकें देश की सबसे बड़ी ऋण प्रदाता मानी जाती हैं, और यदि वे ही थम जाती हैं तो हम अर्थव्यवस्था थम जाती है। यदि अर्थव्यवस्था को विमुद्रीकरण के झटके से उबरना है तो व्यवस्था में शीघ्र चलनिधि आना अपरिहार्य है। आप बोधि शिक्षा पर अनेकों विडियो विश्लेषण देख सकते हैं - विमुद्रीकरण पर यहाँ, भारतीय अर्थव्यवस्था पर यहाँ, और जीएसटी पर यहाँ
अनर्जक देनदारियां दो प्रकार के होते हैं – (1) वे जिनके ऋण ऐसी परिस्थितियों के कारण अनर्जक हो जाते हैं जो नियंत्रण से बाहर हैं, और (2) वे जो बैंकों को धोखा देने के लिए ही ऋण प्राप्त करते हैं। अजीब बात रही कि सार्वजनिक क्षेत्र बैंकों के शेयरों में पिछले 12 महीनों के दौरा 76 प्रतिशत का उछाल आया, जो 98 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करने वाली धातुओं के बाद सबसे तेज गति से बढ़ने वाले शेयर रहे। सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों का ब्याज प्रसार (भुगतान किये गए ब्याज और प्राप्त ब्याज के बीच का अंतर) वर्ष 2011 के 2.8 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2016 में 2.6 प्रतिशत रह गया - खुदरा बैंकिंग में जारी प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से यह एक तीव्र गिरावट कही जा सकती है। अतः, सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों के शेयरों में आया उछाल एक बुलबुला प्रतीत होता है जो किसी भी समय फूट सकता है, जिससे निवेशकों के साथ ही संपूर्ण अर्थव्यवस्था को अपरिमित हानि हो सकती है। बैंकों से होने वाला ऋण प्रदाय लगभग पूरी तरह से थमा हुआ है। दिसंबर 2016 तक इसमें केवल 5 % वार्षिक वृद्धि हुई (जो दस वर्षों की सबसे कम रही)। सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकें देश की सबसे बड़ी ऋण प्रदाता मानी जाती हैं, और यदि वे ही थम जाती हैं तो हम अर्थव्यवस्था थम जाती है। यदि अर्थव्यवस्था को विमुद्रीकरण के झटके से उबरना है तो व्यवस्था में शीघ्र चलनिधि आना अपरिहार्य है। आप बोधि शिक्षा पर अनेकों विडियो विश्लेषण देख सकते हैं - विमुद्रीकरण पर यहाँ, भारतीय अर्थव्यवस्था पर यहाँ, और जीएसटी पर यहाँ
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