India’s scientific depth – a journey deep

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India's deepest hole is being dug by scientists in an earthquake-prone zone to possibly "see" action live!


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India’s scientific depth – a journey deep


Indore-based Shivganga Drilling Company finds itself involved in a different kind of project – its experienced oil-diggers (from Bombay High and West Asia) are living in container-tents atop a hill, and digging a hole several kilometres deep (but only 26 inches wide) for scientists in a village (Gothane) near Pune, so they can explore the “innards of India” and see earthquakes in action! The world’s deepest hole was dug by Russia in Kola Peninsula – upto 12 kms deep! 
History of Deccan plateau : The Deccan region witnessed massive volcanic eruption as Indian plate moved over Reunion islands 6.6 crore years ago while travelling from Madagascar region (Africa) on its way to colliding into Eurasian tectonic plate. Huge volcanic eruptions threw smoke, and coupled with Mexico’s Chicxulub asteroid strike, killed 75% of Earth’s life (including the dinosaurs!). The erupting magma has given the Deccan region its black soil (basaltic soil) arranged in a stepped structure, and amazing fertility. In this region, scientists want to dig India’s deepest hole (which will be quite permanent) upto 3 kms first, then upto 5 kms. Similar trials done by China and Germany earlier. The region has the huge Koyna dam, built on the Koyna river and launched in 1962, which perhaps led to the huge earthquake in 1967 that destroyed Koyna township killing 200.  Research is still on into the sub-field of geology called “Reservoir-triggered seismicity”. Though worldwide, only 10% of approx.1000 large reservoirs have been involved in such incidents. And only 4 have ‘produced’ earthquakes of magnitude 6 or more on Richter scale. Today, the Koyna Hydroelectric project is India’s biggest – 1920 MW – and called the “lifeline of Maharashtra”. But small earthquakes keep appearing in this region. Theory says that – large water reservoirs (more than 1 trillion litres) can crack and fissure the inside of the Earth’s rock in the region when water levels rise and fall seasonally. The really powerful earthquakes arrive on surface from deep down (20 to 30 kms deep) when continental plates rub against each other. But ‘surface quakes’ arise just 5 to 7 kms and “can be viewed with the right equipments”. Indian scientists want to use that massive hole to “view” that earthquake in action! In fact, many of their predictions about quakes have come true in this region already. Earthquake nucleation – a process of smaller quakes (foreshocks) building up to a bigger quake later. This needs surface study, as well as deep-down-below study, and hence the 5 km hole! Since 2012, nine test holes upto 1.5 kms deep have been dug to identify the ideal site – the “fault zone” which will likely have a major quake and also easy to access. These are costly projects and hence also get their share of criticism. 

Though the ONGC has drilled upto 6 kms in search for oil in Himachal Pradesh, it was through soft rocks. The Koyna digging project, all included, will cost Rs.470 crores including Rs.150 crores for actual drilling. Criticisms – (1) Koyna region’s peculiar geological conditions (thick basalt + huge water reservoir) are not normal elsewhere, so learnings will be not applicable everywhere, (2) Projects like US’s SAFOD (San Andreas Fault Observatory at Depth) had to be wound up early due to instrument failures, (3) Data from Koyna is inaccessible to other scientists, unline SAFOD or even Chinese/German data that is downloadable. So public funding of an opaque project? Key scientist (Harsh Gupta) says that the deep science learned from this project (akin to space missions) will spawn a whole new generation of scientists who will better predict Indian landmass related movements (hence also future dam building, climate prediction etc.). American-Indian scientist Sankar Chatterjee (founder of Shiva Crater hypothesis – that a 500 km wide crater impacted in the region of Arabian sea and wiped out the dinosaurs) is also keen to study the borehole samples. Get a nice pdf on Shiva Crater on Bodhi Resources page (Science and Technology).

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भारत की वैज्ञानिक गहराई - एक गहरी यात्रा


इंदौर स्थित शिवगंगा ड्रिलिंग कंपनी स्वयं को एक भिन्न प्रकार की परियोजना में संलग्न पाती है - उसके अनुभवी तेल खोदने वाले (बॉम्बे हाई और पश्चिम एशिया से) एक पहाड़ी के ऊपर कंटेनर टेंटों में रह रहे हैं और वैज्ञानिकों के लिए पुणे के निकट एक गांव (गोठने) में एक अनेक किलोमीटर गहरा (परंतु केवल 26 इंच चौड़ा) छेद बना रहे हैं ताकि वे ‘‘भारत की आंतरिकता’’ की खोज कर सकें और भूकंप हो होता हुआ देख सकें! विश्व का सबसे गहरा छेद रूस द्वारा कोला प्रायद्वीप में खोदा गया था - जो 12 किलोमीटर तक गहरा था! 

डेक्कन पठार का इतिहास - 6. 6 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट मेडागास्कर क्षेत्र (अफ्रीका) से यूरेशियाई प्लेट से टकराने के अपने मार्ग पर जब रीयूनियन द्वीप के ऊपर से गुजरी तब डेक्कन क्षेत्र ने विशालकाय ज्वालामुखी विस्फोटों का अनुभव किया। विशाल ज्वालामुखी विस्फोटों ने धुआं फेंका और मेक्सिको के चिकजुलुब क्षुद्रग्रह प्रहार के साथ मिलकर पृथ्वी के 75 प्रतिशत जीवन को नष्ट कर दिया (जिसमें डायनासोर भी शामिल थे!) विस्फोटित मैग्मा ने डेक्कन क्षेत्र को उसकी काली मृदा (बाजालतिक मृदा) प्रदान की है जो सीढ़ीनुमा संरचना और अद्भुत उर्वरकता के क्रम में है। इस क्षेत्र में वैज्ञानिक भारत का सबसे गहरा छिद्र बनाना चाहते हैं (जो काफी स्थाई होगा), पहले 3 कि मी तक, फिर 5 कि मी तक। चीन और जर्मनी द्वारा पूर्व में इस प्रकार के प्रयोग किये जा चुके हैं। इस क्षेत्र में कोयना नदी पर बना हुआ विशाल कोयना बाँध है जिसे वर्ष 1962 में शुरू किया गया था। संभवतः इसी कारण यहाँ वर्ष 1967 में भयंकर भूकंप आया था जिसने संपूर्ण कोयना बस्ती को नष्ट कर दिया था और इसमें 200 जानें गईं थीं। भूगर्भशास्त्र के ‘‘जलाशय जनित भूकंपीयता‘‘ नामक उप-संकाय में अभी भी अनुसन्धान जारी है। हालांकि विश्व स्तर पर लगभग 1000 विशाल जलाशयों में से केवल 10 प्रतिशत में ही इस प्रकार की घटनाएं हुई हैं। और इनमें से भी केवल 4 ने रिक्टर पैमाने पर 6 से अधिक तीव्रता वाले भूकंप पैदा किये हैं। आज भारत की कोयना जलविद्युत परियोजना भारत की सबसे बड़ी - 1920 मेगावाट - परियोजना है और यह महाराष्ट्र की जीवनरेखा कहलाती है। परंतु इस क्षेत्र में छोटे और हलके भूकंप लगातार आते रहते हैं। सिद्धांत कहता है कि - विशाल जलाशय (एक खरब लीटर से अधिक) पृथ्वी की अंदरूनी चट्टान में तब दरारें और छिद्र कर सकता है जब जलस्तर में मौसमी वृद्धि या कमी होती है। वास्तव में शक्तिशाली भूकंप नीचे गहराई से (20 से 30 कि मी गहराई) तब सतह पर आते हैं जब महाद्वीपीय प्लेटें एक दूसरे से रगड़ती हैं। परंतु ‘‘सतही भूकंप‘‘ 5 से 7 कि मी से ही उठते हैं ‘‘और इन्हें सही उपकरणों की सहायता से देखा जा सकता है‘‘ भारतीय वैज्ञानिक उस विशालकाय छिद्र का उपयोग भूकंप को होते हुए देखने के लिए करना चाहते हैं ! वास्तव में, इस क्षेत्र में होने वाले भूकंपों के बारे में उनके अनेक अनुमान पूर्व में सही साबित हो चुके हैं। भूकंप केंद्रक (न्यूक्लिएशन) - छोटे भूकंपों के बाद में बड़े भूकंपों में परिवर्तित होने की प्रक्रिया। इसके लिए सतह का अध्ययन आवश्यक होता है और साथ ही गहरे निचले भाग का अध्ययन भी आवश्यक होता है अतः 5 कि.मी. का छिद्र बनाया जा रहा है। वर्ष 2012 से आदर्श स्थान - भ्रंश क्षेत्र - की पहचान के लिए 1. 5 कि मी तक गहरे नौं छिद्र खोदे जा चुके हैं जहाँ संभवतः एक बड़ा भूकंप हो सकता है और यह प्रवेश की दृष्टि से आसान भी हो। ये परियोजनाएं काफी महँगी होती हैं अतः इनके हिस्से में आलोचना भी आती है। 

हालांकि ओएनजीसी ने हिमाचल प्रदेश में तेल की खोज के लिए 6 कि मी तक का छिद्र खोदा है, परंतु यह नरम चट्टान के बीच से खोदा गया है। कोयना खुदाई परियोजना की कुल लागत 470 करोड़ रुपये होगी जिसमें 150 करोड़ रुपये वास्तविक खुदाई के भी शामिल हैं। आलोचना - (1) कोयना क्षेत्र की विशिष्ट भूगर्भीय स्थिति (मोटा बेसाल्ट और विशाल जलाशय) अन्यत्र सामान्य नहीं है अतः शिक्षा सभी स्थानों पर उपयुक्त नहीं होगी, (2) अमेरिका की एसएएफओडी (गहराई पर सान ऐंड्रीस भ्रंश वेधशाला) को उपकरणों की विफलता के कारण शीघ्र ही बंद कर देना पड़ा था, (3) कोयना के आंकड़े और सूचनाएं अन्य वैज्ञानिकों के लिए दुर्गम हैं जबकि इसके ठीक विपरित एसएएफओडी या यहाँ तक कि चीन/जर्मनी के आंकड़े आसानी से डाउनलोड किये जा सकते हैं। अतः क्या यह एक अपारदर्शी परियोजना के लिए सार्वजनिक निधीयन है? मुख्य वैज्ञानिक (हर्ष गुप्ता) कहते हैं कि इस परियोजना से सीखा गया गहरा विज्ञान (अंतरिक्ष अभियान की ही तरह) वैज्ञानिकों की एक ऐसी नई पीढ़ी का निर्माण करेगा जो भारतीय भूखंड की गतिविधि का अधिक बेहतर अनुमान लगाने में सक्षम होगी (और साथ ही भविष्य में बाँध निर्माण जलवायु संबंधी अनुमान इत्यादि)। अमेरिकी-भारतीय वैज्ञानिक शंकर चैटर्जी (शिव क्रेटर परिकल्पना के संस्थापक, जिसके अनुसार एक 500 कि मी चौड़े ज्वालामुखी मुख ने अरब सागर के क्षेत्र को प्रभावित किया और डायनासोर का विनाश कर दिया) भी खुदाई किये गए छिद्र के नमूनों का अध्ययन करने के लिये उत्सुक हैं। शिव क्रेटर (खड्ड) पर एक पीडीएफ पाएं बोधि संसाधन पृष्ठ पर (Science and Technology) 

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