Unless rapid evolution of municipal bonds markets happens, ULBs in India will flounder financially.
Urban rejuvenation in India
India has remained a largely rural nation, but slowly urbanization has gained pace. Though low from a global standpoint, we are steadily turning into an urban nation. You can view very useful urbanization data here, here, here, here, here, and here . The third tier of government in India – Local Bodies, both Urban and Rural – are the crucial points in last mile governance delivery to our citizens. We cannot underestimate their importance. And hence, we have to create revenue channels that are strong and sustainable. Till now, for big cities like Mumbai, Octroi collection was a huge source (upto 33%). But the GST will subsume it, and hence, municipal bonds seems to be the way forward for Mumbai (and others). Read what RBI feels about Indian Bonds Market in 2020, here
In advanced markets like the US, local municipalities are champions in raising resources through issuing Bonds (billions of dollars). In India, it is extremely under-developed, but that is the road ahead for sure. For our 100 smart cities, we need to match the massive funding requirements, and Municipal Bonds are the road ahead. This will help them finance transport, solid waste management, etc. To service the Bonds (interest plus redemption), Municipalities will need to earn revenues from user charges (fees) and property taxes. Indian economic output (like other economies) has a major source in cities and towns (not villages). A small share from the GST can be kept for Municipalities. Also, tax breaks can be given by Central Government, to attract investors. Present ceiling of 8% interest must be changed. Finally, a strong secondary market for municipal bonds (that’s under-developed even for corporate bonds as of now), and for escrow provisions for bondholders (to protect their principal amounts) is needed. You can download a report on Green Bonds from Bodhi Resources page.
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भारत में शहरी पुनरूजीवन
भारत व्यापक रूप से एक ग्रामीण देश रहा है, परंतु धीरे-धीरे शहरीकरण गति पकड़ रहा है। हालांकि वैश्विक दृष्टिकोण से यह कम है फिर भी हम धीरे-धीरे एक शहरी देश बनते जा रहे हैं।
आप यहाँ, यहाँ, यहाँ, यहां, यहां और यहाँ उपयोगी शहरीकरण के आंकडे देख सकते हैं।
भारत में सरकार का तृतीय स्तर - स्थानीय निकाय, ग्रामीण और शहरी, दोनों, हमारे नागरिकों के लिए अंतिम स्तरीय शासन वितरण के महत्वपूर्ण बिंदु हैं। हम उनके महत्त्व को कम नहीं आंक सकते। अतः हमें ऐसे राजस्व चैनल्स का निर्माण करना होगा जो मजबूत और धारणीय हों।
अब तक मुंबई जैसे बड़े शहरों के लिए चुंगी (नगर-शुल्क) संग्रहण राजस्व का एक विशाल स्रोत (33 प्रतिशत तक) था। परंतु जीएसटी इसे सम्मिलित कर लेगा, अतः मुंबई (और अन्य के लिए) नगरपालिका बंधक-पत्र आगे का एक मार्ग हो सकते हैं। वर्ष 2020 के भारत के बंधक-पत्र बाजार के बारे में आरबीआई के क्या विचार हैं इसे यहाँ पढ़ें।
अमेरिका जैसे उन्नत बाजारों में नगरपालिकाएं बंधक-पत्र जरी करने के माध्यम से संसाधन जुटाने में (अरबों डॉलर) श्रेष्ठ और अग्रणी होती हैं। भारत में यह अत्यधिक अल्प-विकसित है, परंतु आगे के लिए निश्चित रूप से यही एक रास्ता है।
हमारे 100 स्मार्ट शहरों के लिए हमें भारी निधि आवश्यकताओं की दृष्टि से खरा उतरना होगा और नगरपालिका बंधक-पत्र इस दृष्टि से श्रेष्ठ मार्ग है। यह उन्हें परिवहन, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन इत्यादि के वित्तीयन के लिए सहायक होंगे।
इन बंधक-पत्रों को सर्विस करने (ब्याज और मोचन) के लिए नगरपालिकाओं को उपयोगकर्ता शुल्कों और संपत्ति करों के माध्यम से राजस्व पैदा करना होगा।
भारत के आर्थिक उत्पादन (अन्य अर्थव्यवस्थाओं की ही तरह) का एक प्रमुख स्रोत शहरों और नगरों में है (गांवों में नहीं)। जीएसटी का एक छोटा हिस्सा नगरपालिकाओं के लिए रखा जा सकता है। साथ ही निवेशकों को आकर्षित करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा कर अवकाश भी दिए जा सकते हैं। ब्याज की वर्तमान 8 प्रतिशत की सीमा को भी बदला जाना चाहिए।
अंत में, नगरपालिका बंधक-पत्रों के लिए एक मजबूत द्वितीयक बाजार (जो वर्तमान में निगमित बंधक-पत्रों की दृष्टि से भी अल्प-विकसित है) और बंधक-पत्र धारकों के लिए निलंब (एस्क्रौ) प्रावधान (उनकी मूल राशियों के संरक्षण के लिए) आवश्यक है। आप हरित बंधक-पत्रों पर रिपोर्ट बोधि संसाधन पृष्ठ से डाउनलोड कर सकते हैं।
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