Understanding the Tax-to-GDP ratio can be as trying as paying taxes. We simplify it a bit!
Oh, this Tax-to-GDP-ratio!
As per Economic Survey of India 2016-17, our tax to GDP ratio is at 16.6 per cent and is well below the emerging market economy (EME) figure of 21% and OECD averages of 34 %. So, we collect less taxes compared to our size. Remember that tax to GDP ratio includes all income taxes (income/wealth/property/capital gains taxes), and all indirect taxes (excise duty, customs duty, service tax, etc. – i.e. the GST). Taxes can be (1) on Income and Expenditure (Direct taxes) like Corporation Tax (income tax on companies) and Income Taxes on individuals, or (2) on Commodities and Services (Indirect taxes) like Customs, Excise Duties and Service Tax. Indirect taxes are taxes on goods, services, excise goods and so on, hence everyone who purchases or consumes a good or service pays them (including the poor). India’s direct-indirect tax ratio is roughly in a 35:65 ratio. In rich world (OECD countries), this ratio is roughly 67:33 (direct to indirect). Hence, many rich are evading taxes in India, and many poor are forced to pay taxes! See the Voter – Taxpayer ratio and numbers in this image for a clearer idea
Why should we worry about “Tax to GDP ratio”? Because this low ratio means the government’s revenues are not enough to run developmental programmes, thereby forcing it to borrow, and increasing its fiscal deficit. Again, why should we worry? Because govt. borrows huge amounts from PSU banks at low rates, which depresses our savings deposit rates also in tandem! So cheating on taxes hits everyone, including the cheaters. Watch India's historical tax to GDP ratio, here At least 24% of PSU bank deposits are compulsorily invested in government securities (= govt. borrowings). So government is scared everytime savings rate drops (where will it get such large funds so cheaply otherwise). Approximately speaking, roughly 5.5 per cent of earning individuals pay taxes, which is just above 1% of Indian population. Unless this grows, health and education cannot get proper spends. Around 90% Indian households earn less than Rs.2.5 lac a year, which was the tax exemption limit. It keeps changing. Farmers, even if crorepatis, are not needed to pay taxes. Non-salaried classes pay lower rates.
The Goods and Services Tax (GST) regime will have a positive but naturally limited impact in deepening the broader objective of citizen participation, state building and democratic accountability. Read a comprehensive Bodhi on GST here. There was an increase in the tax to GDP ratio of about 0.5 % in 2015, and 2016, due to higher indirect taxes collected while crude oil prices kept lowering. There will be large one-time gains from demonetisation and the black money disclosure schemes. Watch many video analyses of Taxation related issues on Bodhi Shiksha
The withdrawal of high-value currency notes has taken the cash to GDP number for India to 7.3% of the GDP, lower than even that 7.8% in the USA. It was around 13% in October 2016, when demonetization happened, and may finally settle around 10%. Car sales on an average in last five years (2012-2017) has been about 25 lakh pieces per year. In the last three years the car sales were 25.03 lakh, 26 lakh and 27 lakh. Apparently, most people are evading taxes. Big Data analysis post-demonetisation can totally change this situation in the future, and escaping may be impossible. (So, car sales will collapse? Ha ha!) If we want to check numbers - Income Tax for 2016-17 (as per Budget 2017-18) was Rs 3.45 lac crores (Rs.3,45,000,00,00,000), or 20.2% of the total tax revenues (Direct + Indirect, Centre + States). Companies paid Rs.4.93 lac crores. Customs duties were Rs.2.17 lac crores, Excise was Rs.3.86 lac crores, and Service Tax was Rs.2.47 lac crores. See the exact breakup in this image to understand better.
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उफ़, ये कर-से-जीडीपी अनुपात!
2016-17 के आर्थिक समीक्षा के अनुसार हमारा कर से जीडीपी का अनुपात है 16.6 प्रतिशत है और ये उभरती अर्थव्यवस्थाओं के 21 प्रतिशत और ओईसीडी के 34 प्रतिशत के औसत से बहुत कम है। अत‘, हम अपने आकार के मुताबिक बहुत कम कर इकठ्ठा कर पा रहे हैं। याद रखें - कर से जीडीपी अनुपात में सभी आयकर (आय/संपत्ति/पूंजीगत लाभ कर), एवं सभी अप्रत्यक्ष कर (उत्पाद शुल्क, आयात शुल्क, सेवा कर आदि - अर्थात जीएसटी) शामिल हैं।कर दो प्रकार के हो सकते हैं - (1) आय और व्यय पर (प्रत्यक्ष कर) जैसे कि निगमित कर (कंपनियों पर आयकर) एवं व्यक्तियों पर आयकर, या (2) वस्तुओं और सेवाओं पर (अप्रत्यक्ष कर) जैसे कि आयात शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर। चूंकि अप्रत्यक्ष कर सेवाओं और उत्पाद पर लगते हैं, अतः हर व्यक्ति जो कोई वस्तु खरीदे या सेवा का इस्तेमाल करें उन्हें चुकाता है (इनमें गरीब भी शामिल है)। भारत का प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष कर का अनुपात लगभग 35 : 65 है। अमीर देशों में यह अनुपात लगभग 67 : 33 है (प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष) अतः, भारत में अनेक अमीर कर चुकाने से बच रहे हैं, और अनेक कर चुकाने को मजबूर हैं। मतदाता से करदाता का अनुपात समझने के लिए इस चित्र को देखें
आखिर हम इस ‘‘कर से जीडीपी अनुपात’’ की चिंता क्यों करें? इसलिये कि इस अनुपात का कम होना यह दर्शाता है कि सरकार का राजस्व विकास कार्यक्रम चलाने हेतु पर्याप्त नहीं है, और मजबूरी में उसे उधारी लेनी पड़ती है, जिससे राजकोशीय घाटा बढ़ जाता है। पुन‘ हम चिंता क्यों करें? इसलिये कि सरकार सरकारी बैंकों से बड़ी मात्रा में कर्ज लेती है, जिससे जमाराशि की ब्याज दरें उसी अनुपात में कम होने लगती हैं! अतः कर चोरी से सभी को नुकसान होता है, चोरी करने वालो को भी। भारत का ऐतिहासिक कर-जीडीपी अनुपात रुझान यहाँ देखें कम से कम 24 प्रतिशत सरकारी बैंक जमा राशियां सरकारी प्रतिभूतियों में निवेशित होती हैं (= सरकारी उधारियां)। अत‘ सरकार को बचत दर गिरने से बड़ा भय लगता है (इतने सस्ते में इतनी राशि ओर कहां से मिलेगी)। मोटे तौर पर, कमाई करने वालों व्यक्तियों में से लगभग 5.5 प्रतिशत कर देते हैं, जो भारतीय जनसंख्या के 1 प्रतिशत से थोडा अधिक है। जबतक यह नहीं बढ़ेगा, स्वास्थ्य शिक्षा को सही व्यय समर्थन नहीं मिल सकेगा। लगभग 90 प्रतिशत भारतीय घर प्रतिवर्ष रू. 2.5 लाख से कम कमाते हैं, जो कि कर छूट सीमा भी है। और यह बदलती रहती है। किसान चाहे करोड़पति हों उन्हें कर नहीं देना होता। गैर-वेतन भोगी वर्ग भी कम दरों पर व्यय देता है।
वस्तु और सेवा कर प्रशासन नागरिक भागीदारी के व्यापक लक्ष्य, राज्य निर्माण और लोकतांत्रिक जवाबदेही जैसे बड़े लक्ष्यों को हासिल करने में एक सकारात्मक किंतु सीमित भूमिका निभा पायेगा। जीएसटी पर एक विस्तृत बोधि यहां पढ़ें। 2015 और 2016 में कच्चे तेल की गिरती कीमतों की वजह से अधिक अप्रत्यक्ष कर संग्रहरण होने से कर से जीडीपी अनुपात में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि हो गई थी। इसके अलावा विमुद्रीकरण और काला धन घोषणा योजनाओं से भी सरकार को एक बार का लाभ अवश्य मिलेगा। बोधि शिक्षा चैनल पर कराधान संबंधी विडियो विश्लेषण देखें।
उच्च मूल्य के करेंसी नोट समाप्त किये जाने से भारत में नगदी से जीडीपी अनुपात जीडीपी के 7.3 प्रतिशत तक गिर गया, जो अमेरिका के 7.8 प्रतिशत से भी कम है। जब विमुद्रीकरण हुआ, तब अक्टूबर 2016 में यह लगभग 13 प्रतिशत था, और अंततः यह लगभग 10 प्रतिशत पर आकर रूकेगा। पिछले 5 वर्षों में (2012 से 2017) औसतन प्रतिवर्ष 25 लाख गाड़िया बिकी है, पिछले 3 वर्षों में गाडियों की ब्रिक्री रही है 25.03 लाख, 26 लाख और 27 लाख। साफ है, बहुत से लोग कर नहीं चुका रहे हैं, भविष्य में विमुद्रीकरण के बाद बिग डेटा विश्लेषण से यह स्थिति बदल जायेगी और बचना आसंभव हो जायेगा (तो क्या कारों की बिक्री गिर जायेगी? हाहा!)। यदि आप आंकड़े देखना चाहें - 2016-17 में (बजट 2017’18 के अनुसार) आयकर था, (रूपये 3,45,000,00,00,000 या कुल कर राजस्व का 20.02 प्रतिशत) (प्रत्यक्ष + अप्रत्यक्ष, केंद्र + राज्य)। कंपनीयों ने रूपये 4.93 लाख चुकाये आयात शुल्क रहे रू. 2.17 लाख करोड़, उत्पाद शुल्क रहा रूपये 3.86 लाख करोड़, और सेवा कर था रूपये 2.47 लाख करोड़। वास्तविक आंकड़ें समझने के लिये कृपया यह चित्र देखें।
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