India is deeply involved in trying to find a way out of the trilateral mess in South Asia.
India – Pakistan – China imbroglio
The relationship between India, Pakistan and China has remained very complex ever since the three independent nations have been formed. There has always been a lack of trust between both India and Pakistan and India and China. Read our Bodhi on “Indus Water treaty” here. It has become more of a rather unbreakable vicious circle since the 1960s when China and Pakistan came together as best friends against India. The mutual relations have come to a dead end with no solution in sight, especially in the last two years. This has resulted in a huge challenge for our foreign policy and an ever-increasing defence spending. Our entire foreign policy for the region has been concentrated on breaking the China-Pakistan nexus. (Unfortunately, the more force we apply, the stronger it seems to get)
Managing to change the China-Pakistan relationship all alone is an onerous task for India to do. Hence, it would require the assistance of other likeminded countries, both within the region and outside it. However, with Russia ‘joining’ the China-Pakistan camp, the situation for India is not easy. Read our Bodhi on “Tectonic shifts in world politics” here. Bilateral relations need to be resolved through dialogue and negotiations only. This has been India’s policy in recent times, and we have been successful to a large extent. (One needs to understand that political relationship is different from economic considerations) Our relations with Pakistan have always been overshadowed by the Pak forces against change. The change of attitude of the present government towards Pakistan also seemed inevitable due to many pressing reasons. We have also displayed the same shaky pattern towards China. Initially, the present government attempted to resolve the border issues with China, but of late, we have again adopted a stringent stance after the issues of India’s entry into NSG and declaring Masood Azhar as an international terrorist, i.e. placing him in the UN 1267 list. Read our Bodhi on “Terrorism” here.
The China Pakistan Economic Corridor (CPEC) has emerged on the scene, which India refuses to condone as CPEC passes through Gilgit-Baltistan, a territory that belongs to India. The monolithic Chinese state is neither prepared to forgo CPEC, nor to support India’s stand on J&K. The basis of any international relationship is the concept of give and take. You have to give something for getting something in return. Strengthen economic relations and let the political compulsions take the back seat for a while. Indian market is big enough to allow for that. Experts feel it’s important to give incentives in bilateral relations. What India is offering today does not look like that to these two! If we rely too much on US friendship, it will also not offer anything for free. We need to make our own way out of this complex situation. You can view many analyses on world politics on Bodhi Shiksha channel
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भारत-चीन-पाकिस्तान गुत्थी
भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच के संबंध तभी से काफी जटिल बने हुए हैं जब से ये तीनों देश स्वतंत्र राष्ट्र बने हैं। चीन और भारत, और पाकिस्तान और भारत के बीच हमेशा से विश्वसनीयता का अभाव रहा है। “सिंधु जल समझौते’’ पर हमारी बोधि पढ़ें, यहां। 1960 के दशक से, जब से चीन और पाकिस्तान भारत के विरुद्ध घनिष्ठ मित्र बने हैं, तब से यह एक अधिक अभेद्य दुश्चक्र बन गया है। आपसी संबंधों में, विशेष रूप से पिछले दो वर्षों के दौरान एक स्थाई गतिरोध उत्पन्न हो गया है जिसका कोई स्पष्ट समाधान नजर नहीं आता है। इसका परिणाम हमारी विदेश नीति के लिए एक विशाल चुनौती और हमारे निरंतर बढ़ते रक्षा व्यय में हुआ है। इस क्षेत्र के लिए हमारी विदेश नीति चीन-पाकिस्तान गठजोड़ को तोड़ने पर केंद्रित होकर रह गई है। (दुर्भाग्य से हम जितना अधिक बल लगाते हैं यह उतनी ही अधिक मजबूत होती प्रतीत होती है)
अकेले दम पर चीन-पाकिस्तान संबंधों को परिवर्तित करना भारत की दृष्टि से एक लगभग दूभर कार्य है। अतः इसके लिए क्षेत्र के अंदर और क्षेत्र के बाहर के अन्य समान विचारधारा वाले देशों का सहयोग और सहायता आवश्यक है। हालांकि, चीन-पाकिस्तान गुट में रूस के प्रवेश से भारत के लिए स्थिति और भी अधिक जटिल बन गई है। “विश्व राजनीति में विवर्तनिक परिवर्तन” पर हमारी बोधि पढ़ें, यहां। द्विपक्षीय संबंधों के बीच की जटिलता को बातचीत और संवाद के माध्यम से ही हल किया जाना चाहिए। हाल के दिनों में भारत की यही नीति रही है, और हम इसमें काफी हद तक सफल भी हुए हैं। (हमें यह समझना होगा कि राजनीतिक संबंध आर्थिक हितों से भिन्न होते हैं) पाकिस्तान के साथ हमारे संबंधों में हमेशा से ही पाकिस्तान के अंदर मौजूद परिवर्तन विरोधी ताकतों का वर्चस्व रहा है। पाकिस्तान के प्रति वर्तमान सरकार के दृष्टिकोण में परिवर्तन अनेक दबावों के चलते भी हुआ प्रतीत होता है। चीन के प्रति भी हमने यही अस्थिर दृष्टिकोण प्रदर्शित किया है। प्रारंभ में वर्तमान सरकार ने चीन के साथ सीमा विवाद को सुलझाने का प्रयास किया, परंतु हाल के दिनों में एनएसजी में भारत के प्रवेश के मुद्दे और मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के मुद्दे, अर्थात उसे संयुक्त राष्ट्र की 1267 सूची में शामिल करने, के बाद हमनें एकबार फिर से काफी कड़ा रुख अपना लिया है। ‘‘आतंकवाद’’ पर हमारी बोधि पढ़ें, यहां।
चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपैक) भी हाल में परिदृश्य पर उभरकर आया है, जिसे क्षमा करने को भारत तैयार नहीं है क्योंकि सीपैक गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है, जो भारतीय प्रदेश है। अखंड चीनी राज्य न तो सीपैक को छोड़ने के लिए तैयार है और न ही जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर वह भारत का समर्थन करने को तैयार है। किन्हीं भी अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों का आधार कुछ देकर कुछ लेने की अवधारणा पर टिका होता है। बदले में कुछ प्राप्त करने के लिए पहले आपको कुछ देना या छोड़ना पड़ता है। आर्थिक संबंधों को मजबूत करें और राजनीतिक विवादों को कुछ समय के लिए पीछे रहने दें। इसकी अनुमति देने की दृष्टि से भारत का बाजार पर्याप्त रूप से बड़ा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि द्विपक्षीय संबंधों में कुछ रियायतें देनी पड़ती हैं। आज भारत जो कुछ दे रहा है वह इन दोनों देशों को रियायत के रूप में नहीं लगता है ! यदि हम अमेरिकी मित्रता पर अत्यधिक निर्भर रहेंगे तो वह भी हमें सब कुछ मुफ्त में नहीं देगा। हमें इस जटिल स्थिति से अपना मार्ग स्वयं खोजना पड़ेगा। विश्व राजनीति पर अनेक विश्लेषण आप बोधि शिक्षा चैनल पर देख सकते हैं।
Useful resources for youअकेले दम पर चीन-पाकिस्तान संबंधों को परिवर्तित करना भारत की दृष्टि से एक लगभग दूभर कार्य है। अतः इसके लिए क्षेत्र के अंदर और क्षेत्र के बाहर के अन्य समान विचारधारा वाले देशों का सहयोग और सहायता आवश्यक है। हालांकि, चीन-पाकिस्तान गुट में रूस के प्रवेश से भारत के लिए स्थिति और भी अधिक जटिल बन गई है। “विश्व राजनीति में विवर्तनिक परिवर्तन” पर हमारी बोधि पढ़ें, यहां। द्विपक्षीय संबंधों के बीच की जटिलता को बातचीत और संवाद के माध्यम से ही हल किया जाना चाहिए। हाल के दिनों में भारत की यही नीति रही है, और हम इसमें काफी हद तक सफल भी हुए हैं। (हमें यह समझना होगा कि राजनीतिक संबंध आर्थिक हितों से भिन्न होते हैं) पाकिस्तान के साथ हमारे संबंधों में हमेशा से ही पाकिस्तान के अंदर मौजूद परिवर्तन विरोधी ताकतों का वर्चस्व रहा है। पाकिस्तान के प्रति वर्तमान सरकार के दृष्टिकोण में परिवर्तन अनेक दबावों के चलते भी हुआ प्रतीत होता है। चीन के प्रति भी हमने यही अस्थिर दृष्टिकोण प्रदर्शित किया है। प्रारंभ में वर्तमान सरकार ने चीन के साथ सीमा विवाद को सुलझाने का प्रयास किया, परंतु हाल के दिनों में एनएसजी में भारत के प्रवेश के मुद्दे और मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के मुद्दे, अर्थात उसे संयुक्त राष्ट्र की 1267 सूची में शामिल करने, के बाद हमनें एकबार फिर से काफी कड़ा रुख अपना लिया है। ‘‘आतंकवाद’’ पर हमारी बोधि पढ़ें, यहां।
चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपैक) भी हाल में परिदृश्य पर उभरकर आया है, जिसे क्षमा करने को भारत तैयार नहीं है क्योंकि सीपैक गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है, जो भारतीय प्रदेश है। अखंड चीनी राज्य न तो सीपैक को छोड़ने के लिए तैयार है और न ही जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर वह भारत का समर्थन करने को तैयार है। किन्हीं भी अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों का आधार कुछ देकर कुछ लेने की अवधारणा पर टिका होता है। बदले में कुछ प्राप्त करने के लिए पहले आपको कुछ देना या छोड़ना पड़ता है। आर्थिक संबंधों को मजबूत करें और राजनीतिक विवादों को कुछ समय के लिए पीछे रहने दें। इसकी अनुमति देने की दृष्टि से भारत का बाजार पर्याप्त रूप से बड़ा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि द्विपक्षीय संबंधों में कुछ रियायतें देनी पड़ती हैं। आज भारत जो कुछ दे रहा है वह इन दोनों देशों को रियायत के रूप में नहीं लगता है ! यदि हम अमेरिकी मित्रता पर अत्यधिक निर्भर रहेंगे तो वह भी हमें सब कुछ मुफ्त में नहीं देगा। हमें इस जटिल स्थिति से अपना मार्ग स्वयं खोजना पड़ेगा। विश्व राजनीति पर अनेक विश्लेषण आप बोधि शिक्षा चैनल पर देख सकते हैं।
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