China is trying hard to convince the Indians to come on board the OBOR bandwagon. India seems in no mood to oblige.
The mega problem of China!
China’s communist regime has ambitious plans for the OBOR and CPEC. But with India unhappy about its territorial integrity’s violation in Gilgit-Baltistan region, things have become very tricky. Both China and Pakistan want India to join CPEC rather than oppose it.
The $ 54 billion worth CPEC (China-Pakistan Economic Corridor), passing through the Gilgit-Baltistan region of J & K, joining Baluchistan’s Gwadar port with China’s Xinjiang provience, is considered both by China and Pakistan to be a game-changer. As an answer to CPEC, India has pushed ahead refurbishment of Chabahar port and construction of railways in Iran. The general perception on India’s opposition in China and Pakistan is that India wants only to secure geopolitical mileage and is opposed to any initiative aimed at economic transformation of Pakistan. Nothing could be more wrong! $ 27 billion of the CPEC resources have been allocated to undertake 18 power projects. The goal is to create a stable electricity and logistics environment for an export manufacturing economy in Pakistan. China has now started peddling a new idea – CPEC’s main competitor is ‘Make in India’. Now China is desperate to get India’s support in CPEC, as otherwise the entire project can get tangled in complexities. Hence, the Chinese lawyers and authors are on an overdrive!
- China’s new logic # 1 : Due to a huge increase in blue-collar wages in China every seven years, factories are either likely to stay in China with heavy automation, or shift to other Asian countries. For Asian countries including India and Pakistan, capturing the relocated manufacturing is crucial.
- China’s new logic # 2 : China has a huge lead in textiles alone, shipping $ 274 billion in exports annually against India’s $ 40 billion, the second largest exporter. Even if India can take the major share of textile exports, it would create more direct jobs than the 3.7 million jobs currently in Indian IT and BPO industries.
- China’s new logic # 3 : India has almost 1 million new job seekers every month. With more and more industries rapidly shifting to automation, the BPO and IT workforce would shrink by 5 lakh jobs in the next five years.
- China’s new logic # 4 : 12 fast-tracked electricity projects under CPEC are slated for completion in 2018. This will allow shifting of Chinese state-owned companies to Pakistan with generous Chinese financing
- China’s new logic # 5 : The pace of progress in infrastructure sector in India is comparatively slower. This would slow down the speed of ‘Make in India’ further. On the other hand, Pakistan’s manufacturing growth will be strengthened by Chinese logistical support. It remains to be seen how India will react. Pakistan’s continued recalcitrance against India is serious trouble, and with China showing zero respect for India’s concerns, things may get stuck.
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चीन की अति-विशाल समस्या!
चीन के साम्यवादी शासन की “एक पट्टा, एक सड़क” और सीपैक के लिए महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं। परंतु गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में उसकी प्रादेशिक अखंडता के उल्लंघन के कारण भारत की नाराजी के साथ ही स्थितियां काफी जटिल हो गई हैं। चीन और पाकिस्तान, दोनों चाहते हैं कि भारत सीपैक का विरोध करने के बजाय उसमें शामिल हो।
54 अरब डॉलर की लागत वाले, जम्मू एवं कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र से होकर गुजरने वाले और बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिंगजियांग प्रांत से जोड़ने वाले सीपैक (चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) को चीन और पाकिस्तान एक परिवर्तनकारी कदम मान रहे हैं। सीपैक के जवाब के रूप में भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह के नवीनीकरण और ईरान में रेलवे के निर्माण को आगे बढाया है। भारत के विरोध के बारे में चीन और पाकिस्तान में यह अवधारणा है कि भारत इससे केवल भू-राजनीतिक लाभ उठाना चाहता है और वह पाकिस्तान के किसी भी महत्वपूर्ण आर्थिक परिवर्तन के विरुद्ध है। जबकि इससे अधिक गलत कुछ भी नहीं हो सकता! सीपैक संसाधनों में से 27 अरब डॉलर 18 बिजली परियोजनाओं के लिए आवंटित किये गए हैं। इसका उद्देश्य पाकिस्तान की निर्यात विनिर्माण अर्थव्यवस्था के लिए स्थिर बिजली और परिवहन वातावरण का निर्माण करना है। चीन ने अब एक नए विचार पर काम करना शुरू कर दिया है - सीपैक का मुख्य प्रतिद्वंद्वी “मेक इन इंडिया” है। अब चीन सीपैक पर भारत का समर्थन प्राप्त करने के लिए बेकरार है, क्योंकि इसके बिया यह परियोजना अनेक जटिलताओं में उलझ सकती है। अतः चीन के वकील और लेखक जी-जान से इस काम में जुटे हुए हैं।
54 अरब डॉलर की लागत वाले, जम्मू एवं कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र से होकर गुजरने वाले और बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिंगजियांग प्रांत से जोड़ने वाले सीपैक (चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) को चीन और पाकिस्तान एक परिवर्तनकारी कदम मान रहे हैं। सीपैक के जवाब के रूप में भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह के नवीनीकरण और ईरान में रेलवे के निर्माण को आगे बढाया है। भारत के विरोध के बारे में चीन और पाकिस्तान में यह अवधारणा है कि भारत इससे केवल भू-राजनीतिक लाभ उठाना चाहता है और वह पाकिस्तान के किसी भी महत्वपूर्ण आर्थिक परिवर्तन के विरुद्ध है। जबकि इससे अधिक गलत कुछ भी नहीं हो सकता! सीपैक संसाधनों में से 27 अरब डॉलर 18 बिजली परियोजनाओं के लिए आवंटित किये गए हैं। इसका उद्देश्य पाकिस्तान की निर्यात विनिर्माण अर्थव्यवस्था के लिए स्थिर बिजली और परिवहन वातावरण का निर्माण करना है। चीन ने अब एक नए विचार पर काम करना शुरू कर दिया है - सीपैक का मुख्य प्रतिद्वंद्वी “मेक इन इंडिया” है। अब चीन सीपैक पर भारत का समर्थन प्राप्त करने के लिए बेकरार है, क्योंकि इसके बिया यह परियोजना अनेक जटिलताओं में उलझ सकती है। अतः चीन के वकील और लेखक जी-जान से इस काम में जुटे हुए हैं।
- चीन का नया तर्क 1 : प्रत्येक सात वर्षों में चीन में होने वाली विशाल मजदूर वृद्धि के कारण या तो कारखाने अत्यधिक स्वचालन करके चीन में ही बने रह सकते हैं या वे अन्य एशियाई देशों में स्थानांतरित हो सकते हैं। भारत सहित सभी एशियाई देशों के लिए इन स्थानांतरित होने वाले कारखानों के बड़े हिस्से को अपने यहाँ लाना महत्वपूर्ण होगा।
- चीन का नया तर्क 2 : केवल वस्त्रोद्योग में ही चीन को विशाल बढ़त प्राप्त है, जहाँ से प्रति वर्ष 274 अरब डॉलर का निर्यात होता है, जबकि दूसरे सबसे बड़े निर्यातक भारत का निर्यात प्रति वर्ष केवल 40 अरब डॉलर का है। यदि भारत केवल वस्त्रोद्योग निर्यात का ही एक बड़ा हिस्सा प्राप्त करने में सफल हो जाता है तो वह सूचना प्रौद्योगिकी और बीपीओ उद्योग की वर्तमान 37 लाख नौकरियों से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियां निर्मित कर सकता है।
- चीन का नया तर्क 3 : भारत में प्रति माह लगभग 10 लाख नौकरी चाहने वाले निर्मित होते हैं। जबकि अधिकांश कंपनियां अधिकाधिक स्वचालन की ओर जा रही हैं, अतः अगले पांच वर्षों में सूचना प्रौद्योगिकी और बीपीओ उद्योग में 5 लाख नौकरियों का संकुचन हो जाएगा।
- चीन का नया तर्क 4 : सीपैक के तहत 12 अति-गतिशील बिजली परियोजनाएं वर्ष 2018 में पूर्ण होने वाली हैं। इसके कारण चीन की राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों को भारी चीनी वित्तीय सहायता के साथ पाकिस्तान में स्थानांतरित करना आसान हो जाएगा।
- चीन का नया तर्क 5 : भारत में अधोसंरचना क्षेत्र की परियोजनाओं की गति अपेक्षाकृत धीमी है। इसके कारण ‘मेक इन इंडिया’ की गति और भी अधिक धीमी हो जाएगी। दूसरी ओर, चीन की सहायता से पाकिस्तान की विनिर्माण वृद्धि अधिक सशक्त होगी। इसपर भारत किस प्रकार से प्रतिक्रिया देता है यह देखना दिलचस्प होगा। भारत के विरुद्ध पाकिस्तान का लगातार जारी अतिक्रमण गंभीर समस्या है, और जबकि चीन भारत की चिंताओं को कोई तवज्जो नहीं दे रहा है तो संभव है कि स्थिति में गतिरोध उत्पन्न हो सकता है।
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