India needs some serious electoral reforms if politics is to be cleaned up.
Needed - some strong, real electoral reforms
There was happiness and grudging acceptance for the electoral reforms proposed in Union Budget. But later on, detailed study of the fine print revealed they were no reforms, but a cleverly worded illusion. Why is it important to discuss this issue? Ever since demonetization happened, most Indians are eagerly expecting a total cleaning of the complete political system. And that means – elections. Hence, the hopes, hence the disappointment. First, we see what is the existing system, and the existing laws. (1) Today, political parties are entitled to receive funds through cheque and digital modes (note the word “entitled”, and not “required”), (2) Today, all political parties are needed to file I.T. returns in stipulated time limits to enjoy tax exemptions (few do it at all), (3) Today, parties can receive money through anonymous donors upto Rs.20,000 per year, as per Section 23 of the R.P. Act (most funds are in this category!), (4) Today, parties disclose only a tiny fraction of their actual funds to show what cannot stay hidden, and (5) Today, most donation are not “donations” but actually black money made by political bigwigs themselves! You can download excellent material on Elections and political reforms, here
What are the 4 elements of the proposed “reform”? (1) Parties will be eligible (entitled) to receive funds through cheques and digital means!, (2) Parties will have to file IT returns in time to claim tax exemptions (but no mention of fine or penalty for non-compliance is mentioned), (3) A party can receive cash of only Rs.2000 per person in a year as anonymous donation (but Parties can receive donations of upto Rs.20,000 anonymously, as earlier!), (4) There is nothing to force parties to disclose everything they receive, (5) There is the proposal of “Electoral Bonds”. Please compare the points in (4) and (3) above. The logic is self-explanatory! Only “Electoral Bonds” remains to be discussed. You can view many video analyses on Elections on our Bodhi Shiksha channel.
Electoral Bonds concept : A donor will purchase bonds from the designated bank, in white only (cheque/digital). Bonds will carry no names of beneficiaries. They can be redeemed within a time limit, in the regd. Bank account of a political party. So donor’s bank does not know who gets the money finally. Receiving bank (Party’s account bank) will not know the identity of donors. But neither banks is required to report anything to the Income Tax dept, or the Election Commission, as the relevant sections of Income Tax Act [ section 13 A(b) ] and Representation of People’s Act (RPA) [ Section 29(C) ]. It remains to be seen how effective this mechanism will turn out to be. Critics are not happy about it at all. Read all about Demonetisation here, about Changing trends in Indian politics here.
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चाहिए - कुछ बड़े, वास्तविक चुनावी सुधार
केंद्रीय बजट में प्रस्तावित चुनाव सुधारों पर प्रसन्नता और अनिच्छा से प्रदर्शित की गई स्वीकृति थी। परंतु बाद में इसके सूक्ष्म बिन्दुओं का अध्ययन करने पर पता चलता है कि ये चुनाव सुधार न होकर केवल चतुराई पूर्वक निर्माण किया गया आभास या भ्रम है।
इस मुद्दे की चर्चा करना महत्वपूर्ण क्यों है? जब से विमुद्रीकरण हुआ है, अधिकांश भारतवासियों को संपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था की पूरी सफाई की उम्मीद थी। और इसका अर्थ है - चुनाव। इसीलिए उम्मीद थी, और इसीलिए निराशा हुई है।
पहले हम देखते हैं कि विद्यमान व्यवस्थाएं और विद्यमान कानून क्या हैं। (1) आज राजनीतिक दल चेक और डिजिटल माध्यम से निधियां प्राप्त करने के हकदार हैं (शब्द “हकदार” पर ध्यान दें, इसे “अनिवार्य” नहीं कहा गया है) । (2) आज सभी राजनीतिक दलों को आयकर छूट प्राप्त करने के लिए नियत समय सीमा में आयकर विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य है (परंतु कुछ ही दल होंगे जो इन्हें प्रस्तुत करते हैं), (3) आज जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुच्छेद 23 के अनुसार राजनीतिक दलों को बेनामी दानदाताओं से प्रति वर्ष 20,000 रुपये तक की धनराशी प्राप्त करने की अनुमति है (जबकि राजनीतिक दलों की अधिकांश निधियां इसी वर्ग में हैं), (4) आज राजनीतिक दल उनके वास्तविक निधीयन का एक बहुत छोटा ऐसा हिस्सा ही प्रकट करती हैं जो छिपा हुआ नहीं रह सकता है, और (5) आज अधिकांश दान दान नहीं है बल्कि यह वह काला धन जो स्वयं राजनीतिक प्रतिष्ठा प्राप्त व्यक्तियों द्वारा स्वयं बनाया गया है।
चुनावों और राजनीतिक सुधारों पर आप उत्कृष्ट सामग्री यहाँ प्राप्त कर सकते हैं।
प्रस्तावित “सुधार” के चार तत्व कौन से हैं? (1) राजनीतिक दल चेक और डिजिटल माध्यम से निधियां प्राप्त करने के लिए पात्र (हकदार) होंगे, (2) आयकर में छूट प्राप्त करने के लिए दलों को आयकर विवरण निश्चित समय सीमा में प्रस्तुत करना होगा (परंतु इसका पालन नहीं करने पर किसी भी प्रकार के जुर्माने या दंड का उल्लेख नहीं किया गया है), (3) राजनीतिक दल प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष केवल 2000 रुपये तक की अनाम दान राशि ही नकद में स्वीकार कर सकेंगे (परंतु वे पहले ही की तरह अनाम दान के रूप में 20,000 रुपये तक की दान राशि स्वीकाए कर सकेंगे), (4) राजनीतिक दलों को कुल कितनी धनराशि प्राप्त हुई है इसे उजागर करने के लिए दलों को मजबूर करने की कोई व्यवस्था नहीं है, (5) साथ ही चुनाव बंधक-पत्र का प्रस्ताव भी किया गया है। उपरोक्त (3) और (4) के विभिन्न बिन्दुओं की तुलना करें। इसका तर्क स्वयं स्पष्ट रूप से समझने वाला है ! केवल “चुनावी बंधक पत्रों” पर ही चर्चा होना बाकी है। चुनावों पर अनेक विडियो विश्लेषण आप हमारे बोधि शिक्षा चैनल पर देख सकते हैं।
चुनाव बंधक-पत्र की संकल्पना : दानदाता अपने श्वेत धन से (चेक, डिजिटल माध्यम) प्राधिकृत बैंक से बंधक-पत्र खरीदेगा। बंधक-पत्रों पर लाभार्थी के नाम नहीं होंगे। उन्हें राजनीतिक दल के पंजीकृत बैंक खाते में एक समय सीमा के भीतर भुनाया जा सकता है। इस प्रकार दाता बैंक को पता नहीं होता कि धनराशि किसे प्राप्त हुई और प्राप्तकर्ता बैंक (राजनीतिक दल की बैंक) के लिए दानदाता की पहचान गुप्त रहती है। परंतु किसी भी बैंक को इनमें से कोई भी जानकारी आयकर अधिनियम के प्रासंगिक अनुच्छेद 13ए(बी), के तहत आयकर विभाग या जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुच्छेद 29(सी) के तहत निर्वाचन आयोग को देने की आवश्यकता नहीं है। ये देखना बाकी है कि प्रक्रिया कितनी प्रभावी हो सकेगी। आलोचक तो प्रसन्न नहीं दिखते। विमुद्रीकरण पर संपूर्ण जानकारी यहाँ पढ़ें, और भारतीय राजनीति की बदलती प्रवृत्तियों के बारे में यहाँ पढ़ें।
प्रस्तावित “सुधार” के चार तत्व कौन से हैं? (1) राजनीतिक दल चेक और डिजिटल माध्यम से निधियां प्राप्त करने के लिए पात्र (हकदार) होंगे, (2) आयकर में छूट प्राप्त करने के लिए दलों को आयकर विवरण निश्चित समय सीमा में प्रस्तुत करना होगा (परंतु इसका पालन नहीं करने पर किसी भी प्रकार के जुर्माने या दंड का उल्लेख नहीं किया गया है), (3) राजनीतिक दल प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष केवल 2000 रुपये तक की अनाम दान राशि ही नकद में स्वीकार कर सकेंगे (परंतु वे पहले ही की तरह अनाम दान के रूप में 20,000 रुपये तक की दान राशि स्वीकाए कर सकेंगे), (4) राजनीतिक दलों को कुल कितनी धनराशि प्राप्त हुई है इसे उजागर करने के लिए दलों को मजबूर करने की कोई व्यवस्था नहीं है, (5) साथ ही चुनाव बंधक-पत्र का प्रस्ताव भी किया गया है। उपरोक्त (3) और (4) के विभिन्न बिन्दुओं की तुलना करें। इसका तर्क स्वयं स्पष्ट रूप से समझने वाला है ! केवल “चुनावी बंधक पत्रों” पर ही चर्चा होना बाकी है। चुनावों पर अनेक विडियो विश्लेषण आप हमारे बोधि शिक्षा चैनल पर देख सकते हैं।
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