The rollout of GST holds major implications for inequalities across Indian states, in a federal context. Some are not too pleasant. | वस्तु और सेवा कर आने से भारत के राज्यों के बीच व्याप्त असमताओं पर अनेकों प्रकार के असर पड़ेंगे। इनमें से कुछ मधुर नहीं होंगे।
The Union of India – integrity and inequalities
Often, we in India speak about “integrity of the nation”. That is usually with reference to ideological or religious insurgencies like the ongoing Maoist rebellion (Naxalism) in some states, or the earlier Khalistan Movement in Punjab. But there is another threat – growing disparities based on economic and social parameters. It is important to note that disparities born out of social and economic reasons can be serious catalysts for secessionist movements in a federal setup. A good example to study – the American Civil War (North versus South). The standard logic given is that it was a war due to slavery and secession issues. That is not wrong. But what is also worth considering is that it happened after a long period of economic divergence between north and south. Earlier, the manufacturing industries (mostly located in north) wanted higher tariffs to fight imports from abroad, while the slave-labour driven southern plantations wanted cheap imports (and hence easy access to export markets). South Carolina rose in revolt in 1832, passing a law for nullifying the federally imposed tariffs of 1828 and 1832, and declared that it will secede if forced.
This “Nullification Crisis” was the harbinger of 1861 secession by 7 southern states (later joined by 4 more) to form the CSA – Confederated States of America. View a full video lecture on the American Civil War on this page! Finally, the question whether a frustrated state (a member of the federal Union) can secede or not was settled not through the Constitution or the Judiciary, but through a bloody battle between the Union army of President Abraham Lincoln and the Confederate army of President Jefferson Davis. The Union won decisively. Judiciary came in much later, in 1869, when the Supreme Court declared in a case (Texas versus White) that a single state cannot, on its own, secede unilaterally. But the territorial integrity of each state is sacrosanct, i.e. a state cannot be broken up into smaller states (unlike in India). Indian case is different. Our Constitution, made by the Constituent Assembly in 1947-50, made secession an impossibility, and also gave no promise of legal sanctity on individual territories to constituent States (hence smaller states can be made by dividing existing ones). Read many Bodhi Saars on this theme, here Most important : India is passing through a strange phase – prosperous states of South and West are racing ahead of the Northern and Eastern states. But the GST will tie everyone together in one rope! So the promise of the constitution that individual states’ fiscal autonomy will be protected is being voluntarily given up by States. Why? Because the larger hope is that one GST will lift all boats. What is that logic? That widening regional disparity will be reduced by one common market. But that is just a hope. The exact reverse may happen. Then what? You must read the comprehensive GST Bodhi by us to understand every aspect of it.
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भारतीय संघराज्य - एकात्मता और असमानताएँ
हम भारत के लोग अक्सर ”देश की एकता“ के बारे में बात करते हैं। यह आमतौर पर वैचारिक या धार्मिक उग्रवाद के संबंध में होता है जैसे कुछ राज्यों में जारी माओवादी विद्रोह, या पंजाब में पूर्व में हुआ खालिस्तान आंदोलन। परंतु एक अन्य खतरा भी है - आर्थिक और सामाजिक मानदंडों पर आधारित बढती विषमताएं।
यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि सामाजिक या आर्थिक कारणों से उठने वाली विषमताएं एक संघीय व्यवस्था में अलगाववादी आंदोलनों की गंभीर उत्प्रेरक हो सकती हैं। अध्ययन की दृष्टि से एक अच्छा उदाहरण - अमेरिकी गृह युद्ध (उत्तर बनाम दक्षिण)।
दिया जाने वाला मानक तर्क है कि यह गुलामी और अलगाववाद के मुद्दों से उभरा युद्ध था। यह गलत नहीं है। परंतु यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि यह उत्तर और दक्षिण के बीच लंबे समय से होने वाले आर्थिक विचलन के कारण हुआ।
पूर्व में, विनिर्माण उद्योग (जिनमें से अधिकांश उत्तर में स्थित थे) विदेशी आयातों से लड़ने के लिए अधिक उच्च प्रशुल्क चाहते थे, जबकि गुलाम-चालित दक्षिणी बागवानी उद्योग सस्ते आयात चाहते थे (और इस प्रकार निर्यात बाजारों तक आसान पहुँच) ।
1832 में दक्षिण कैरोलिना में विद्रोह हुआ, जो संफ्हीय स्तर पर अधिरोपित 1828 और 1832 के प्रशुल्कों को समाप्त करने के लिए था, और उन्होंने घोषणा की कि यदि उन्हें मजबूर किया गया तो वे अलग हो जाएँगे।
यह ”शून्यीकरण संकट“ 7 दक्षिणी राज्यों द्वारा 1861 अलगावों का अग्रदूत था (जिसमें 4 अन्य राज्य शामिल हुए), जिससे सीएसए - अमेरिकी संघीय राज्य का निर्माण हुआ। इस अमेरिकी गृह युद्ध का संपूर्ण विडियो देखें। अंत में, एक निराश राज्य (संघीय राज्य का एक सदस्य)पृथक हो सकता है या नहीं यह प्रश्न संविधान या न्यायपालिका के माध्यम से हल नहीं हुआ बल्कि यह हल हुआ राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की संघीय सेना और राष्ट्रपति जेफरसन डेविस की संघराज्य सेना के बीच हुए रक्तरंजित युद्ध के माध्यम से। संघ निर्णायक रूप से विजयी हुआ। न्यायपालिका तो इसके काफी बाद में 1869 में आई, जब सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले (टेक्सास बनाम वाइट) में निर्णय दिया कि एक एकल राज्य स्वयं एकतरफा पृथक नहीं हो सकता। परंतु प्रत्येक राज्य की प्रादेशिक अखंडता पवित्र है, अर्थात, एक राज्य को छोटे राज्यों में नहीं बांटा जा सकता (भारत के विपरीत) । भारत का मामला अलग है। वर्ष 1947-1950 के दौरान संविधान सभा द्वारा बनाए गए हमारे संविधान ने पृथक्करण को असंभव बनाया है, और इसने घटक राज्यों को प्रादेशिक अखंडता पर न्यायिक शुचिता का कोई आश्वासन भी नहीं दिया। (अतः विद्यमान राज्यों को विभाजित करके छोटे राज्य निर्मित किये जा सकते हैं) । इस विषयवस्तु पर अनेक बोधि सार पढ़ें। सबसे महत्वपूर्ण - भारत एक विचित्र चरण से गुजर रहा है दृ दक्षिण और पश्चिम के समृद्ध राज्य उत्तर और पूर्व के राज्यों की तुलना में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। परंतु जीएसटी सभी राज्यों को एक ही रस्सी से एकसाथ बाँध देगा ! अतः संविधान का यह वादा कि व्यक्तिगत राज्यों की राजकोषीय स्वायत्तता बरकरार रखी जाएगी, राज्यों द्वारा स्वेच्छा से त्यागी जा रही है। क्यों? क्योंकि अधिक बड़ी आशा यह है कि एक जीएसटी सभी नावों को ऊपर खींच लेगा। इसके पीछे का तर्क क्या है? कि एक साझा बाजार के माध्यम से क्षेत्रीय असमानताएँ कम होंगी। परंतु यह एक आशा मात्र है। सवभावतः इसका ठीक उल्टा भी हो सकता है। तब क्या? जीएसटी के प्रत्येक पहलू को समझने के लिए आपको हमारे द्वारा बनाई गई समग्र जीएसटी बोधि अवश्य पढनी चाहिए।
यह ”शून्यीकरण संकट“ 7 दक्षिणी राज्यों द्वारा 1861 अलगावों का अग्रदूत था (जिसमें 4 अन्य राज्य शामिल हुए), जिससे सीएसए - अमेरिकी संघीय राज्य का निर्माण हुआ। इस अमेरिकी गृह युद्ध का संपूर्ण विडियो देखें। अंत में, एक निराश राज्य (संघीय राज्य का एक सदस्य)पृथक हो सकता है या नहीं यह प्रश्न संविधान या न्यायपालिका के माध्यम से हल नहीं हुआ बल्कि यह हल हुआ राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की संघीय सेना और राष्ट्रपति जेफरसन डेविस की संघराज्य सेना के बीच हुए रक्तरंजित युद्ध के माध्यम से। संघ निर्णायक रूप से विजयी हुआ। न्यायपालिका तो इसके काफी बाद में 1869 में आई, जब सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले (टेक्सास बनाम वाइट) में निर्णय दिया कि एक एकल राज्य स्वयं एकतरफा पृथक नहीं हो सकता। परंतु प्रत्येक राज्य की प्रादेशिक अखंडता पवित्र है, अर्थात, एक राज्य को छोटे राज्यों में नहीं बांटा जा सकता (भारत के विपरीत) । भारत का मामला अलग है। वर्ष 1947-1950 के दौरान संविधान सभा द्वारा बनाए गए हमारे संविधान ने पृथक्करण को असंभव बनाया है, और इसने घटक राज्यों को प्रादेशिक अखंडता पर न्यायिक शुचिता का कोई आश्वासन भी नहीं दिया। (अतः विद्यमान राज्यों को विभाजित करके छोटे राज्य निर्मित किये जा सकते हैं) । इस विषयवस्तु पर अनेक बोधि सार पढ़ें। सबसे महत्वपूर्ण - भारत एक विचित्र चरण से गुजर रहा है दृ दक्षिण और पश्चिम के समृद्ध राज्य उत्तर और पूर्व के राज्यों की तुलना में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। परंतु जीएसटी सभी राज्यों को एक ही रस्सी से एकसाथ बाँध देगा ! अतः संविधान का यह वादा कि व्यक्तिगत राज्यों की राजकोषीय स्वायत्तता बरकरार रखी जाएगी, राज्यों द्वारा स्वेच्छा से त्यागी जा रही है। क्यों? क्योंकि अधिक बड़ी आशा यह है कि एक जीएसटी सभी नावों को ऊपर खींच लेगा। इसके पीछे का तर्क क्या है? कि एक साझा बाजार के माध्यम से क्षेत्रीय असमानताएँ कम होंगी। परंतु यह एक आशा मात्र है। सवभावतः इसका ठीक उल्टा भी हो सकता है। तब क्या? जीएसटी के प्रत्येक पहलू को समझने के लिए आपको हमारे द्वारा बनाई गई समग्र जीएसटी बोधि अवश्य पढनी चाहिए।
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