With a glorious past and inherent strengths, India needs to gear up for a challenging future.
The future of India
India completed its 68 years as a Republic on 26 Jan 2017. It is aspiring for a world power status, and has enviable strengths and some strong challenges. Our numbers are unique – a democracy of 1.3 billion. Demonetisation will perhaps chop off a percentage point from India’s GDP in 2016-17, as per IMF forecasts. So, India may temporarily lose the “fastest growing economy” tag.
However, India’s biggest immediate challenge and problem is the PRC – China. It is not leaving a single opportunity to humiliate and harass India and her aspirations globally. The Nuclear Suppliers Group entry bid of India was thwarted by only one nation – China. Others were ready to take India in, considering the impeccable non-proliferation record of India. America has been sympathetic to India’s cause, but Donald Trump administration may act in an unpredictable manner. In that light, the fact that Trump listed PM Modi at the fifth position in his calling list post assuming charge, is a positive sign. But nothing is certain over the next few months and years. America is a huge export market for India, especially in I.T. If Trump restricts access under “America First”, it will be bad news. Hence, new frontiers are needed, such as the UAE relationship. In the long run, India’s brightest prospects depend on our internal strengths. Others will treat us with respect only if we grow strong internally. Economy needs big bang reforms and a huge thrust forward now. Read a detailed Bodhi on World Politics here.
[ ##thumbs-o-up## Share Testimonial here - make our day!] [ ##certificate## Volunteer for Bodhi Booster portal]
Amazing Courses - Online and Classroom
भारत का भविष्य
26 जनवरी 2017 को भारत ने एक गणतंत्र के रूप में 68 वर्ष पूर्ण किये हैं। वह विश्व शक्ति के दर्जे के लिए प्रयासरत है और इसके पास कुछ स्पृहणीय ताकतें हैं और कुछ मजबूत चुनौतियाँ हैं - हमारे आंकडे विशिष्ट हैं - एक 1.3 अरब लोगों का लोकतंत्र। अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के अनुमानों के अनुसार संभवतः विमुद्रीकरण वर्ष 2016-17 की भारत की जीडीपी में से कुछ प्रतिशत अंक निकाल देगा। अतः भारत अस्थाई तौर पर “विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था” का तमगा खो सकता है।
हालांकि भारत की सबसे बड़ी और तत्काल चुनौती है पीआरसी - चीन। वह भारत और वैश्विक स्तर पर उसकी आकाँक्षाओं को अपमानित करने और परेशान करने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहा है। परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत के प्रवेश के प्रयास को केवल एक देश - चीन - द्वारा नाकाम किया गया। भारत के परमाणु अप्रसार के निर्दोष रिकॉर्ड को देखते हुए अन्य सभी देश भारत को इसमें लेने के लिए तैयार थे। अमेरिका का रवैया भारत के इस प्रयोजन के प्रति काफी सहानुभूतिपूर्ण रहा है परंतु डॉनल्ड ट्रम्प का प्रशासन अप्रत्याशित व्यवहार कर सकता है। इस दृष्टि से, डॉनल्ड ट्रम्प द्वारा अमेरिका के राष्ट्रपति पद का पदभार ग्रहण करने के पश्चात जिन विश्व नेताओं से बात की गई इसमें प्रधानमंत्री मोदी को पांचवे स्थान पर रखना एक सकारात्मक संकेत हो सकता है। परंतु अगले कुछ महीनों और वर्षों के दौरान निश्चित तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अमेरिका भारत की दृष्टि से एक बड़ा निर्यात बाजार है, विशेष रूप से सूचना प्रौदोगिकी के क्षेत्र में। यदि “अमेरिका सबसे पहले” के तहत यदि ट्रम्प प्रवेश पर निर्बंध लगाते हैं तो हमारे लिए यह काफी बुरा समाचार होगा। अतः नए मोर्चे आवश्यक हैं, जैसे युएई के साथ अधिक घनिष्ठ संबंध। दीर्घकाल में हमारी सबसे महत्वपूर्ण संभावनाएं हमारी आतंरिक ताकत पर निर्भर होंगी। दूसरे लोग हमें सम्मान की दृष्टि से तभी देखेंगे जब हम आतंरिक रूप से शक्तिशाली और मजबूत होंगे। अब अर्थव्यवस्था को बड़े भारी पैमाने पर सुधारों और आगे जाने के लिए एक विशाल बल की आवश्यकता है। विश्व राजनीति पर एक विस्तृत बोधि यहाँ पढ़ें
हालांकि भारत की सबसे बड़ी और तत्काल चुनौती है पीआरसी - चीन। वह भारत और वैश्विक स्तर पर उसकी आकाँक्षाओं को अपमानित करने और परेशान करने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहा है। परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत के प्रवेश के प्रयास को केवल एक देश - चीन - द्वारा नाकाम किया गया। भारत के परमाणु अप्रसार के निर्दोष रिकॉर्ड को देखते हुए अन्य सभी देश भारत को इसमें लेने के लिए तैयार थे। अमेरिका का रवैया भारत के इस प्रयोजन के प्रति काफी सहानुभूतिपूर्ण रहा है परंतु डॉनल्ड ट्रम्प का प्रशासन अप्रत्याशित व्यवहार कर सकता है। इस दृष्टि से, डॉनल्ड ट्रम्प द्वारा अमेरिका के राष्ट्रपति पद का पदभार ग्रहण करने के पश्चात जिन विश्व नेताओं से बात की गई इसमें प्रधानमंत्री मोदी को पांचवे स्थान पर रखना एक सकारात्मक संकेत हो सकता है। परंतु अगले कुछ महीनों और वर्षों के दौरान निश्चित तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अमेरिका भारत की दृष्टि से एक बड़ा निर्यात बाजार है, विशेष रूप से सूचना प्रौदोगिकी के क्षेत्र में। यदि “अमेरिका सबसे पहले” के तहत यदि ट्रम्प प्रवेश पर निर्बंध लगाते हैं तो हमारे लिए यह काफी बुरा समाचार होगा। अतः नए मोर्चे आवश्यक हैं, जैसे युएई के साथ अधिक घनिष्ठ संबंध। दीर्घकाल में हमारी सबसे महत्वपूर्ण संभावनाएं हमारी आतंरिक ताकत पर निर्भर होंगी। दूसरे लोग हमें सम्मान की दृष्टि से तभी देखेंगे जब हम आतंरिक रूप से शक्तिशाली और मजबूत होंगे। अब अर्थव्यवस्था को बड़े भारी पैमाने पर सुधारों और आगे जाने के लिए एक विशाल बल की आवश्यकता है। विश्व राजनीति पर एक विस्तृत बोधि यहाँ पढ़ें
Useful resources for you
[Newsletter ##newspaper-o##] [Bodhi Shiksha channel ##play-circle-o##] [FB ##facebook##] [हिंदी बोधि ##leaf##] [Sameeksha live ##graduation-cap##] [Shrutis ##fa-headphones##] [Quizzes ##question-circle##] [Bodhi Revision ##book##]
COMMENTS